हिंदी दिवस पर कविताएं (Hindi Diwas Poems In Hindi) | Hindi Diwas Par Kavita

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हिंदी दिवस पर कविताएं (Poems On Hindi Diwas)- हिंदी साहित्य दुनिया का सबसे समृद्ध साहित्य माना जाता है। हिंदी साहित्य का इतिहास भी काफी पुराना है। हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा में न जाने कितने ही उपन्यास, कहानियाँ, कथा-पटकथा, कविताएँ, दोहे, छंद, नारे, स्लोगन, संदेश, सुविचार, भाषण, शायरी, गीत आदि लिखे जा चुके हैं। अगर हम हिंदी कविताओं की बात करें, तो हिंदी साहित्य में कविताओं का विशेष रूप से योगदान रहा है। हिंदी कविताओं की अपनी भाषा और भावना होती है, जिसे पढ़ने पर हर बार एक नया अर्थ निकलर हमारे सामने आता है।

Poems On Hindi Diwas In Hindi

हर साल हम 14 सितंबर का दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं। हिंदी को बढ़ावा देने के लिए इस दिन देशभर में अलग-अलग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। हिंदी दिवस के मौके पर कविता पाठ का आयोजन भी किया जाता है। इसीलिए इस लेख में parikshapoint.com आपके लिए हिंदी दिवस पर कविताएं (Poem On Hindi Diwas) लेकर आया है। आप हमारे इस पेज से हिंदी दिवस पर कविता (Hindi Diwas Par Kavita), हिंदी दिवस पर छोटी सी कविता या हिंदी दिवस पर कविताएं छोटी छोटी, हिंदी दिवस पर हास्य कविता, हिंदी दिवस पर शायरियां आदि पढ़ सकते हैं। आप हमारी हिंदी दिवस कविता (Poem Hindi Diwas) और हिंदी दिवस पर शायरी (Shayari On Hindi Diwas) का इस्तेमाल हिंदी दिवस के अवसर पर कविता पाठ प्रतियोगिता में कर सकते हैं।

प्रसिद्ध हिंदी कवियों की हिंदी दिवस पर कविताएं

आपको बता दें कि इस पेज पर दी गईं सभी Hindi Diwas Per Kavita देश के लोकप्रिय कवियों और कवयित्रियों द्वारा लिखी गई हैं, जिनका नाम भी संदर्भ में दिया गया है। हर कवि और कवयित्री की अपनी भाषा शैली होती है, जिसमें वह अपनी बात को कविता का रूप देकर दूसरों तक पहुँचाते हैं। उसी प्रकार हिंदी दिवस के बारे लोगों को जागरूक करते हुए और हिंदी दिवस का महत्व बताते हुए इन्हीं कवियों ने हिंदी दिवस पर कविताएं (Hindi Diwas Par Kavitayen) लिखी और कही हैं। हिंदी दिवस के लिए कविता (Poetry For Hindi Diwas) पढ़ने के लिए नीचे देखें, जहाँ से आप हिंदी दिवस की कविता (Hindi Divas Poem) पढ़ सकते हैं।

हिंदी दिवस पर कविताएं
(Hindi Diwas Poem In Hindi)
कविता 1

हम सबकी प्यारी, लगती सबसे न्यारी। 

कश्मीर से कन्याकुमारी, राष्ट्रभाषा हमारी। 

साहित्य की फुलवारी, 

सरल-सुबोध पर है भारी। 

अंग्रेजी से जंग जारी, 

सम्मान की है अधिकारी। 

जन-जन की हो दुलारी, 

हिन्दी ही पहचान हमारी। 

– संजय जोशी ‘सजग’

