एक समय की बात है जब चंपकवन नाम का बहुत ही सुंदर जंगल हुआ करता था। वह जंगल बहुत विशाल और घना था। उस जंगल में सैकड़ों प्रकार के जानवर निवास किया करते थे। उसी जंगल में दो दोस्त ऐसे भी थे जिनकी दोस्ती की चर्चा दूर दूर तक फैली हुई थी। वह दो दोस्त ऊंट और गीदड़ थे।
उन दोनों ने दोस्ती की मिसाल कायम कर दी थी। वह दोनों सभी दोस्तों के लिए एक आदर्श बन गए थे। जंगल के सभी जानवर उनकी दोस्ती से अति प्रभावित थे। लगभग सभी जानवर उनकी दोस्ती को देखकर खुश हुआ करते थे। लेकिन कुछ ऐसे जानवर भी थे जो उन दोनों को साथ देखना पसंद नहीं करते थे।
ऐसे जानवरों में एक बंदर था जो उन दोनों की दोस्ती से ईर्ष्या करता था। वह सोचता था कि वह कैसे इन दोनों के बीच दरार पैदा करे। वह दोनों को भड़काने के लिए नई नई योजनाएं बनाता रहता था। एक दिन वह बंदर गीदड़ के पास पहुंचा। गीदड़ के पास पहुंचकर उस बंदर ने कहा, “और बताओ तुम कैसे हो? सब सही चल रहा है?” गीदड़ ने कहा, “हाँ, भाई, मैं एकदम ठीक हूं। तुम बताओ कि तुम कैसे हो?” बंदर बोला, “मैं भी एकदम ठीक हूं मेरे दोस्त।
लेकिन एक बात है जो मैं तुम्हें बताना चाहता हूं। यह बात तुम्हें बताना जरूरी भी है।”गीदड़ ने पूछा, “क्या बताना चाहते हो तुम?” बंदर बोला, “तुम्हें नहीं पता कि तुम्हारा सच्चा दोस्त तुम्हारी पीठ पीछे तुम्हारी हंसी उड़ाता है। कल मैंने ऊंट को अन्य जानवरों के साथ खड़ा देखा था। वहां पर वह अपना गुणगान कर रहा था। उसने तुम्हारी टांगों का बहुत मजाक उड़ाया। उसने कहा कि तुम्हारी टांगे छोटी है। और उसकी टांगे लम्बी है। लंबी टांगों के चलते वह आराम से नदी पार कर सकता है।”
गीदड़ ने बंदर से कहा, “नहीं, मेरा दोस्त ऐसा नहीं बोल सकता है। हो सकता है कि तुम्हें कोई गलतफहमी हुई हो। बंदर बोला, “मुझे कोई गलतफहमी नहीं हुई है। अब यह अलग बात है कि तुम मेरी बात पर विश्वास नहीं करना चाहते। खैर, समय आने पर तुम्हें सब पता चल जाएगा।” ऐसा बोलकर बंदर वहां से चला गया। गीदड़ कुछ पल के लिए एकदम चुपचाप रहकर नदी को निहारता रहा।
लेकिन कुछ ही पल बाद में वह नदी से पानी पीने लग गया। पानी पीने के बाद उसने देखा कि नदी के उस पार बड़े और हरे भरे खजूर और आम के पेड़ लगे थे। लोमड़ी का मन उन फल को देखकर ललचा गया। उसके मन में आया कि क्यों ना नदी के उस पार वाले गाँव में जाकर फल खाए जाए। लेकिन गीदड़ ने सोचा कि वह तो उस नदी को पार ही नहीं कर पाएगा। ऐसे में उसने सोचा कि वह इस बात पर ऊंट से विचार विमर्श करेगा।
फिर गीदड़ ऊंट के पास पहुंचा। गीदड़ ने देखा कि ऊंट बहुत सारे जानवरों के साथ ठहाके लगाकर हंस रहा था। तभी गीदड़ के दिमाग में बंदर की बातें दौड़ गई। बंदर ने सोचा कि शायद बंदर सच बोल रहा हो। फिर वह ऊंट के पास गया और बोला, “अरे, वाह तुम्हारे तो खूब सारे दोस्त है।” ऊंट बोला, “लेकिन तुम्हारे जैसा दोस्त मुझे कहीं भी नहीं मिल सकता। तुम सबसे अच्छे हो।
“गीदड़ ने कहा, “मैं तुम्हें यहां यह बताने आया हूं कि इस जंगल की तालाब के ठीक उस पार एक खेत है जिसमें बहुत बड़ा खजूर और आम का पेड़ लगा हुआ है। मैं चाहता हूं कि हम दोनों वह फल खाए।” ऊंट बोला, “अरे वाह! जैसे ही तुमनें फल का नाम लिया मेरे मुंह में पानी आ गया। लेकिन एक बात है कि तुम वहां तक कैसे जाओगे?” इस बार गीदड़ को पूरा विश्वास हो गया कि बंदर सही कह रहा था। फिर गीदड़ बोला, “हाँ, दोस्त तुम सही कह रहे हो। मुझे खेद है कि मैं नदी के उस पार नहीं चल पाउंगा। कोई नहीं तुम ही चले जाओ और वहां जाकर फल का आनंद उठाओ।”
