भूतों की कहानी-6 “आत्मा की सवारी”

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Ekta Ranga

रमेश हर दिन की तरह अपने काम से फ्री होकर अपने घर की ओर निकलने की तैयारी में था। उसने देखा कि घड़ी भोर के चार बजाने वाली थी। यह हर दिन का सिलसिला था। रमेश एक बड़ी कंपनी में काम करता था। उस कंपनी में 24 घंटे काम चलता था। काम रुकने का नाम ही नहीं लेता था।

रमेश को रात की पारी में काम आवंटित हो रखा था। दिन में वह आराम करता था। और रात को कंपनी के लिए काम। यह सिलसिला लगातार 4 सालों से चल रहा था। कभी कभी तो वह इतना थक जाता था कि वह सोचता कि काम को हमेशा के लिए अलविदा कह दे। लेकिन फिर घर की जिम्मेदारियां उसे सताने लगती। वह चाहते हुए भी यह कंपनी नहीं छोड़ सकता था। आखिर इतनी अच्छी खासी रकम जो मिलती थी उसे वहां।

उसको अपनी जिम्मेदारियां अच्छे से मालूम थी। उसके पिता इस दुनिया में नहीं थे। घर पर उसकी माँ और एक छोटा भाई था जो स्कूल में पढ़ रहा था। रमेश ने अपनी भाई की स्कूल की फीस का जिम्मा खुद ले रखा था। अपनी माँ की शुगर की बीमारी की भी चिंता थी उसे। जिम्मेदारी तो कब से ही उसके पीठ पर सवार हो गई थी।

लोग तो रमेश की माँ को कहा करते थे कि ऐसे कलयुग में इतना आज्ञाकारी बेटा मिलना नसीब वालों के भाग्य में होता है। रमेश ने जिम्मेदारी के चलते ही अभी तक शादी भी नहीं की थी। उसकी माँ उसे बहुत बार समझाती कि वो अब शादी करके अपना घर बसा ले। लेकिन उसने इतने दिनों से यह कहकर शादी टाल रखी थी कि वह पहले अपने भाई की पढ़ाई पूरी करवाएगा।

इतने सालों में उसके मन में एक बार भी शादी के लिए मन में लड्डू नहीं फूटा था। उसे काम के चलते यह पता ही नहीं चला कि कब इतने सारे साल निकल गए। लेकिन एक लड़की थी जो हाल के दिनों में उसकी दोस्त जरूर बन गई थी। उसकी एक कॉफी की स्टोर थी। रमेश हर दिन उसकी स्टोर पर जाकर कॉफी की चुस्कियां लिया करता था। कॉफी स्टोर पर जाकर वह अपने सारे दुख दर्द भूल जाता था। उस लड़की को देखकर उसे ऐसा लगता था जैसे कि मानो वह चेहरा जाना पहचाना हो। लेकिन फिर वह उसे अपना वहम समझता। वह लड़की भी रमेश से बातचीत करके अपना मन हल्का कर लिया करती थी।

घड़ी में अब चार बज गए थे। उसने अपने ड्राइवर मोहन सिंह को फोन लगाया और उसे अपनी कंपनी तक बुलाया। मोहन सिंह करीब एक साल से उसका ड्राइवर था। उसकी हर रोज की यह जिम्मेदारी थी कि वह रमेश को घर से ऑफिस छोड़ता और ऑफिस से घर। रमेश ने उसको बतौर ड्राइवर इसलिए रखा हुआ था क्योंकि वह गाड़ी बहुत अच्छी चलाता था। आज भी मोहन सिंह उसको लेने के लिए पहुंचने वाला था।

रमेश जब अपने ऑफिस से बाहर निकला तो उसने देखा कि आसमान काले बादलों से घिरा पड़ा था। बादल इतने काले थे जैसे कि मानो किसी ने काली स्याही फ़ेर दी हो आसमान में। आसमान में बादल जोरों से गरज रहे थे। आज ऐसा लग रहा था जैसे कि मानो कोई बड़ा तूफान आने वाला था। ठंडी हवा भी जोर से बहने लगी थी। भोर हो गई थी। लेकिन काली घटाओं को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कि मानो अभी भी काली रात हो। रमेश ने मन ही मन सोचा कि आज प्रकृति इतने डरावने रूप में क्यों थी।

तभी उसने देखा कि एक लड़की भीगती हुई उधर ही आ रही थी। रमेश ने मन ही मन यह सोचा कि इतनी सुबह-सुबह यह लड़की कहां से आ रही थी। वह भागती हुई आई और रमेश की बगल में खड़ी हो गई। उसने अपनी आंखों पर काले रंग का बड़ा सा चश्मा लगा रखा था। रमेश ने सोचा कि क्यों ना इस लड़की से पूछा जाए कि आखिर वह कहां जा रही थी। पर इससे पहले की वह पूछता उस लड़की ने बताया कि वह अपने घर जाना चाहती है।

