नैतिक कहानी-14 जैसा करोगे वैसा भरोगे

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Ekta Ranga

हंसपुर नाम का एक गाँव हुआ करता था। उस गाँव के लोग हर प्रकार से संतुष्ट रहा करते थे। लेकिन एक बात थी जिससे वह दिन रात परेशान रहते थे। दरअसल गाँव का जो जमींदार था वह बहुत ज्यादा कंजूस और एक धोखेबाज इंसान था। वह गाँव वालों के साथ धोखाधड़ी करता था।

उसके परिवार वाले भी उसे ऐसा करने से रोकते थे। लेकिन वह किसी की भी बात नहीं सुनता था। गाँव वाले उसे बद्दुआ भी दिया करते थे। लेकिन उसके कान पर कोई जूँ ही नहीं रेंगती थी। वह धोखाधड़ी वाला काम जारी रखता था। उसे लोगों को कष्ट देने में आनंद आता था।

एक बार की बात है जब गाँव में शादियों की खूब रौनक थी। गाँव में बहुत से घरों में शादियां थी। उन्हीं लोगों में एक श्याम नाम का लकड़हारा रहता था। क्योंकि लकड़हारा गरीब था इसलिए उसको बेटी की शादी के लिए सहायता की बहुत जरूरत थी।

वह मजबूर और असहाय था इसलिए वह सहायता के मकसद से अमीर जमींदार के पास पहुंचा। उसे अपनी बेटी की शादी के लिए सोने के गहने बनवाने थे इसलिए वह जमींदार के पास अपने कुछ चांदी के बर्तन लेकर पहुंचा। उसने चांदी के गहने गिरवी पर रख दिए। और ज़मींदार से रुपए लेकर अपने बेटी के लिए सोने के गहने बनवाने के लिए चला गया। वह बहुत खुश था कि आखिरकार उसकी बेटी के लिए सोने के गहने बनने वाले थे।

उस लकड़हारे ने खूब मेहनत की और खूब पैसे भी कमाए।आखिरकार उसके पास इतने पैसे इक्कठे हो गए थे जिससे वह ज़मींदार को पैसे देकर अपने चांदी के बर्तन दुबारा ले सकता था। जब वह जमींदार से अपने चांदी के बर्तन दुबारा लेने गया तो उसने आधे से ज्यादा बर्तन उस किसान को लौटा दिए लेकिन कुछ बर्तन उसने अपने पास रख लिए थे। जब उसने इस बात का विरोध किया तो उस जमींदार ने उसे घर से खदेड़ दिया। इस बात से वह लकड़हारा बहुत आहत हुआ। उसने सोचा कि अब समय आ गया है जब उस जमींदार को सबक सिखाना पड़ेगा।

कई दिन बाद श्याम के दोस्त भरत की बेटी की शादी भी तय हुई। अब भरत को भी बेटी की शादी के लिए पैसों की बजाए बारात को खिलाने के लिए बर्तनों की जरूरत थी। वह बर्तन का इंतजाम करने जमींदार के पास पहुंचा। वहां पहुंचकर उसने जमींदार से बर्तन उधार पर लिए।

जब उसे बर्तन उधार पर मिल गए तो उसने बहुत धूमधाम तरीके से अपनी बेटी की शादी करवा दी। फिर कई दिन बीत गए लेकिन भरत जमींदार को उसके बर्तन लौटाने नहीं गया। इस बात से जमींदार को बहुत चिंता हुई। जब उसने श्याम को अपने पास बुलाकर बर्तनों के बारे में पूछा तो श्याम ने इस बात से इंकार कर दिया। जमींदार को मानो जैसे कोई बड़ा झटका लगा था।

कई दिनों तक जब श्याम ने जमींदार को बर्तन नहीं लौटाए तो ज़मींदार को अतिरिक्त चिंता सताने लगी। श्याम को लगा कि अब उसके बर्तन उसके पास कभी नहीं आएंगे इसलिए वह न्याय पाने के लिए राजा के पास गया।

जब वह राजा के पास भरत की शिकायत लेकर पहुंचा तो राजा ने भरत को राजदरबार में आने का आदेश दिया। जब भरत राजदरबार पहुंचा तो राजा ने पूछा, “भरत, क्या तुमनें जमींदार के बर्तन चोरी किए हैं? क्या यह ज़मींदार सही बोल रहा है?” भरत ने कहा, “हाँ, महाराज। मैंने इस ज़मींदार के बर्तन चोरी किए है। पर चोरी कोई गलत बात नहीं होती है, महाराज।” फिर भरत ज़मींदार के सामने मुंह करके बोला, “मैंने सही कहा ना जमींदारजी।

चोरी करना पाप थोड़े ना होता है।” राजा ने भरत की बात पर जवाब दिया, “यह तुम क्या कह रहे हो, भरत? तुम कहीं बहक तो नहीं गए हो ना। चोरी करना महापाप है।” फिर भरत ने श्याम को आवाज लगाई। श्याम भी राजदरबार में हाजिर हो गया। भरत ने कहा कि श्याम राजा को जमींदार की सारी बात बताए। श्याम ने राजा से कहा, “महाराज, इस जमींदार ने मेरे चांदी के कुछ बर्तन चुराए। और जब मैं बर्तनों को लेने इसके घर पहुंचा तो इस जमींदार ने मुझे धक्का देकर घर से निकाल दिया।

इसने केवल मेरे साथ ही धोखाधड़ी नहीं की बल्कि इस प्रकार की चोरी यह कई लोगों के साथ कर चुका है।” श्याम ने भी कई और उसी की तरह गरीब लोगों को बुलाया जिनके साथ जमींदार ने धोखा किया था। अब राजा को सारी बात समझ में आ गई थी। राजा ने जमींदार को कहा, “देखो ज़मींदार, हम तुम्हारी कुछ मदद नहीं कर सकते हैं। अब तुम जैसा करोगे वैसा भरोगे भी।” और फिर उस जमींदार को कैदखाने में डाल दिया गया।

इस कहानी से मिलने वाली सीख- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी किसी के साथ धोखाधड़ी नहीं करनी चाहिए। धोखे से किया गया काम कभी भी सफल नहीं होता है।

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