नैतिक कहानी-11 भगवान का साथ

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Ekta Ranga

गोपाल बहुत ही धार्मिक और दयालु किस्म का व्यक्ति था। वह हर किसी की भलाई का सोचता था। उसका दिल बहुत ही ज्यादा उदार था। उसका मन कांच की तरह एकदम साफ था। वह किसी का भी दिल नहीं दुखाता था। वह अपने दो बच्चों और पत्नी के साथ मज़े से जीवन व्यतीत कर रहा था। पेशे से वह किसान था लेकिन उसका दिल एक साहुकार की तरह था। कहने का अर्थ यह है कि वह उदारता के साथ हर किसी की तन-मन और धन से पूरी सेवा करता था।

उसके जीवन में सब कुछ सही चल रहा था। उसने सोचा कि वह कितना भाग्यशाली है कि उसे इतना प्यार करने वाला परिवार मिला है। उसके रिश्तेदार भी उससे कितना प्रेम करते हैं। वह यह सोचकर बहुत ज्यादा खुश होता था। लेकिन उसे नहीं पता था कि उसके जीवन में एक बड़ा भूचाल आने वाला था। वह अपने जीवन में आने वाले कल से अनभिज्ञ था।

एक दिन उसके गाँव में बहुत तेज बारिश शुरू हुई। बारिश बहुत तेज थी। लगातार तीन दिन तक मूसलाधार बारिश हुई। भारी बारिश ने खूब तबाही मचाई। नदियां उफान पर आ गई। इसी के चलते ही बाढ़ ने पूरे गाँव को अपनी चपेट में ले लिया। बहुत से लोगों के घर उजड़ गए। बहुत से लोगों के पास खाने-पीने के लिए भी ज्यादा कुछ नहीं बचा। उन लोगों में एक गोपाल भी था। गोपाल का घर भी बाढ़ की भेंट चढ़ गया था। उसके घर में उसके बच्चे और पत्नी दाने दाने के मोहताज हो गए थे। गोपाल के घर की स्थिति दयनीय बन गई थी।

मोहन की पत्नी अब मोहन से झगड़ा करने लगी। वह मोहन को भला बुरा सुना देती थी। यहां तक की मोहन के बच्चे भी उसे उल्टा सीधा कुछ सुना देते थे। मोहन के रिश्तेदार भी उसे पसंद नहीं करते थे। मोहन को जो परिवार इतने समय तक अपना लगता था वह अब उसे पराया लगने लगा।

एक दिन मोहन की पत्नी अपने बच्चों को लेकर अपने मायके चली गई। जाते जाते वह एक खत छोड़ गई। उस खत में लिखा था – “मैं अपने बच्चों को लेकर अपने मायके जा रही हूं। तुम्हारे पास तो दो वक्त रोटी खिलाने जितने भी पैसे नहीं है। मैं अब तुम्हारे साथ अब और नहीं रह सकती। इसलिए मैं हमेशा के लिए तुम्हें छोड़कर जा रही हूं।”

मोहन को जैसे कोई गहरा सदमा लगा था उस खत को पढ़कर। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके अपने ही उससे इस प्रकार से मुंह मोड़ लेंगे। मोहन मानो जैसे टूट सा गया। उसके जीवन में सबसे बड़ा भूचाल आ गया था। वह सोचने लगा कि अब वह इस दुनिया में किसको अपना कहेगा। सभी ने उससे नाता तोड़ लिया था। वह अपने बिस्तर पर पहुंचा और वहां बैठकर जोर जोर से रोने लगा। रोते हुए वह एक अलग तरह की दुनिया में चला गया।

मोहन ने देखा कि वह एक विशाल समुद्र के पास था। उस समुद्र के आस-पास कोई नहीं था। वह समुद्र वीरान सा था। मोहन ने जोर से अपनी पत्नी को आवाज लगाई तो उसकी आवाज चारों तरफ गूंज गई। उसे लगा कि मनुष्य के बाद अब शायद प्रकृति भी उसे त्याग चुकी थी। उसे सुनने वाला अब कोई नहीं था। वह जोरों से चिल्लाने लगा। थोड़ी ही देर बाद में उसे लगा कि जब इस दुनिया में उसका कोई बचा ही नहीं था तो उसका मर जाना ही बेहतर है। उसने समुद्र में छलांग लगा दी। लेकिन वह मरा ही नहीं। बल्कि वह तैरता हुआ समुद्र के ऊपर आ गया। उसने सोचा कि उसकी किस्मत कितनी खराब है कि उसको मौत भी नसीब नहीं हो रही है।

फिर उसने आसमान की तरफ देखा और तेज आवाज में बोला, “हे भगवान मुझे मौत क्यों नहीं आ रही है। मैं अब और जीना नहीं चाहता हूं। दुनिया के सारे लोगों ने मुझसे मुंह मोड़ लिया है। तो ऐसे में जीने का क्या फायदा। भगवान आप मुझे कृपया करके मौत दे दे।” तभी अचानक से आकाशवाणी हुई – “कौन कहता है कि तुम अकेले हो गए हो? इस दुनिया में कोई भी इंसान अकेला नहीं होता है। भले ही सांसारिक लोग आपसे मुंह मोड़ ले। लेकिन कोई ऐसा भी है जो हर पल आपके साथ रहता है। आपके हर बुरे और अच्छे दिनों में उसका व्यवहार एक जैसा ही रहता है। इंसान ऐसे शख्स को याद नहीं रखता। लेकिन यह शख्स इंसान को एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ता। तो ऐसे में तुम यह कैसे कह सकते हो मोहन कि तुम अकेले हो।”

मोहन जोर से रोते हुए बोला, “भगवान, तो यह आप हो। मुझे माफ़ करना भगवान कि मैं यह भूल गया कि ईश्वर हर पल मनुष्य के साथ ही रहते हैं। मैं तो अपनी जान देने चला था। लेकिन मैंने एक पल भी यह नहीं सोचा कि आपको ऐसा देखकर कैसा लगेगा। लेकिन आपसे एक प्रश्न है भगवान कि आप इंसानों के साथ कैसे रह सकते हैं। ऐसा इसलिए पूछ रहा हूँ क्योंकि आप अदृश्य दिखते हैं।

आपको कोई भी देख नहीं सकता है। तो फिर आप कैसे हमारे साथ रह सकते हैं।” “मैं हर जगह मौजूद हूं, वत्स। बस इंसानों को मुझे ढूँढ़ना नहीं आता है।” वह आकाशवाणी वही खत्म हो गई। मोहन मुर्गे की आवाज से जाग उठा। उसने देखा कि भोर हो चली थी। तभी अचानक उसकी नजर जमीन पर गई। वहां पर उसे पांव के निशान नजर आए। वह पांव के निशान उसके नहीं थे। उसको समझ आ गया था कि यह पैरों के निशान किसी आम आदमी के नहीं बल्कि साक्षात भगवान के थे। मोहन अकेला नहीं था बल्कि उसके साथ उसके भगवान थे।

इस कहानी से सीख- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है हमें जल्दबाजी में कोई भी कदम नहीं उठाना चाहिए। और हमें यह सोच भी नहीं रखनी चाहिए कि मुश्किल भरे दिनों में हमारा कोई नहीं होता है। भले ही इंसान हमारा साथ छोड़ दे। लेकिन भगवान का साथ हमारे साथ हर पल बना रहता है।

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