गांधी जयंती पर कविताएं (Poems On Gandhi Jayanti In Hindi): गांधी जी और 02 अक्टूबर गांधी जयंती पर कविता पढ़ें

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गांधी जयंती पर कविताएं (Poems On Gandhi Jayanti In Hindi)- देश के राष्ट्रपिता और बापू कहे जाने वाले महात्मा गांधी ने जीवनभर अन्याय के विरुद्ध संघर्ष किया। देश को आज़ाद देखने का उनका सपना तो पूरा हो गया, लेकिन जिस आज़ाद भारत की कल्पना उन्होंने की थी, वो शायद आज तक अधूरी है। गांधीजी के बाद उनके विचारों और उनके आदर्शों ने भी भारत के निर्माण में अहम भूमिका निभाई है। गांधीजी के बहुत से प्रशंसक उन्हें अपना आदर्श मानते हैं और उनके बताए मार्ग पर ही चलते हैं। देश के कई बड़े कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम से गांधीजी के बारे लिखा है।

गांधी जयंती पर कविताएं (Poems On Gandhi Jayanti In Hindi)

अगर आप कविता पढ़ना पसंद करते हैं और कविता के जरिए बापू को जानना चाहते हैं, तो parikshapoint.com आपके लिए गांधी जयंती पर कविता हिंदी में (Gandhi Jayanti Poem In Hindi) लेकर आया है। गांधी जयंती (Gandhi Jayanti) के अवसर पर आप अपने स्कूल या कॉलेज में 2 अक्टूबर गांधी जयंती पर कविता (Gandhi Jayanti Poetry) सुना सकते हैं। इसके लिए आप नीचे दी गई महात्मा गांधी जयंती पर कविता (Gandhi Jayanti Poem) पढ़कर याद कर सकते हैं। गांधी जी पर कविता हिंदी में (Poem On Mahatma Gandhi In Hindi) बोलने के लिए आपको कुछ दिन पहले से इनका अभ्यास करना होगा। नीचे हमने हिंदी जगत के प्रसिद्ध कवियों की Poem On Gandhi Jayanti In Hindi दी हुई है।

आपको बता दें कि जब आप हिंदी में गांधी जयंती पर कविता (Gandhi Jayanti Kavita) या बापू पर कविता हिंदी (Hindi Poems On Gandhiji) पढ़ेंगे, तो आपको गांधी जी पर हर कवि के अलग-अलग विचार और लिखने का एक अलग अंदाज़ मालूम होगा। यदि आप भी हिंदी कविता लिखना पसंद करते हैं और गांधी जी के ऊपर कविता या 2 अक्टूबर की कविता लिखना चाहते हैं, तो आपको इन कविताओं से भी काफी कुछ सिखने को मिलेगा। इस पोस्ट से Poem On Gandhi Jayanti के साथ-साथ आप Mahatma Gandhi In Hindi Poem भी पढ़ सकते हैं। 2 अक्टूबर गांधी जयंती पर कविता हिंदी में (Gandhi Jayanti Poems In Hindi) पढ़ने के लिए नीचे देखें।

02 अक्टूबर गांधी जयंती पर कविता हिंदी में
02 October Gandhi Jayanti Poem In Hindi

गांधी जयंती पर कविता

कविता 1

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दुख से दूर पहुँचकर गाँधी।
सुख से मौन खड़े हो
मरते-खपते इंसानों के
इस भारत में तुम्हीं बड़े हो

जीकर जीवन को अब जीना
नहीं सुलभ है हमको
मरकर जीवन को फिर जीना
सहज सुलभ है तुमको

– गांधी के चित्र को देखकर / केदारनाथ अग्रवाल

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कविता 2

मैं फिर जनम लूंगा
फिर मैं इसी जगह आउंगा
उचटती निगाहों की भीड़ में
अभावों के बीच
लोगों की क्षत-विक्षत पीठ सहलाऊँगा
लँगड़ाकर चलते हुए पावों को कंधा दूँगा
गिरी हुई पद-मर्दित पराजित विवशता को
बाँहों में उठाऊँगा ।

इस समूह में
इन अनगिनत अचीन्ही आवाज़ों में
कैसा दर्द है
कोई नहीं सुनता !
पर इन आवाजों को और इन कराहों को
दुनिया सुने मैं ये चाहूँगा ।

मेरी तो आदत है
रोशनी जहाँ भी हो
उसे खोज लाऊँगा
कातरता, चु्प्पी या चीखें,
या हारे हुओं की खीज
जहाँ भी मिलेगी
उन्हें प्यार के सितार पर बजाऊँगा ।

जीवन ने कई बार उकसाकर
मुझे अनुलंघ्य सागरों में फेंका है
अगन-भट्ठियों में झोंका है,
मैने वहाँ भी ज्योति की मशाल प्राप्त करने के यत्न किये
बचने के नहीं,
तो क्या इन टटकी बंदूकों से डर जाऊँगा ?
तुम मुझकों दोषी ठहराओ
मैने तुम्हारे सुनसान का गला घोंटा है
पर मैं गाऊँगा
चाहे इस प्रार्थना सभा में
तुम सब मुझपर गोलियाँ चलाओ
मैं मर जाऊँगा
लेकिन मैं कल फिर जनम लूँगा
कल फिर आऊँगा ।

– गांधीजी के जन्मदिन पर / दुष्यंत कुमार

कविता 3

एक दिन इतिहास पूछेगा
कि तुमने जन्‍म गाँधी को दिया था,
जिस समय हिंसा,
कुटिल विज्ञान बल से हो समंवित,
धर्म, संस्‍कृति, सभ्‍यता पर डाल पर्दा,
विश्‍व के संहार का षड्यंत्र रचने में लगी थी,
तुम कहाँ थे? और तुमने क्‍या किया था!

