अकबर का साला
बीरबल बहुत ज्यादा बुद्धिमान था। इस बात से बहुत से ऐसे भी लोग थे जो कि बीरबल से ईर्ष्या करते थे। ऐसे ईर्ष्या करने वाले लोगों में अकबर का साला भी शामिल था। वह आए दिन बीरबल की चुगली करता रहता था। अपने साले की इस हरकत से अकबर बहुत परेशान रहता था। लेकिन वह कुछ कर भी नहीं सकता था। क्योंकि वह अकबर का साला जो था। बीरबल को भी इस बात की भनक लग गई थी। पर फिर भी वह इस बात को नजरअंदाज कर देता।
एक दिन तो हद तब हो गई जब अकबर के साले ने अकबर के पास आकर कहा, “देखो जीजाजी, यह सही नहीं है कि आप हमेशा ही बीरबल को ही तवज्जो दें। मैं भी तो आपका ही साला हूं। आप मुझे कोई जिम्मेदारी क्यों नहीं देते हैं?” अकबर ने कहा, “तुम मेरे साले हो और वह मेरा मंत्री है। मंत्री और साले में फर्क़ होता है ना।” साले ने कहा, “नहीं, तो भी मुझे लगता है कि उसमें और मुझमें फर्क़ है।
जीजाजी आप मुझे भी वही कार्य सौंप दीजिए जो आप बीरबल को सौंपते हैं।” अकबर को आखिरकार हाँ कहना ही पड़ा। “ठीक है। मैं तुम्हें भी बीरबल वाली जिम्मेदारी सौंपता हूं। पर एक बात याद रहे कि यह तुम्हारा पहला और आखिरी अवसर है।” साले ने कहा, “धन्यवाद, जीजाजी। अब आप मुझे यह बताइए कि आखिर मुझे करना क्या होगा?” अकबर बोला, “इस शहर में एक सबसे लालची और कंजूस सेठ दमड़ी लाल रहता है।
तुम्हारा काम यह है कि तुम्हें उस लालची सेठ को कोयले की बोरी को अधिक दाम में बेच कर आना है। अगर तुम ऐसा करने में कामयाब हुए तो मैं यह स्वीकार कर लूंगा कि तुम बीरबल से भी ज्यादा बुद्धिमान है।” अकबर के साले ने कहा, “ठीक है जीजाजी मैं यह चुनौती स्वीकार करता हूं।”
अगले दिन अकबर का साला सेठ दमड़ी लाल के पास कोयले की बोरी लेकर पहुंचा। साले ने कहा, “मैं अकबर का साला हूं। और मैं तुम्हें यह कोयले की बोरी बेचने आया हूं। बोलो, तुम मुझे इस बोरी के कितने रुपए दोगे?” सेठ बोला, “तुम चाहे कोई भी हो। भले ही तुम राजकुमार हो तो भी मैं तुमसे कोयले की बोरी नहीं खरीदने वाला। चलो जाओ यहां से। मेरा समय बर्बाद मत करो।” अकबर के साले को अपनी बेइज्जती बर्दाश्त नहीं हुई। वह फौरन ही वहां से रवाना हो गया।
वह निराशा के साथ महल वापिस लौटा। उसने अकबर से कहा कि वह सेठ सच में बहुत अड़ियल और कंजूस है। उस सेठ ने मेरे से बोरी लेने को साफ़ इंकार कर दिया। मजे की बात तो तब हो गई जब उसको मेरी सही पहचान होते भी उसने मुझसे बोरी नहीं ली। मैंने उसे कहा था कि मैं आपका साला हूं तब भी उसके कान पर एक जूं तक नहीं रेंगी।
“अकबर ने कहा, “इसका मतलब मेरे साले साहब अपनी हार स्वीकार करते हैं।” साला सिर झुकाए खड़ा रहा पर उसने जवाब नहीं दिया। तभी अकबर ने अपने सैनिकों को कहकर बीरबल को वहां बुलवाया। बीरबल वहां पहुंच गया। अकबर ने उसे कहा, “मैंने मेरे साले को कोयले की यह बोरी सेठ दमड़ी लाल को बेचनी थी। पर यह बेच नहीं पाए।
