राघव और नरेश बहुत ही अच्छे दोस्त थे। उन दोनों की शादी भी एक ही दिन हुई थी। सौभाग्यवश उन दोनों के जीवन में बच्चे की खुशियां भी एक ही साल में आई। उन दोनों के घर लड़के पैदा हुए। राघव के बेटे का नाम राम रखा गया। और नरेश के बेटे का नाम वरुण रखा गया। राम और वरुण जैसे जैसे बड़े हुए उन दोनों के बीच भी अच्छी दोस्ती होने लगी। वह दोनों भी अपने पिता की ही तरह अच्छे दोस्त बन गए। दोनों ने एक साथ स्कूल में दाखिला ले लिया था। दोनों एक दूसरे का साथ पाकर बहुत खुश थे।
एक दिन जब उनके स्कूल की छुट्टी हो गई तब उन दोनों ने आपस में बात की कि वह आज दोनों टैक्सी से जाने की बजाए जंगल के रास्ते से घर जाएंगे। वह स्कूल से रवाना हुए और सीधे ही जंगल के लिए रवाना हो गए। उन दोनों का एक सपना था कि वह एक बार अपने जीवन में जंगल से होकर गुजरे। जंगल से होकर गुजरना उन्हें बहुत ज्यादा साहसिक कार्य लगता था। वह जब भी स्कूल के लिए टैक्सी से जाते तो बीच रास्ते में वह जंगल भी आता था जहां वह जाना चाहते थे। उन दोनों ने सुना था कि वह जंगल बहुत अनोखा था।
उन दोनों ने सुना था कि वह जंगल जादुई था। उस जंगल में बहुत सारी परियां रहती थी। वह परियां जादुई थी। उनके पास खूब सारी ताकत थी। राम और वरुण भी परियों की कथा से बहुत प्रभावित थे। उन दोनों को मानो जैसे कोई परियों की कहानियों ने मंत्रमुग्ध कर दिया था। वह दोनों हर पल एक ही ख्वाब बुनते रहते कि कब उनकी मुलाकात उन जादुई परियों से होगी। आखिरकार वह दिन आ ही गया था जब राम और वरुण परियों से मिलने वाले थे।
सूरज बहुत तेज चमक रहा था। प्यास के मारे राम का गला सूखे जा रहा था। राम और वरुण ने एक तालाब पर रूककर पानी पिया और फिर जंगल के लिए रवाना हो गए। आखिरकार वह दोनों जंगल पहुंच ही गए। जंगल की खूबसूरती उन दोनों के मन को सुकून पहुंचा रही थी।
उन दोनों ने जितनी तारीफ इस जंगल की सुनी थी उससे कई गुना अधिक खूबसूरत थी यह जगह। वह जंगल में लगातार चलते रहे। फिर एक जगह उन दोनों को एक बहुत सुंदर पेड़ दिखाई दिया। वह पेड़ बहुत सुंदर था। उस पेड़ पर सुनहरी पत्तियां लगी हुई थी। और पेड़ पर छोटे छोटे गुलाबी फूल भी लगे थे। वह दोनों उस पेड़ को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए। उन दोनों ने सोचा कि शायद यही वह पेड़ है जिसपर परियां रहती है। उन दोनों ने परियों को आवाज लगाई।
एक बार आवाज लगाने पर जब दोनों परियां नहीं आई तो उन दोनों ने एक बार फिर आवाज लगाई। पर इस बार भी परियां नहीं आई। कि तभी अचानक वरुण और राम को शेर के दहाड़ने की आवाज सुनाई दी। उन दोनों ने इधर उधर नज़रे दौड़ाई तो पाया कि उनके ठीक सामने वाली झाड़ियों से शेर निकल कर उनकी ओर आ रहा था। शेर को देखकर दोनों के होश उड़ गए।
शेर तेजी से उन दोनों की तरफ दौड़ता आया। क्योंकि वरुण को पेड़ पर चढ़ना इसलिए वह तुरंत ही पेड़ पर चढ़ गया। राम को पेड़ चढ़ना नहीं आता था इसलिए उसने वरुण से मदद की गुहार लगाई। लेकिन वरुण ने शेर के डर के चलते राम की मदद नहीं की। बेचारे राम की डर के मारे जान निकली जा रही थी। उसने सोचा कि अब इस स्थिति में क्या किया जाए। कि तभी उसे अपनी नानी की दी हुई सीख याद आई।
राम धरती पर जल्दी से लेट गया। धरती पर लेटकर उसने अपनी आंखें बंद कर ली और अपनी साँस भी रोक ली। शेर राम को खाने के लिहाज से उसके पास आया। लेकिन जब शेर ने राम को सूंघा तो शेर को लगा कि राम मर चुका है। राम को मरा हुआ समझकर शेर राम को उसी हाल में छोड़कर आगे बढ़ गया।
जब शेर वहां से गायब हो गया तो वरुण जल्दी से पेड़ से नीचे उतरा। नीचे आने के बाद वह राम के पास गया और बोला, “दोस्त तुम ठीक तो हो ना? मैं तो डर गया था कि कहीं वह शेर तुम्हें खा ना जाए।” राम ने कहा, “मैं एकदम ठीक हूं। मुझे कुछ नहीं हुआ है।” फिर वरूण ने पूछा, “पर एक बात मेरे समझ में नहीं आई कि शेर तुम्हारे पास आया और तुम्हें 2 मिनट तक देखकर वापिस चला गया।
तुमनें ऐसा क्या किया कि जिससे तुम बच गए?” राम ने कहा, “दरअसल उस शेर ने मुझसे पूछा कि मैं इतना घबराया हुआ क्यों बैठा हुआ हूं? तो मैंने उसे जवाब दिया कि मैं इसलिए डरा हुआ हूं क्योंकि मेरा दोस्त मुझे अकेला छोड़कर खुद पेड़ पर चढ़ गया। तो इस बात पर शेर ने मुझसे कहा कि मैं अगली बार से इस बात का ध्यान रखूं कि मैं ऐसे किसी भी दोस्त का चुनाव नहीं करूं जो मुझे धोखा दे।” राम का जवाब सुनते ही वरुण का सिर शर्म के मारे झुक गया।
इस कहानी से मिलने वाली सीख- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने जीवन में दोस्तों का चुनाव सोच समझ कर करना चाहिए। सच्चे दोस्त वही होते जो मुश्किल समय में भी अपने दोस्त के साथ खड़े रहे।
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