एक दिन इतिहास पूछेगा
कि तुमने जन्‍म गाँधी को दिया था,
जिस समय अन्‍याय ने पशु-बल सुरा पी-
उग्र, उद्धत, दंभ-उन्‍मद-
एक निर्बल, निरपराध, निरीह को
था कुचल डाला
तुम कहाँ थे? और तुमने क्‍या किया था?

एक दिन इतिहास पूछेगा
कि तुमने जन्‍म गाँधी को दिया था,
जिस समय अधिकार, शोषण, स्‍वार्थ
हो निर्लज्‍ज, हो नि:शंक, हो निर्द्वन्‍द्व
सद्य: जगे, संभले राष्‍ट्र में घुन-से लगे
जर्जर उसे करते रहे थे,
तुम कहाँ थे? और तुमने क्‍या किया था?

क्‍यों कि गाँधी व्‍यर्थ
यदि मिलती न हिंसा को चुनौ‍ती,
क्‍यों कि गाँधी व्‍यर्थ
यदि अन्‍याय की ही जीत होती,
क्‍यों कि गाँधी व्‍यर्थ
जाति स्‍वतंत्र होकर
यदि न अपने पाप धोती!

– गाँधी / हरिवंशराय बच्‍चन

2 अक्टूबर गांधी जयंती पर कविता

कविता 4

देश में जिधर भी जाता हूँ,
उधर ही एक आह्वान सुनता हूँ
“जड़ता को तोड़ने के लिए
भूकम्प लाओ ।
घुप्प अँधेरे में फिर
अपनी मशाल जलाओ ।
पूरे पहाड़ हथेली पर उठाकर
पवनकुमार के समान तरजो ।
कोई तूफ़ान उठाने को
कवि, गरजो, गरजो, गरजो !”

सोचता हूँ, मैं कब गरजा था ?
जिसे लोग मेरा गर्जन समझते हैं,
वह असल में गाँधी का था,
उस गाँधी का था, जिस ने हमें जन्म दिया था ।

तब भी हम ने गाँधी के
तूफ़ान को ही देखा,
गाँधी को नहीं ।

वे तूफ़ान और गर्जन के
पीछे बसते थे ।
सच तो यह है
कि अपनी लीला में
तूफ़ान और गर्जन को
शामिल होते देख वे हँसते थे ।

तूफ़ान मोटी नहीं,
महीन आवाज़ से उठता है ।
वह आवाज़ जो मोम के दीप के समान
एकान्त में जलती है,
और बाज नहीं, कबूतर के चाल से चलती है ।

गाँधी तूफ़ान के पिता
और बाजों के भी बाज थे ।
क्योंकि वे नीरवताकी आवाज थे।

– गाँधी / रामधारी सिंह “दिनकर”

कविता 5

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गाँधी तो हमारा भोला है, और शेख़ ने बदला चोला है
देखो तो ख़ुदा क्या करता है, साहब ने भी दफ़्तर खोला है
आनर की पहेली बूझी है, हर इक को तअल्ली सूझी है
जो चोकर था वह सूजी है, जो माशा था वह तोला है
यारों में रक़म अब कटती है, इस वक़्त हुकूमत बटती है
कम्पू से तो ज़ुल्मत हटती है, बे-नूर मोहल्ला-टोला है

– गाँधी तो हमारा भोला है / अकबर इलाहाबादी

कविता 6

कैसा संत हमारा गांधी कैसा संत हमारा!

दुनिया गो थी दुश्मन उसकी दुश्मन था जग सारा ।
आख़िर में जब देखा साधो वह जीता जग हारा ।।

कैसा संत हमारा गांधी कैसा संत हमारा!

सच्चाई के नूर से उस के मन में था उजियारा ।
बातिन में शक्ती ही शक्ती ज़ाहर में बेचारा ।।

कैसा संत हमारा गांधी कैसा संत हमारा!

बूढ़ा था या नए जनम में बंसी का मतवारा ।
मोहन नाम सही था पर साधो रूप वही था सारा ।।

कैसा संत हमारा गांधी कैसा संत हमारा!

भारत के आकाश पे वो है एक चमकता तारा ।
सचमुच ज्ञानी, सचमुच मोहन सचमुच प्यारा-प्यारा ।।

कैसा संत हमारा गांधी कैसा संत हमारा!

