बहुत समय पहले की बात है। गौतम बुद्ध हर बार की तरह किसी गाँव से प्रवचन देकर अपने नगर की ओर लौट रहे थे। पर जब वह लौट रहे थे तो उन्होंने रास्ते में एक अजीब प्रकार का मौन महसूस किया। पूरे नगर में ऐसे सन्नाटे को देख बुद्ध ने लोगों से पूछा, “पूरे नगर में ऐसा अजीब सा सन्नाटा कैसा पसरा हुआ है? आज तक मैंने ऐसी शांति कहीं नहीं देखी।
इसके पीछे क्या कारण है?” लोगों ने कहा, “गुरुजी, इस नगर में ऐसी शांति इसलिए छाई हुई है क्योंकि यहां थोड़े दिन पहले ही एक राक्षसी भी आकर बस गई है। बात यह नहीं है कि वह राक्षसी यहां आकर क्यों बसी। बल्कि असली बात यह है कि वह राक्षसी नगर के सभी बच्चों को एक एक करके उठा ले जाती है और फिर उनको खा जाती है। इसी बात के चलते लोग हर पल दहशत में रहने लगे हैं।
सभी अपने बच्चों के साथ घरों में दुबक कर रहने लगे हैं।” जैसे ही बुद्ध ने यह सारी बात सुनी उनकी आंखों में आंसू आ गए। वह सोचने लगे कि कैसे कोई इतना घिनौना काम करके खुश रह सकता है। बुद्ध ने अपने अनुयायियों को भेजकर उस राक्षसी के बारे में पता लगाया। बुद्ध को पता चला कि उसके भी तीन बच्चे थे। और वह अपने तीनों बच्चों के साथ एक बड़ी गुफा में रहती थी। बुद्ध ने उसे सबक सिखाने की एक अलग तरकीब सोची।
उस तरकीब के अनुसार आखिरकार बुद्ध एक दिन उस राक्षसी की गुफा के पास जाकर बैठ गए और साधना करने लगे। जैसे ही वह अपने भोजन की तलाश में बाहर निकली, बुद्ध गुफा में चले गए। गुफा में बुद्ध ने देखा कि राक्षसी के तीन छोटे छोटे बच्चे खेल रहे थे। बुद्ध ने उन तीनों में से एक बच्चे को उठाया और वह नगर की ओर निकल गए। जब राक्षसी शिकार करके वापिस आई तो उसने देखा कि उसका एक बच्चा गायब था।
अपने बच्चे को वहां ना देख वह बिलख बिलख कर रोने लगी। फिर वह अपने बच्चे की तलाश में निकल पड़ी। उसने अपने बच्चे को हर जगह ढूँढा पर वह उसे कहीं नहीं मिला। आखिरकार थक हारकर वह जंगल में बैठ गई। अचानक ही उसे एक बच्चे की आवाज सुनाई दी। यह आवाज उसके बच्चे से काफी मिलती जुलती थी। अब वही आवाज उसे काफी नजदीक सुनाई देने लगी। अब बुद्ध और उसका बच्चा उसकी आंखों के सामने थे।
उसने अपने बच्चे को बुद्ध के हाथों से लेना चाहा पर बुद्ध ने देने से इंकार कर दिया। बुद्ध बोले, “मैंने तुम्हारे बच्चे को गोद ले लिया है। आज से यह मेरा बच्चा है।” राक्षसी हाथ जोड़कर विनती करते हुए बोली, “ऐसा मत कीजिए। मेरे बच्चे को मुझसे अलग मत कीजिए।” बुद्ध ने कहा, “चलो, मैं तुम्हारे बच्चे को तुम्हें सौंप दूँगा।
लेकिन क्या तुमनें कभी यह सोचा है कि उन हजारों माताओं पर क्या बीती होगी जिसके बच्चे तुम खा गई।” उस राक्षसी का सिर मानो शर्म के मारे एकदम झुक गया। उसे आज बुद्ध की बात से समझ आया कि उसने कितनी ही माताओं की भरी गोद सूनी कर दी थी। वह बुद्ध के चरणों में गिर पड़ी। अब उसे अपना बच्चा मिल गया था। उसने उसी क्षण अपने अंदर के राक्षसी भाव को खत्म किया और हमेशा के लिए संन्यासी बन गई।
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