अब मैं यह जिम्मेदारी तुम्हें सौंपता हूं। क्या तुम्हें यह शर्त मंजूर है?” बीरबल बोला, “हाँ, मैं यह शर्त स्वीकार करता हूं। लेकिन मैं सेठ को बोरी नहीं बल्कि कोयले का एक टुकड़ा ही बेचूंगा। और आप देखना कैसे वह केवल एक कोयले के टुकड़े पर ही मुझे मनमुताबिक पैसे दे देगा।” अकबर ने कहा, “तब तो यह बहुत ही अच्छी बात है। अब मैं तुम्हें जाने की आज्ञा देता हूं।”
बीरबल ने दिमाग में एक योजना बनाई। क्योंकि वह कोयले का टुकड़ा अच्छे खासे दाम पर बेचना चाहता था इसलिए बीरबल ने अपना भेष बदल लिया और बन गया बगदाद का एक धनवान शेख। उसने कोयले के टुकड़े को राख में बदल लिया और उसे एक शीशी में डाल लिया। पूरे नगर में यह बात फैल गई कि एक चमत्कारी शेख के पास ऐसी काजल है जिसे लगाते ही लोग अपने पूर्वजों को देख सकते हैं। और यही पूर्वज छुपे धन का भी पता बता सकते हैं।” लोग आश्चर्य में पड़ गए कि ऐसी कौनसी चमत्कारी काजल थी। बीरबल अपने बदले भेष में सेठ के घर में पहुंच गया।
क्योंकि सेठ लालची था इसलिए सेठ ने कहा कि उसे भी वह काजल लगानी है। क्या पता ऐसा करने से उसके पूर्वज उसे कोई छुपा हुआ धन बता देंगे।” बीरबल ने कहा, “हाँ, मैं तुम्हें काजल लगाने दूंगा पर इसके मुझे 10 हजार रुपए चाहिए। आखिर यह काजल जादुई काजल जो है।” सेठ कंजूस किस्म का इंसान था। उसने कहा कि, “यह कीमत तो बहुत ज्यादा है।
अगर तुम मुझे इस काजल की परख करके देखने दो तो मैं यह काजल जरूर लगाऊंगा।” बीरबल भी बहुत होशियार था। वह समझ गया कि सेठ उसकी परीक्षा लेना चाहता था। बीरबल बोला, “ठीक है। मैं तुम्हें इसकी इजाजत देता हूं। पर तुम्हें मेरे साथ बाहर लोगों के बीच चलकर यह काजल लगानी होगी।” उस सेठ ने ऐसा ही किया। बाहर आकर बीरबल ने यह ऐलान किया कि, “जो कोई भी यह काजल लगाएगा और उसे अपने पूर्वज दिखे तो समझ लेना कि आप सभी अपने पूर्वजों की औलाद हो।
अगर काजल लगाने के बावजूद भी पूर्वजों का दर्शन नहीं हुआ तो समझ लेना कि आप अपने पूर्वजों की औलाद नहीं हो।” फिर सेठ दमड़ी लाल को बीरबल ने काजल लगाने के लिए शीशी दी। सेठ ने आंखों में काजल लगा लिया पर उसको पूर्वजों का दर्शन नहीं हुआ। अब सेठ असमंजस में था। अगर वह पूरी सभा में यह कहता कि उसको पूर्वज नहीं दिखे तो उसकी भयंकर बेज्जती हो जाएगी। इसलिए उसने सोचा कि झूठ बोलना ज्यादा सही है। जैसे ही सेठ ने यह बोला कि उसे पूर्वजों का दर्शन हो गया वैसे ही उसे 10 हजार सेठ को देने पड़े। और आखिरकार बीरबल की बुद्धि की जीत हुई।
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