– महात्मा गांधी / साग़र निज़ामी

गांधी जी पर कविता

कविता 7

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हमारे गाल पर नहीं मारता अब तमाचा कोई
कि हम तपाक से दूसरा गाल बढ़ा दें
अब तो चुभते हैं उनके पैने दाँत
खच्च से हमारी गर्दन पर
और उनकी सहस्त्र जिह्वाएँ लपलपा उठती हैं
फ़व्वारे की तरह चीत्कार करते खून पर
गांधी के इस देश में हमें
ज़्यादा से ज़्यादा स्वस्थ होना होगा
ताकि हम उनकी खून की हवस बुझा सकें
या उनकी यह आदत ही छुड़ा सकें

– गांधी के देश में / विपिन कुमार शर्मा

कविता 8

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एक बार फिर
गाँधी जी ख़ामोश थे
सत्य और अहिंसा के प्रणेता
की जन्मस्थली ही
सांप्रदायिकता की हिंसा में
धू-धू जल रही थी
क्या इसी दिन के लिए
हिन्दुस्तान व पाक के बँटवारे को
जी पर पत्थर रखकर स्वीकारा था!
अचानक उन्हें लगा
किसी ने उनकी आत्मा
को ही छलनी कर दिया
उन्होंने ‘हे राम’ कहना चाहा
पर तभी उन्मादियों की एक भीड़
उन्हें रौंदती चली गई ।

– हे राम / कृष्ण कुमार यादव

बापू पर कविता

कविता 9

तुम मांस-हीन, तुम रक्तहीन,
हे अस्थि-शेष! तुम अस्थिहीन,
तुम शुद्ध-बुद्ध आत्मा केवल,
हे चिर पुराण, हे चिर नवीन!
तुम पूर्ण इकाई जीवन की,
जिसमें असार भव-शून्य लीन;
आधार अमर, होगी जिस पर
भावी की संस्कृति समासीन!

तुम मांस, तुम्ही हो रक्त-अस्थि,
निर्मित जिनसे नवयुग का तन,
तुम धन्य! तुम्हारा नि:स्व-त्याग
है विश्व-भोग का वर साधन।
इस भस्म-काम तन की रज से
जग पूर्ण-काम नव जग-जीवन
बीनेगा सत्य-अहिंसा के
ताने-बानों से मानवपन!

– बापू के प्रति / सुमित्रानंदन पंत

कविता 10

बापू के हत्‍या के चालिस दिन बाद गया
मैं दिल्‍ली को, देखने गया उस थल को भी
जिस पर बापू जी गोली खाकर सोख गए,
जो रँग उठा उनके लोहू की लाली से।

बिरला-घर के बाएँ को है है वह लॉन हरा,
प्रार्थना सभा जिस पर बापू की होती थी,
थी एक ओर छोटी सी वेदिका बनी,
जिस पर थे गहरे लाल रंग के फूल चढ़े।

उस हरे लॉन के बीच देख उन फूलों को
ऐसा लगता था जैसे बापू का लोहू
अब भी पृथ्‍वी के ऊपर ताज़ा ताज़ा है!

सुन पड़े धड़ाके तीन मुझे फिर गोली के
काँपने लगे पाँवों के नीचे की धरती,
फिर पीड़ा के स्‍वर में फूटा ‘हे राम’ शब्‍द,
चीरता हुआ विद्युत सा नभ के स्‍तर पर स्‍तर
कर ध्‍वनित-प्रतिध्‍वनित दिक्-दिगंत बार-बार
मेरे अंतर में पैठ मुझे सालने लगा!……

– बापू के हत्‍या के चालिस दिन बाद गया / हरिवंशराय बच्चन

कविता 11

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हम सब के थे प्यारे बापू
सारे जग से न्यारे बापू
जगमग-जगमग तारे बापू
भारत के उजियारे बापू
लगते तो थे दुबले बापू
थे ताक़त के पुतले बापू
नहीं कभी डरते थे बापू
जो कहते करते थे बापू
सदा सत्य अपनाते बापू
सबको गले लगाते बापू
हम हैं एक सिखाते बापू
सच्ची राह दिखाते बापू
चरखा खादी लाए बापू
हैं आज़ादी लाए बापू
कभी न हिम्मत हारे बापू
आँखों के थे तारे बापू

– प्यारे बापू / सियाराम शरण गुप्त

2 अक्टूबर खास बहुत है इसमें है इतिहास छिपा,
इस दिन गाँधी जी जन्मे थे दिया उन्होंने ज्ञान नया,
सत्य अहिंसा को अपनाओ इनसे होती सदा भलाई,
इनके दम पर गाँधी जी ने अंग्रेजों की फौज भगाई,
इस दिन लाल बहादुर जी भी इस दुनिया में आये थे,
ईमानदार और सबके प्यारे कहलाये थे,
नहीं भुला सकते इस दिन को ये दिन तो है बहुत महान,
इसमें भारत का गौरव है इसमें तिरंगे की शान हैं।

साभार- कविता कोश
वेबसाइट- kavitakosh.org

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