गौतम बुद्ध हर दिन अलग अलग जगह प्रवचन देने जाते थे। ऐसे ही एक दिन वह किसी गाँव में प्रवचन देने के लिए गए हुए थे। वहां पर वह लोगों को प्रवचन में यह बता रहे थे कि जीवन में क्षमाशीलता और सहनशीलता की बहुत बड़ी कीमत होती है। यह दोनों ही चीजें कीमती गहने के समान होती है।
फिर बुद्ध ने धरती माता का उदाहरण देकर भी समझाया कि जैसे धरती माता इतने मनुष्यों का भार सहकर भी सहनशील बनी रहती है। ठीक उसी प्रकार से हम इंसानों को भी धरती माता से यह खास गुण सीखना चाहिए। धरती माता कभी भी क्रोधित नहीं होती है। ठीक उसी प्रकार हम मनुष्यों को भी क्रोध करने से सदैव बचना चाहिए। सभी लोग गौतम बुद्ध की बातों को ध्यानपूर्वक सुन रहे थे। सभी को उपदेश सुनने में बहुत आनंद आ रहा था।
लेकिन उस सभा में शायद एक इंसान ऐसा भी था जिसे गौतम बुद्ध की बातों को सुनकर गुस्सा आ रहा था। वह आदमी अत्यंत क्रोधित दिख रहा था। उसे ऐसे क्रोधित देख दूसरे लोगों को परेशानी हो रही थी। वह अपनी जगह से उठा और खड़ा होकर जोरों से बोलने लगा कि, “बुद्ध, तुम ढोंगी बाबा जैसी बातें करते रहते हो। तुम लोगों को गलत बातें सीखाते हो। तुम्हारी इन झूठी बातों की वजह से लोग सही रास्ते से भटक रहे हैं।
तुम ऐसे झूठे उपदेश देना छोड़ दो। नहीं तो तुम लोगों की नजरों में गिर जाओगे। जो तुम बातें बताते हो ना वह बातें इस ज़माने में बिल्कुल भी मायने नहीं रखती।” उस व्यक्ति की ऐसी अपमानजनक बातों से बुद्ध को बिल्कुल भी बुरा नहीं लगा। बुद्ध तो अब भी सौम्य चेहरे के साथ हंसते हुए प्रवचन देने में व्यस्त थे। बुद्ध ने मन ही मन सोचा कि वह व्यक्ति कोई भटका हुआ युवक है। बुद्ध को इतना शांत देखकर उस युवक को बहुत अजीब लगा।
उसने सोचा कि आखिर बुद्ध उसकी बातों का प्रत्युत्तर क्यों नहीं दे रहा है। अब उसे बुद्ध पर बहुत गुस्सा आने लगा। उसने अपनी बात दोबारा दोहराई। लेकिन बुद्ध ने इस बार भी कोई जवाब नहीं दिया। इस बार तो मानो जैसे वह क्रोध की आग में जल उठा। वह अत्यंत क्रोधित होकर बुद्ध के पास आया। उसने बुद्ध को अपशब्द कहे और अंत में बुद्ध के वस्त्र पर थूक फेंक दिया।
क्रोध करने वाले उस व्यक्ति को ना जाने अब क्या हो गया था कि अगले दिन जब वह नींद लेकर उठा तो उसे अपने कल के किए हुए व्यवहार पर बहुत पछतावा हो रहा था। उसे अपने पर शर्म आ रही थी कि कल जिस तरह का व्यवहार उसने बुद्ध के साथ किया था वह कितना शर्मनाक था। उसने सोचा कि काश अगर वह कटु शब्द नहीं बोलता तो ज्यादा अच्छा रहता। उसे अंदर ही अंदर ग्लानि खाई जा रही थी।
उसने उसी वक्त यह फैसला लिया कि वह बुद्ध से मिलने जाएगा और उनसे माफ़ी भी मांगेगा। फिर वह बुद्ध से मिलने घर से निकल पड़ा। लेकिन जैसे ही कल वाले स्थान पर पहुंचा तो उसने देखा कि बुद्ध तो वहां पर थे ही नहीं। उसने गाँव वालों से बुद्ध के बारे में पूछा तो पता चला कि बुद्ध तो कल शाम को ही इस गाँव से दूसरे गाँव की ओर निकल पड़े थे। फिर तो वह बिल्कुल भी समय ना बर्बाद करते हुए दूसरे गाँव के लिए निकल पड़ा।
दूसरे गाँव पहुंचकर वह सीधे ही बुद्ध की सभा में शामिल होने के लिए पहुंचा। फिर जैसे ही बुद्ध का उपदेश खत्म हुआ वह तेजी से भागता हुआ बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा। उसने बुद्ध से अपने किए हुए बुरे बर्ताव की माफ़ी मांगी। बुद्ध ने कहा, “उठो वत्स! तुम मेरे चरणों में ऐसे क्यों गिरे हुए हो। और सबसे पहले तुम यह बताओ कि तुम हो कौन? मैं तुम्हें पहचाना नहीं।” उस व्यक्ति ने रोते हुए कहा, “गुरुजी, क्या आप सच में मुझे नहीं पहचाने? मैं वही व्यक्ति हूँ जिसने आप पर कल थूका था।
बुद्ध ने बड़ी सी मुस्कान के साथ जवाब दिया, “वत्स, क्या तुम कल की घटी उस घटना को अभी तक अपने मन में लेकर बैठे हो। मैंने तो चंद पल में ही वह बात अपने दिमाग से निकाल दी थी। अगर तुम अभी भी वही बात लेकर बैठे हो तो कृपया करके उसे त्याग दो। क्योंकि लंबे समय तक बुरी भावनाओं को मन में रखने से खुद का ही बुरा होता है।” वह आदमी फिर से बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और बोला, “गुरुजी, मैं प्रण खाता हूं कि मैं आगे से कभी भी गुस्सा नहीं करूंगा। मैं अपने ह्रदय में प्रेम और करुणा रखूंगा। मैं हर पल क्षमाशीलता और सहनशीलता के सिद्धांत को अपनाऊंगा।” बुद्ध ने उस व्यक्ति को अपने गले से लगा लिया। वह हमेशा के लिए बुद्ध का शिष्य बन गया।
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