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कविता 2

आवो हिन्दी पखवाड़ा मनाएँ, अपनी भाषा को ऊँचाईयों तक पहुँचाएँ

हम सब करेंगे हिन्दी में ही राज काज, तभी मिल पायेगा सही सुराज

हिन्दी के सब गुण गावो, अपनी भाषा के प्रति आस्था दर्शाओ

जब करेंगे हम सब हिन्दी में बात, नहीं बढ़ेगा तब कोई विवाद।

हिन्दी तो है कवियों की बानी, इसमें पढ़ते नानी की कहानी

हम सबको है हिन्दी से प्यार, मत करो इस भाषा का तिरस्कार।

हम सब हिन्दी में ही बोलें, अपने मन की कुण्ठा खोजें

जब बोलेंगे हम हिन्दी में शुद्ध, हमारी भाषा बनेगी समृद्ध।

हिन्दी की लिपि है अत्यंत सरल, मत घोलो इसकी तरलता में गरल

सबके कण्ठ से सस्वर गान कराती, हमारी भारत भारती को चमकाती।

यही हमारी राजभाषा कहलाती, सब भाषाओँ का मान बढाती

हम राष्ट्रगान हिन्दी में गाते, पूरे विश्व में तिरंगे की शान बढ़ाते।

हमारी भाषा ही है हमारे देश की स्वतंत्रता की प्रतीक

यह है संवैधानिक व्यवस्था में सटीक

हम सब भावनात्मकता में है एक रखते है हम सब इसमे टेक

यह विकास की ओर ले जाती सबका है ज्ञान बढ़ाती।

हिन्दी दिवस पर करें हम हिन्दी का अभिनंदन

इसका वंदन ही है माँ भारती का चरण वंदन।

– हिंदी दिवस / सावित्री नौटियाल काला

कविता 3

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।

अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन

पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।

उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय

निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।

निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय

लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय।

इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग

तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।

और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात

निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।

तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय

यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय।

विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार

सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।

भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात

विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।

सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय

उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय।

– भारतेंदु हरिश्चंद्र 

कविता 4

करते हैं तन-मन से वंदन, जन-गण-मन की अभिलाषा का

अभिनंदन अपनी संस्कृति का, आराधन अपनी भाषा का।

यह अपनी शक्ति सर्जना के माथे की है चंदन रोली

माँ के आँचल की छाया में हमने जो सीखी है बोली

यह अपनी बँधी हुई अंजुरी ये अपने गंधित शब्द सुमन

यह पूजन अपनी संस्कृति का यह अर्चन अपनी भाषा का।

अपने रत्नाकर के रहते किसकी धारा के बीच बहें

हम इतने निर्धन नहीं कि वाणी से औरों के ऋणी रहें

इसमें प्रतिबिंबित है अतीत आकार ले रहा वर्तमान

यह दर्शन अपनी संस्कृति का यह दर्पण अपनी भाषा का।

यह ऊँचाई है तुलसी की यह सूर-सिंधु की गहराई

टंकार चंद वरदाई की यह विद्यापति की पुरवाई

जयशंकर की जयकार निराला का यह अपराजेय ओज

यह गर्जन अपनी संस्कृति का यह गुंजन अपनी भाषा का।

– सोम ठाकुर

कविता 5

माँ भारती के भाल का शृंगार है हिंदी

हिंदोस्ताँ के बाग़ की बहार है हिंदी

घुट्टी के साथ घोल के माँ ने पिलाई थी

स्वर फूट पड़ रहा, वही मल्हार है हिंदी

तुलसी, कबीर, सूर औ’ रसखान के लिए

ब्रह्मा के कमंडल से बही धार है हिंदी

सिद्धांतों की बात से न होयगा भला

अपनाएँगे न रोज़ के व्यवहार में हिंदी

कश्ती फँसेगी जब कभी तूफ़ानी भँवर में

उस दिन करेगी पार, वो पतवार है हिंदी

माना कि रख दिया है संविधान में मगर

पन्नों के बीच आज तार-तार है हिंदी

सुन कर के तेरी आह ‘व्योम’ थरथरा रहा

वक्त आने पर बन जाएगी तलवार ये हिंदी

– भाल का शृंगार / डॉ. जगदीश व्योम

कविता 6

मन के भावों को जो ब्यक्त करा दे

ऐसी साहित्यिक रसधार है ‘हिंदी’

छोटे बड़े अक्षरों का जो भेद मिटा दे

ऐसा समानता का अधिकार है ‘हिंदी’

टूटे अक्षरों को सहारा जो दिला दे

ऐसी भाषाओ का हार है ‘हिंदी’

सभी नदियों को सागर में मिला दे

ऐसा शब्दो का समाहार है ‘हिंदी’

कवियों को जो गौरवान्वित कर दे

साहित्यिक ज्ञान का वो भंडार है ‘हिन्दी’

