गौतम बुद्ध (कहानी 4) बुद्ध आम और बच्चे?

एक बार हर दिन की ही तरह बुद्ध साधना में लीन थे। वह एक बड़े से आम के पेड़ के नीचे बैठे साधना कर रहे थे। तभी कुछ अलग हुआ। वहां पर खेलते हुए कुछ बच्चों का झुंड आया। वह बच्चे बहुत मौज में लग रहे थे। उन्हें प्रसन्नता के साथ खेलता देखकर बुद्ध को भी प्रसन्नता हुई। वह बच्चे कई देर तक बैठे हुए तो हंसी ठिठोली करते रहे। फिर थोड़े समय पश्चात वह वहां से उठे और जाने के लिए रवाना होने लगे।

लेकिन उन में से एक बच्चे ने कहा कि, “अरे, दोस्तों! तुम सब कहाँ चले। हमें तो अभी पेड़ से आम भी तोड़ने हैं।” सभी दोस्त उसकी बात मान गए और वह आम तोड़ने की मशक्कत करने लगे। जब आम तोड़ने में दिक्कत हुई तो उन सभी ने पत्थर उठाए और आम के पेड़ पर मारने लगे। अब धीरे-धीरे आम नीचे गिरने लगे। बच्चे लगातार आम के पेड़ पर पत्थर मारे जा रहे थे।

उनमें से कुछ पत्थर गौतम बुद्ध के शरीर पर आकर भी लगे। पर एक पत्थर ऐसा भी था जिसके लगते ही माथे से खून टप-टप करके बहने लगा। यह नजारा देखते ही बच्चे बहुत ज्यादा डर गए। पर बुद्ध के आंखों से आंसू के झरने बहने लगे। अब तो बच्चे घबरा गए। उन सभी ने सोचा कि अब क्या होगा। बुद्ध आखिर उन सभी बच्चों को कैसी सजा देंगे। उनमें से एक बच्चा दौड़ता हुआ बुद्ध के पास गया और बोला, “गुरुजी, आप हमें माफ़ कर दीजिए ना।

हमनें जानबूझकर यह नहीं किया।” बुद्ध एकदम शांत रहे और पेड़ की तरफ लगातार देखते रहे। उस बच्चे ने फिर से कहा, “कृपया करके हमें सजा मत देना। हमसे भूल हो गई।” इस बार बुद्ध ने अपने आंसू पोछते हुए कहा कि, “तुम सभी ने उस पेड़ में क्या खास देखा?” बुद्ध के इस प्रश्न पर बच्चे एकदम से सकपका गए। बच्चों ने कहा, “हमनें देखा कि उसपर आम लगे हुए थे। हमनें सोचा कि क्यों ना पेड़ से आम तोड़ लिए जाए।

हमनें जब पेड़ पर पत्थर मारे तो आपको सिर पर चोट लग गई। चोट लगने की वजह से आपके सिर से खून आने लगा था।” बुद्ध ने कहा, “तुम सभी का उत्तर गलत था। दरअसल उस पेड़ पर पत्थर मारने पर भी वह पेड़ बिना रोए और बिना कोई शिकायत के आम देता रहा। और जबकि एक मैं हूँ जिसकी वजह से तुम डर गए।”

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