नैतिक कहानी-1 मूर्ख गधा

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Ekta Ranga

बहुत समय पहले की बात है। एक बड़े गाँव में एक व्यवसायी रहता था। उस व्यवसायी का काम बहुत अच्छा चल रहा था। उसका काम यह था कि उसको सामान को अपने शहर से दूसरे शहर पहुंचाना होता था। इसी काम का उसको पैसा मिलता था। उस व्यापारी के पास सामान को ढोने के लिए ऊंट, गधे और खच्चर थे। लेकिन वह व्यापारी सबसे ज्यादा इस्तेमाल गधों का किया करता था। गधे उसका काम बहुत आसान कर दिया करते थे।

उन सभी गधों में एक गधा ऐसा भी था जो कि उसका प्रिय था। वह गधा उस व्यापारी को इसलिए प्रिय था क्योंकि वह व्यापार के हर काम को बिना कोई शिकायत के पूरा कर देता था। शुरुआत में तो वह गधा सच में बिना थके उस व्यापारी का काम कर दिया करता था।

लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया उस गधे को ऐसे लगने लगा था जैसे उसका मालिक उस पर अधिक रौब झाड़ रहा हो। एक दिन उसने सोचा कि क्यों ना अपने मालिक को सबक सिखाया जाए। इसके लिए उसने एक तरकीब सोची।

एक दिन वह व्यापारी गधे पर नमक की भरी बोरी को लादकर उस गधे के साथ दूसरे शहर रवाना हो गया। उस गधे ने आज अपने मालिक को मज़ा क्या चखाने की सोची हुई थी। आज जब वह व्यापारी गधे को नदी पार करवा रहा था तो वह गधा अचानक ही नदी में गिर गया। नदी में गिरने की वजह से वह तेज तेज चिल्लाने लगा। व्यापारी ने गधे को तो बचा लिया पर उसकी नमक की बोरी नदी में गिरने की वजह से फट गई। और नमक नदी में गिर गया।

अगले दिन भी जब व्यापारी नमक की बोरी गधे की पीठ पर लादकर जब दूसरे शहर के लिए निकला तो फिर से गधा नदी में गिर गया। आज फिर से व्यापारी ने उसकी जान बचा ली। लेकिन आज फिर से उसको नमक का नुकसान हो गया था। यह सिलसिला पूरे हफ्ते जब लगातार जारी रहा तो वह व्यापारी समझ गया था कि यह सब उस गधे की ही चाल थी।

उसने सोचा कि वह तो गधे को कोई भी तरह की तकलीफ नहीं देता है तो फिर गधे ने उसके साथ ऐसा क्यों किया।फिर व्यापारी ने सोचा कि इस गधे को कोई ऐसा सबक सिखाना पड़ेगा जिससे उसका नुकसान भी ना हो और वह सबक भी सीख जाए।

अगले दिन व्यापारी ने नमक की बोरी की जगह लकड़ियों का गठर गधे के कंधे पर टांग दिया। आज गधे को अपनी पीठ पर अतिरिक्त बोझ का एहसास हुआ। हर दिन की ही तरह आज भी वह गधा अपने मालिक के साथ लकड़ी का गट्ठर लादे दूसरे शहर के लिए रवाना हो गया। फिर जैसे ही वह नदी पार करने लगा तो वह गिर गया। लेकिन इस बार उसकी पीठ पर नमक की बोरी की बजाए लकड़ी का गट्ठर था।

वह गट्ठर उसकी पीठ पर ज्यों का त्यों पड़ा रहा। नमक की तरह लकड़ी को कुछ नुकसान नहीं हुआ। व्यापारी को थोड़ा गुस्सा आ गया कि आज उसकी चाल कामयाब क्यों नहीं हुई। उसके मालिक ने उसको सहारा देकर उठाया। अब उसकी कोई आनाकानी नहीं चलने वाली थी। उसको उसी भारी गट्ठर के साथ दूसरे शहर रवाना होना पड़ा।

इस कहानी से सीख – इस कहानी से हमें यह सीख मिलती हैं कि हमें अपने जीवन में कभी भी झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए। जीवन में झूठ बोलना हमारे लिए बहुत भारी पड़ सकता है।

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