प्रकृति का जो विस्तार बता दे

ऐसी सुंदरता का सार है ‘हिंदी’

शास्त्रो का जो ज्ञान दिला दे

संस्कृत का नव अवतार है ‘हिंदी’

परमात्मा का जो दरश दिखा दे

ऐसी वात्सल्यता अपरम्पार है ‘हिंदी’

लोगो को जो नैतिकता सिखा दे

मर्यादाओ सी सुविचार है ‘हिंदी’

आप-तुम में जो भेद बता दे

ऐसे संस्कारो का ब्यवहार है ‘हिंदी’

मानव को जो मानवता सिखा दे

उन संवेदनाओ का द्वार है ‘हिंदी’

बिछड़े हुए को जो स्वयं से मिला दे

ऐसा सुखद प्यार है ‘हिंदी’

नरेशो को जो गौरव महसूस कर दे

सोने चांदी सा उपहार है ‘हिंदी’

– गौपुत्र श्याम नरेश दीक्षित

कविता 7

(हिन्दी दिवस 14 सितम्बर पर विशेष)

हिन्दी इस देश का गौरव है, हिन्दी भविष्य की आशा है

हिन्दी हर दिल की धड़कन है, हिन्दी जनता की भाषा है

इसको कबीर ने अपनाया

मीराबाई ने मान दिया

आज़ादी के दीवानों ने

इस हिन्दी को सम्मान दिया

जन जन ने अपनी वाणी से हिन्दी का रूप तराशा है

हिन्दी हर क्षेत्र में आगे है

इसको अपनाकर नाम करें

हम देशभक्त कहलाएंगे

जब हिन्दी मे सब काम करें

हिन्दी चरित्र है भारत का, नैतिकता की परिभाषा है

हिन्दी हम सब की ख़ुशहाली

हिन्दी विकास की रेखा है

हिन्दी में ही इस धरती ने

हर ख़्वाब सुनहरा देखा है

हिन्दी हम सबका स्वाभिमान, यह जनता की अभिलाषा है

– हिन्दी जनता की भाषा / देवमणि पांडेय

कविता 8

हिंदी हमारी आन है, हिंदी हमारी शान है, 

हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है, 

हिंदी हमारी वर्तनी, हिंदी हमारा व्याकरण, 

हिंदी हमारी संस्कृति, हिंदी हमारा आचरण, 

हिंदी हमारी वेदना, हिंदी हमारा गान है, 

हिंदी हमारी आत्मा है, भावना का साज़ है, 

हिंदी हमारे देश की हर तोतली आवाज़ है, 

हिंदी हमारी अस्मिता, हिंदी हमारा मान है, 

हिंदी निराला, प्रेमचंद की लेखनी का गान है, 

हिंदी में बच्चन, पंत, दिनकर का मधुर संगीत है, 

हिंदी में तुलसी, सूर, मीरा जायसी की तान है, 

जब तक गगन में चांद, सूरज की लगी बिंदी रहे, 

तब तक वतन की राष्ट्र भाषा ये अमर हिंदी रहे, 

हिंदी हमारा शब्द, स्वर व्यंजन अमिट पहचान है, 

हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।

– अंकित शुक्ला

कविता 9

संस्कृत की एक लाड़ली बेटी है ये हिन्दी, 

बहनों को साथ लेकर चलती है ये हिन्दी, 

सुंदर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है, 

ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिन्दी, 

पाथेय है, प्रवास में, परिचय का सूत्र है, 

मैत्री को जोड़ने की सांकल है ये हिन्दी, 

पढ़ने व पढ़ाने में सहज़ है सुगम है, 

साहित्य का असीम सागर है ये हिन्दी, 

तुलसी, कबीर, मीरा ने इसमें ही लिखा है, 

कवि सूर के सागर की गागर है ये हिन्दी,

वागेश्वरी के माथे पर वरदहस्त है, 

निश्चय ही वंदनीय मां-सम है ये हिंदी, 

अंग्रेजी से भी इसका कोई बैर नहीं है, 

उसको भी अपने पन से लुभाती है ये हिन्दी, 

यूं तो देश में कई भाषाएं और हैं, 