इस बात पर ऊंट बोला, “यह तुम कैसी बात कर रहे हो मेरे दोस्त। हम दोनों दोस्त हैं। इसलिए अगर वहां जाएंगे तो हम दोनों ही जाएंगे। मैं लेकर जाउंगा तुम्हें अपनी पीठ पर बैठाकर। जहां मैं जाउंगा वहां तुम भी जाओगे।” गीदड़ ने सोचा कि ऊंट कितना झूठा बोल रहा है। लेकिन फिर उसने मन ही मन यह सोचा कि मैं अगर ऊंट की पीठ पर बैठकर उस खेत में जाउंगा तो वहां मुझे भरपेट मीठे फल खाने को मिलेंगे। थोड़ी देर बाद में ऊंट गीदड़ को अपनी पीठ पर बैठाकर तालाब के उस पार वाले खेत के लिए रवाना हो गया। थोड़ी देर बाद ही वह उस खेत में दाखिल हो गए।
जैसे ही वह खेत पहुंचे, वह वहां की हरियाली देखकर अचंभित रह गए। वह खेत बहुत सुंदर था। वहां अनेकों प्रकार के फल और सब्जियां लगी हुई थी। वह इतने सारे फल और सब्जियां देखकर खुश हो गए। उन्होंने मन ही मन सोचा कि आज उनको अच्छी चीजें खाने को मिलेगी। फिर वह दोनों फल खाने में जुट गए। पहले लोमड़ी ने आम खाया और बाद में खजूर। ऊंट ने लोमड़ी का ठीक उल्टा किया।
फिर भरपेट फल खाने के बाद वह दोनों थोड़ी देर के लिए लेट गए। कुछ देर बाद में लोमड़ी उठी और जोर जोर से हंसने लगी। उसे ऐसे हंसता देख ऊंट डर गया। उसने लोमड़ी से कहा, “अरे तुम इतना तेज क्यों हंस रहे हो? अगर किसी ने हमें ऐसे देख लिया तो फिर हमारे लिए शामत आ जाएगी। हमें गाँव वाले पकड़ने आ जाएंगे।” लेकिन लोमड़ी ने ऊंट की एक ना सुनी। वह अभी भी हंस रही थी।
उस लोमड़ी की हंसी सुनकर गाँव के कुछ लोग आ पहुंचे वहां पर। गाँव वालों को देखते ही लोमड़ी फुर्ती से भाग गई। लेकिन बेचारा ऊंट इतना तेज नहीं भाग सकता था इसलिए वह गाँव वालों के हाथ लग गया। गाँव वालों ने उस ऊंट को चमड़े के बेल्ट से इतना पीटा कि बेचारे के शरीर पर लाल निशान बन गए। फिर ऊंट जैसे तैसे करके गाँव वालों से बचकर भाग निकला। जब वह तालाब को पार करने के लिए तालाब के पास पहुंचा तो उसने देखा कि लोमड़ी ऊंट का इंतजार कर रही थी।
ऊंट ने उससे बात नहीं की और वह वहां से रवाना होने लगा। लोमड़ी ने भी हाथ जोड़कर विनती की कि ऊंट उसे भी साथ ले जाए। ऊंट ने इस बात के लिए हामी भर दी। जब वह तालाब के बीच रास्ते में पहुंचे तो ऊंट ने लोमड़ी से पूछा, “तुम मुझे गाँव वालों के पास अकेला छोड़कर क्यो भागी। और सबसे बड़ी बात यह कि तुम इतना जोर से क्यों हंसी?” इस बात पर लोमड़ी बोली, “अरे, दोस्त, तुम मुझसे नाराज क्यों हो रहे हो। बात रही मेरे हंसने की तो मुझे खाना पचाने के लिए हंसना ही पड़ता है। मैं तुम्हें अकेला छोड़कर नहीं भागी थी बल्कि मैं तो तुम्हारा कई देर तक इंतजार करती रही।”
कुछ और मिनट तक तो ऊंट गीदड़ को अपनी पीठ पर लिए तालाब में चलता रहा। लेकिन कुछ ही देर बाद में ऊंट ने तालाब में डुबकी लगानी शुरू कर दी। ऊंट को ऐसा करते देख लोमड़ी बोली, “अरे, अरे दोस्त तुम यह क्या कर रहे हो? तुम अगर बार बार ऐसे डुबकी लगाओगे तो मैं डूब जाउंगी।
“इस बात पर ऊंट बोला, “तुम्हें कुछ नहीं होगा। और बात रही मेरी डुबकी लगाने की तो मैं डुबकी इसलिए लगा रही हूं क्योंकि इससे मेरा खाना पच जाएगा।” ऊंट से ऐसा सुनते ही लोमड़ी को यह एहसास हो गया कि उसने ऊंट के साथ कितना गलत किया था। लोमड़ी ने उसी समय ऊंट से अपने गलत व्यवहार के लिए माफ़ी मांगी। ऊंट का मन उदार था इसलिए उसने लोमड़ी को माफ़ कर दिया।
इस कहानी से मिलने वाली सीख- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी किसी के साथ बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए। हमें किसी के बहकावे में आकर भी कोई भी प्रकार का गलत कदम नहीं उठाना चाहिए।
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