उसका घर यहीं पास में ही है। उस लड़की का चेहरा तो इतना छोटा था और उसने अपने चेहरे पर जो बड़ा सा चश्मा लगा रखा था वह थोड़ा अजीब था। उस लड़की ने फिर से रमेश से कहा कि वह अपने घर पर जाना चाहती है। क्या आप मुझे मेरे घर छोड़ सकते हैं। इस पर रमेश ने कहा कि उसका ड्राइवर मोहन सिंह आने को ही है। कि वह लड़की उसके ड्राइवर के साथ जा सकती है।

इतने में ही रमेश ने देखा कि उसका ड्राइवर मोहन सिंह भी अब वहां पर पहुंच चुका था। रमेश ने मोहन सिंह से कहा कि वह उस लड़की को अपने घर तक छोड़कर आ जाए। इस पर मोहन सिंह ने रमेश से कहा, “सर, मैं इसे छोड़कर तो आ जाउंगा लेकिन फिर आपको भी तो घर छोड़ना होगा ना।

इधर मौसम भी बहुत खराब है। बारिश कभी भी हो सकती है। इसलिए आप भी साथ ही आ जाइए।” लेकिन रमेश ने मोहन सिंह से कहा कि पहले वह उस लड़की को घर छोड़ दे ताकि वो सुरक्षित तरीके से घर पहुंच जाए। मोहन सिंह इस बात के लिए राजी हो गया। तभी अचानक बहुत ही जोरों से बारिश होने लगी। मोहन सिंह उस लड़की को लेकर निकल गया।

रमेश को वहां खड़े एक घंटे से भी ज्यादा हो गया था। लेकिन मोहन सिंह लौटा ही नहीं। उसे अब यह चिंता सताने लगी थी कि कहीं मोहन सिंह के साथ कोई बड़ी दुर्घटना तो नहीं हो गई है। आखिरकार रमेश को लोकल टैक्सी पकड़कर घर जाना पड़ा। जैसे ही वह घर पहुंचा, बारिश ने अपना रौद्र रूप धारण कर लिया था। तेज हवा और बारिश के चलते बहुत से पेड़ टूट गए थे। उसे लगा कि आज भगवान उसके साथ थे कि वह सही सलामत अपने घर पहुंच गया। लेकिन रमेश को अभी भी मोहन सिंह की बहुत चिंता हो रही थी। फिर लगातार दो दिन तक बड़े जोरों से बारिश हुई।

तेज आँधी और बारिश के चलते ही रमेश के कंपनी की तरफ से भी अवकाश घोषित कर दिया था। वह सुबह सुबह की कॉफी की चुस्कियों को लेते आज का अखबार पढ़ रहा था। अखबार पढ़ते पढ़ते उसकी नजर मुख्य समाचार पर गई। “दो दिन पहले एक व्यक्ति की मौत हो गई थी जिसका नाम मोहन सिंह था। यह वही व्यक्ति था जिसने एक साल पहले महिमा के साथ गलत काम किया था। गलत काम करने के बाद वह बहुत समय से फरार था। पुलिस इसे बहुत दिनों से ढूंढ रही थी। आखिरकार कुदरत ने उसे सजा दे दी थी।” यह पूरी खबर पढ़ते ही रमेश की धड़कनें एकदम से तेज हो गई थी।

जिस कॉफी की दुकान से वह कॉफी पीता था उसकी मालकिन भी महिमा जैसी ही दिखती थी। हूबहू वही शक्ल। रमेश को याद आ गया कि पिछले साल महिमा नाम की लड़की ने खुद के साथ गलत काम हो जाने के बाद अपनी जान दे दी थी। महिमा भी एक कॉफी स्टोर चलाती थी। फिर रमेश ने इंटेरनेट पर महिमा की एक दो और तस्वीरें देखी तो उसने देखा कि महिमा का चेहरा छोटा सा था ठीक उसी प्रकार जैसे उस कॉफी स्टोर वाली लड़की का था।

उसने एक दूसरी फोटो में देखा कि उसने एक बड़ा सा काले रंग का चश्मा अपनी आंखों पर लगा रखा था। उसका चेहरा ठीक वैसा लग रहा था जैसा उस दिन बारिश भीगी हुई उस लड़की का था। वो कॉफी स्टोर वाली लड़की उसको हमेशा बोलती थी कि उसे एक बड़ा बदला लेना है। रमेश को अब समझ में आ चुका था कि यह महिमा का ही रास्ते का भूत था जिसने मोहन सिंह की जान ले ली थी। महिमा का बदला पूरा हो गया था।

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