पर राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी।

– मृणालिनी घुले

कविता 10

जन-जन की भाषा है हिंदी, 

भारत की आशा है हिंदी, 

जिसने पूरे देश को जोड़े रखा है, 

वो मज़बूत धागा है हिंद, 

हिन्दुस्तान की गौरवगाथा है हिंदी, 

एकता की अनुपम परम्परा है हिंदी, 

जिसके बिना हिन्द थम जाए, 

ऐसी जीवन रेखा है हिंदी, 

जिसने काल को जीत लिया है, 

ऐसी कालजयी भाषा है हिंदी, 

सरल शब्दों में कहा जाए तो, 

जीवन की परिभाषा है हिंदी।

– अभिषेक मिश्र

कविता 11

हिन्दी मेरे रोम-रोम में,

हिन्दी में मैं समाई हूँ,

हिन्दी की मैं पूजा करती,

हिन्दुस्तान की जाई हूँ

सबसे सुन्दर भाषा हिन्दी,

ज्यों दुल्हन के माथे बिन्दी,

सूर, जायसी, तुलसी कवियों की,

सरित-लेखनी से बही हिन्दी,

हिन्दी से पहचान हमारी,

बढ़ती इससे शान हमारी,

माँ की कोख से जाना जिसको,

माँ,बहना, सखी-सहेली हिन्दी,

निज भाषा पर गर्व जो करते,

छू लेते आसमान न डरते,

शत-शत प्रणाम सब उनको करते,

स्वाभिमान..अभिमान है हिन्दी…

हिन्दी मेरे रोम-रोम में,

हिन्दी में मैं समाई हूँ,

हिन्दी की मैं पूजा करती,

हिन्दुस्तान की जाई हूँ

– सुधा गोयल

कविता 12

सारी भगिनी भाषाओं को अपने आंचल में दुलराये,

निज भाषा उन्नति को सबकी उन्नतियों का मूल बताए।

भारतेन्दु का दोहा जैसे भारत माता के मंदिर में

हंस-वाहिनी देवी आकर खुद पूजा का दीप जलाए।

अपनी हिन्दी तो है भैया, माखन चोर कन्हैया जैसी

हर भाषा बोली से उसके शब्द चुराकर ले आती है।

भरे तिजोरी शब्द कोष की, बन बैठी घन्ना से ठानी

सारे भारत में संपर्कित होकर पहचानी जाती है।

सरल दीखती, लेकिन घट में गीता ज्ञान छिपा है,

ऐसे जैसे गउऐ चरा रहा हो, मधुवन में गोकुल का छोरा

सब को अपना प्यार बांटती, सब पर अपना स्नेह लुटाती

जैसे बहिना ने भेजा हो, भैया को राखी का डोरा।

हिन्दी ही अमीर खुसरो की बोली में रस घोल रही है।

सूफी-संतों के मजार की कव्वाली में बोल रही है,

कृष्ण-प्रेम के भजन सुनाती नाच उठे है मीरा बाई

द्वैत मिटा कर पूर्ण समर्पण के रहस्य को खोल रही है।

दक्षिण भारत के मित्रों की बोली तो ऐसी लगती है,

जैसे कंबन रामायण ने बांची हो तुलसी चौपाई,

जैसे हरि पेड़ी पर गूंजे बिस्मिल्ला खां की शहनाई

जैसे भातखंडे ने इसमें नाद-बह्म की अलख जगाई।

 – बशीर अहमद मयूख

कविता 13

जन-गण-मन की भाषा हिंदी,

कोटि – कोटि कण्ठों की वाणी।

आन-बान-शान यह राष्ट्र की,

प्रमुदित इस पर वीणा पाणी।।

सुर, कबीर, तुलसी की बानी,

मिश्री जैसी मधुरम हिंदी

गर्व करें हम सब हिंदी पर

नहीं किसी से भी कम हिंदी

बिटिया भारत मां की हिंदी,

मन से मन को है जोड़ती।

गले लगाती निज बहिनों को

एक सूत्र में सब को बांधती।।

एक राष्ट्र और भाषा एक

मन्त्र यही उत्थान का

जैसा लिखती, पढ़ती वैसा

सिद्धांत यह है विज्ञान का

आओ हिंदी में पढ़ें – लिखें

करें काम सारे हिंदी में

प्रेम करें हम निज भाषा से

सौंदर्य निहित जिसका बिंदी में।

– कृष्णा कुमारी ‘कमसिन’

