बहुत समय पहले की बात है जब मातंग नामक राज्य हुआ करता था। वह राज्य बहुत सुंदर था। उस राज्य के राजा का नाम अर्जुनदेव था। अर्जुनदेव बहुत ही बुद्धिमान और बलशाली राजा था। उसका साम्राज्य संपूर्ण देश के साथ विदेश तक भी फैला हुआ था। देश और विदेश के अन्य छोटे और बड़े राजा उसके नेतृत्व के कायल थे। हर कोई मातंग राज्य को आंख उठाकर देखने से पहले सौ बार सोचता था।
अर्जुनदेव ने बड़ी ही कुशलतापूर्वक अपने साम्राज्य को संभाला हुआ था। अर्जुनदेव की एकमात्र इकलौती बेटी थी जिसका नाम था एकपर्णिका। एकपर्णिका भी अपने पिता की तरह समझदार और साहसी लड़की थी। वह बहुत दबंग थी। घुड़सवारी और तलवारबाजी में वह अच्छे से निपुण थी। गुणी होने के साथ-साथ वह बहुत ज्यादा सुंदर भी थी। उसकी खूबसूरती के चर्चे दूर दूर तक फैले हुए थे। उसकी खूबसूरती के चलते कई राजकुमार उससे शादी करने का प्रस्ताव रख चुके थे।
उसी मातंग राज्य का मंत्री था अधिराज देव। क्योंकि अधिराज देव के माता-पिता अपने बेटे को राजा बनता देखना चाहते थे इसलिए उन्होंने उसका नाम अधिराज देव रख दिया। अपने नाम के हिसाब से वह खुद को भविष्य का राजा देखता था। वह चाहता था कि अर्जुनदेव को मार दिया जाए और उसकी मृत्यु के पश्चात वह मातंग राज्य का राजा बन जाए। उसकी नजर राजकुमारी पर भी थी।
वह राजकुमारी से शादी करना चाहता था। उसने राजा को मारने की कई योजनाएं बनाई, परंतु वह हर बार मात खा जाता था। लेकिन राजा अर्जुनदेव को उसके ऊपर बहुत ज्यादा विश्वास था। वह अधिराज देव को अपने मंत्री से ज्यादा अपना छोटा भाई समझता था। अर्जुनदेव को नहीं पता था कि उसके पीठ पीछे अधिराज देव उसे मारने की साजिश रच रहा है।
एक दिन अर्जुनदेव राजमहल में अकेला था। उसकी पत्नी और बेटी भ्रमण पर गई थी। सावन का महीना था। चारों ओर हरियाली छाई हुई थी। अर्जुनदेव को भी यह मौसम बहुत पसंद था। अचानक ही जोर से बादल गरजने लगे। बारिश होने ही वाली थी। कोयल की कूक कानों को सुकून प्रदान कर रही थी।
अचानक ही एक सुंदर हंस ने राजा का ध्यान आकर्षित कर लिया। वह सफेद हंस था। हंस को देखकर राजा उसकी ओर दौड़ा। हंस आगे आगे और राजा पीछे-पीछे। हंस भागे ही जा रही थी। अब बारिश भी शुरू हो गई। क्योंकि बारिश के चलते फर्श गीला हो गया था इसलिए राजा का पांव फिसल गया। जमीन पर तेजी से गिरते ही वह मूर्छित हो गया। राजा अर्जुनदेव को दिल का दौरा आ गया था। आज एक महान राजा का अंत हो गया था।
अचानक ही अर्जुनदेव का मंत्री अधिराज देव राजमहल में दाखिल हुआ। उसने जब राजा को धरती पर मूर्छित पड़े हुए देखा तो वह दौड़ता हुआ अर्जुनदेव के पास पहुंचा। जब उसने राजा की नब्ज देखी तो उसे पता चल गया कि वह मर चुका था। अधिराज देव घबरा गया। फिर वह जोर से रोते हुए बोला, “महाराज, आपको यह क्या हो गया।
आप दुनिया को क्यों छोड़ गए? अब इस दुनिया में हमारा कौन बचा है। कौन हमारी रक्षा करेगा। हम अब किसकी छत्र छाया में पलेंगे बढ़ेंगे।” फिर अचानक ही अधिराज देव गुस्से भरी आवाज में बोला, “महाराज, अच्छा हुआ जो आप इस दुनिया से चले गए। यह काम तो मैं कितने समय से करना चाह रहा था। मैंने कितनी बार आपको मरवाने की कोशिश की। मैं हर बार इस कोशिश में नाकामयाब रहा।
लेकिन आज कुदरत भी यही चाह रही थी कि आप इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दो। अब यह राजगद्दी मेरी होगी। अब मैं मातंग का राजा बनूंगा। राजा बनने के बाद मैं आपकी बेटी एकपर्णिका से विवाह भी करूंगा। मुझे कभी से इस सिंहासन और राजकुमारी को पाने की इच्छा थी। अब मेरी यह मुराद पूरी हो गई।”
एकपर्णिका ने अधिराज देव की सारी बात सुन ली। उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने सोचा कि जिस मंत्री पर उन सभी ने इतना विश्वास किया था वह इतना गद्दार निकला। उसने कभी अपने सपने में भी ऐसा नहीं सोचा था। वह दौड़ती हुई सिंहासन के पास गई और जोर जोर से रोने लगी। उसने सिंहासन की ओर देखते हुए कहा, “सिर्फ तुम्हारी वजह से अपने भी ग़द्दार बन जाते हैं। तुम भरा-पूरा परिवार भी तोड़ देते हो।
आज मैं तुम्हें यह श्राप देती हूं कि जो कोई भी इस सिंहासन पर बैठेगा वह कभी भी प्रगति नहीं कर पाएगा। वह इंसान दुर्गति के खाई में ही गिरेगा। और आज मैं अपना भी देह त्याग दूंगी। मुझे नहीं रहना अधिराज देव की गुलामी में।” ऐसा कहकर एकपर्णिका फिर से रोने लगी। उसने पास में ही जल रही अलाव से लकड़ी जलाई और सीधे ही सिंहासन पर फेंक दी। सिंहासन अब तेजी से जलने लगा। यह करने के बाद एकपर्णिका ने अपने हाथ की नसें काट ली और वह भी हमेशा के लिए दुनिया छोड़कर चली गई।
राजा अर्जुनदेव की पत्नी ने अपने पति और बेटी को खोने के बाद संन्यास ले लिया। अधिराज देव की मुराद पूरी हो गई। अर्जुनदेव के जाने के बाद अधिराज देव ने राजा की जगह ले ली। थोड़े दिनों तक तो उसने राजा बनकर खूब ऐश्वर्य और विलास का आनंद लिया। लेकिन थोड़े ही दिन बाद उसको एक ऐसी बीमारी ने जकड़ लिया जिसके बारे में पहले कभी किसी ने भी नहीं सुना था। उसको ज्वर रहने लगा था। उसकी तबीयत दिन ब दिन खराब होते जा रही थी।
लंबे समय तक बीमारी से जुझने के बाद एक दिन अधिराज देव का भी अंत हो गया। मातंग राज्य का भव्य साम्राज्य हमेशा के लिए ढ़ल गया। मातंग राज्य हमेशा के लिए खंडहर बन गया। राजमहल का वह सिंहासन सच में श्रापित हो गया। उस सिंहासन पर राजकुमारी की आत्मा का कब्जा हो गया।
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