हिंदी दिवस पर छोटी छोटी कविताएं

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लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखूँ हिन्दी

चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना।

भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की

स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना।

– राम प्रसाद बिस्मिल

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बनने चली विश्व भाषा जो,

अपने घर में दासी,

सिंहासन पर अंग्रेजी है,

लखकर दुनिया हांसी,

लखकर दुनिया हांसी,

हिन्दी दां बनते चपरासी,

अफसर सारे अंग्रेजी मय,

अवधी या मद्रासी,

कह कैदी कविराय,

विश्व की चिंता छोड़ो,

पहले घर में,

अंग्रेजी के गढ़ को तोड़ो

– अटल बिहारी वाजपेयी

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गूंजी हिन्दी विश्व में

गूंजी हिन्दी विश्व में,

स्वप्न हुआ साकार;

राष्ट्र संघ के मंच से,

हिन्दी का जयकार;

हिन्दी का जयकार,

हिन्दी हिन्दी में बोला;

देख स्वभाषा-प्रेम,

विश्व अचरज से डोला;

कह कैदी कविराय,

मेम की माया टूटी;

भारत माता धन्य,

स्नेह की सरिता फूटी!

– अटल बिहारी वाजपेयी

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पड़ने लगती है पियूष की शिर पर धारा।

हो जाता है रुचिर ज्योति मय लोचन-तारा।

बर बिनोद की लहर हृदय में है लहराती।

कुछ बिजली सी दौड़ सब नसों में है जाती।

आते ही मुख पर अति सुखद जिसका पावन नामही।

इक्कीस कोटि-जन-पूजिता हिन्दी भाषा है वही।

अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ 

करो अपनी भाषा पर प्यार ।

जिसके बिना मूक रहते तुम, रुकते सब व्यवहार ।।

जिसमें पुत्र पिता कहता है, पतनी प्राणाधार,

और प्रकट करते हो जिसमें तुम निज निखिल विचार ।

बढ़ायो बस उसका विस्तार ।

करो अपनी भाषा पर प्यार ।।

भाषा विना व्यर्थ ही जाता ईश्वरीय भी ज्ञान,

सब दानों से बहुत बड़ा है ईश्वर का यह दान ।

असंख्यक हैं इसके उपकार ।

करो अपनी भाषा पर प्यार ।।

यही पूर्वजों का देती है तुमको ज्ञान-प्रसाद,

और तुमहारा भी भविष्य को देगी शुभ संवाद ।

बनाओ इसे गले का हार ।

करो अपनी भाषा पर प्यार ।।

मैथिली शरण गुप्त

हिंदी दिवस पर हास्य कविता

चूहे तुमको नमस्कार है

चुके नहीं इतना उधार है

महँगाई की अलग मार है

तुम पर बैठे हैं गणेश जी

हम पर तो कर्जा सवार है, चूहे तुमको नमस्कार है।

भक्त जनों की भीड़ लगी है

खाने की क्या तुम्हें कमी है

कोई देवे लड्डू, पेड़े

भेंट करे कोई अनार है, चूहे तुमको नमस्कार है।

 परेशान जो मुझको करती

पत्नी केवल तुमसे डरती

तुम्हें देखकर हे चूहे जी

चढ़ जाता उसको बुखार है, चूहे तुमको नमस्कार है।

आफिस-वर्क एकदम निल है

फिर भी ओवरटाइम बिल है

बिल में घुसकर पोल खोल दो

सोमवार भी रविवार है, चूहे तुमको नमस्कार है।

 कुर्सी है नेता का वाहन

जिस पर बैठ करे वह शासन

वहाँ भीड़ है तुमसे ज्यादा

कह कुर्सी का चमत्कार है, चूहे तुमको नमस्कार है।

राजनीति ने जाल बिछाए

मानव उसमें फंसता जाए

मानवता तो नष्ट हो रही

पशुता में आया निखार है, चूहे तुमको नमस्कार है।

– जैमिनी हरियाणवी

छंद को बिगाड़ो मत, गंध को उजाड़ो मत

कविता-लता के ये सुमन झर जाएंगे।

शब्द को उघाड़ो मत, अर्थ को पछाड़ो मत,

भाषण-सा झाड़ो मत गीत मर जाएंगे।

हाथी-से चिंघाड़ो मत, सिंह से दहाड़ो मत

ऐसे गला फाड़ो मत, श्रोता डर जाएंगे।

घर के सताए हुए आए हैं बेचारे यहाँ

यहाँ भी सताओगे तो ये किधर जाएंगे।

– ओम प्रकाश आदित्य

चांद औरों पर मरेगा क्या करेगी चांदनी

प्यार में पंगा करेगा क्या करेगी चांदनी

चांद से हैं खूबसूरत भूख में दो रोटियाँ

कोई बच्चा जब मरेगा क्या करेगी चांदनी

डिग्रियाँ हैं बैग में पर जेब में पैसे नहीं

नौजवाँ फ़ाँके करेगा क्या करेगी चांदनी

जो बचा था खून वो तो सब सियासत पी गई

खुदकुशी खटमल करेगा क्या करेगी चांदनी

दे रहे चालीस चैनल नंगई आकाश में

चाँद इसमें क्या करेगा क्या करेगी चांदनी

साँड है पंचायती ये मत कहो नेता इसे

देश को पूरा चरेगा क्या करेगी चांदनी

एक बुलबुल कर रही है आशिक़ी सय्याद से

शर्म से माली मरेगा क्या करेगी चांदनी

लाख तुम फ़सलें उगा लो एकता की देश में

इसको जब नेता चरेगा क्या करेगी चांदनी

ईश्वर ने सब दिया पर आज का ये आदमी

शुक्रिया तक ना करेगा क्या करेगी चांदनी

गौर से देखा तो पाया प्रेमिका के मूँछ थी

अब ये “हुल्लड़” क्या करेगा, क्या करेगी चांदनी

– हुल्लड़ मुरादाबादी

बटुकदत्त से कह रहे, लटुकदत्त आचार्य

सुना? रूस में हो गई है हिंदी अनिवार्य

है हिंदी अनिवार्य, राष्ट्रभाषा के चाचा-

बनने वालों के मुँह पर क्या पड़ा तमाचा

कहँ ‘काका’, जो ऐश कर रहे रजधानी में

नहीं डूब सकते क्या चुल्लू भर पानी में

पुत्र छदम्मीलाल से, बोले श्री मनहूस

हिंदी पढ़नी होये तो, जाओ बेटे रूस

जाओ बेटे रूस, भली आई आज़ादी

इंग्लिश रानी हुई हिंद में, हिंदी बाँदी

कहँ ‘काका’ कविराय, ध्येय को भेजो लानत

अवसरवादी बनो, स्वार्थ की करो वक़ालत

– काका हाथरसी

हिंदी दिवस पर शायरियां

शायरी 1

होठ खामोश थे सिसकियाँ कह गयी,

द्वार बंद थे खिड़कियाँ कह गयी,

कुछ हमने कहा कुछ हिंदी कह गयी,

जो न कह पायें वो हिचकियाँ कह गयी।

शायरी 2

वक्ताओं की ताकत भाषा,

लेखक का अभिमान हैं भाषा,

भाषाओं के शीर्ष पर बैठी,

मेरी प्यारी हिंदी भाषा।

शायरी 3

हिंदी और हिन्दुस्तान हमारा हैं और हम इसकी शान हैं

दिल हमारा एक हैं और एक हमारे जान हैं।

शायरी 4

जबकि हर साँस मेरी , तेरी वजह से है माँ,

फिर तेरे नाम का दिन एक मुकर्रर क्यूँ हैं?

शायरी 5

जिसमें है मैंने ख्वाब बुने,

जिस से जुड़ी मेरी हर आशा,

जिससे मुझे पहचान मिली,

वो है मेरी हिंदी भाषा।

शायरी 6

बिछड़ जाएंगे अपने हमसे,

अगर अंग्रेजी टिक जाएगी,

मिट जाएगा वजूद हमारा,

अगर हिंदी मिट जाएगी।

नोट- उपरोक्त हिंदी दिवस पर शायरियाँ अज्ञात हैं। शायरी लिखने वाले का नाम पता चलने पर संदर्भित कर दिया जाएगा।

parikshapoint.com की तरफ से आप सभी को “हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं”।

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2 thoughts on “हिंदी दिवस पर कविताएं (Hindi Diwas Poems In Hindi) | Hindi Diwas Par Kavita”

  1. बहुत सुंदर कविताएं। विश्व हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

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