नैतिक कहानी-19 मछली और बंदर की कहानी

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Ekta Ranga

एक सुंदर सा तालाब था। उसमें खूब सारी मछलियां रहा करती थी। उसी तालाब में राधा नाम की एक मछली भी रहा करती थी। वह मछली बहुत सुंदर थी। वह सभी अन्य मछलियों के साथ खेला कूदा करती थी। वह आराम से अपना जीवन जी रही थी। जिस तालाब में वह रहती थी उसी के पास ही एक बड़ा पेड़ भी था।

वह पेड़ हर पल पक्षियों से भरा रहता था। राधा मछली हर पल जब पक्षियों को उड़ता देखती तो सोचती कि काश वह भी उड़ पाती। वह बहुत से पक्षियों को जब कहती कि वह भी उड़ना चाहती है तो सारे पक्षी उसपर हंसा करते थे।

पक्षियों को देखकर वह सोचा करती थी कि इन सभी का जीवन कितना स्वतंत्र है। यह उड़ान भरकर कहीं भी आना जाना कर सकते हैं। और एक वह है जो तालाब में ही अपना दिन रात गुजार देती है। राधा के अंदर हीन भावना पैदा होने लगी थी। हीन भावना के चलते वह अपने आप को कम आंकने लगी थी।

एक दिन पेड़ पर बंदर आया। वह बंदर एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर उछल कूद कर रहा था। बंदर को ऐसा करते देख राधा ने उससे पूछा, “बंदर भाई, तुम यह बताओ कि तुम जब ऐसे उछल कूद करते हो तो क्या तुम्हें अच्छा लगता है?” बंदर बोला, “बेशक मुझे ऐसा करना बहुत अच्छा लगता है। ऐसा करने पर मैं अपने आप को स्वतंत्र महसूस करता हूं।” फिर बंदर ने देखा कि राधा उसके उत्तर से बहुत उदास थी। उसने राधा से पूछा, “क्या हुआ तुम उदास क्यों लग रही हो?”

राधा बोली, “मैं उदास इसलिए हूं क्योंकि मैं तुम्हारी तरह स्वतंत्र होकर घूम नहीं सकती। काश भगवान मुझे भी उड़ने की शक्ति प्रदान करते।” बंदर बहुत चालाक था। उसने राधा की कमजोरी पकड़ ली। फिर बंदर ने राधा से कहा, “तुम एकदम ठीक कह रही हो, बहन। जो खूबियां हमारे पास है वह तुम्हारे पास कहां।

तुम केवल पानी में रहकर अपना पूरा जीवन काट लेती हो। ऐसा जीवन भी क्या जीवन है जिसमें एक प्राणी आनंद ही ना उठा सके। हो सकता है कि तुम्हें मेरी एक बात बुरी लगे। पर मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि तुम्हारा जीवन निरर्थक है। तुम अपने जीवन को जी नहीं रही हो बल्कि उसे बेमन काट रही हो।” राधा को लगा कि वह बंदर एकदम सही कह रहा था। वह खुद भी यही सोचती थी कि उसका जीवन बेकार है।

राधा अब हीन भावना से ग्रस्त हो गई थी। उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। उसका जीवन अब बेरंग होने लगा था। जो राधा इतना हंसती खेलती रहती थी वही राधा अब उदासीन रहने लगी थी। वह अब कमजोर भी होने लगी थी। वह तालाब में एक ही किनारे पर बैठी रहती थी। सभी मछलियां उसे खुश करने की कोशिश करती पर वह खुश नहीं होती थी।

एक दिन राधा की माँ उसके पास आई और बोली, “यह मैं क्या देख रही हूं राधा कि तुमनें जीवन को खुलकर जीना छोड़ दिया है। तुम ऐसा क्यों कर रही हो? और एक बंदर के कुछ कहने पर तुमनें अपना पूरा जीवन बदल दिया। यह कैसा अन्याय कर रही हो अपने शरीर पर?” राधा बोली, “माँ, वह बंदर सही तो बोल रहा था मेरे बारे में। जो खूबियां उसके पास है वह मेरे पास कहां। मैं केवल पानी में रहकर अपना पूरा जीवन काट लूंगी। ऐसा जीवन भी क्या जीवन है जिसमें एक प्राणी आनंद ही ना उठा सके।”

राधा की इस बात पर उसकी माँ बोली, “उस बंदर ने ऐसा कहा और तुमनें उसका कहना मान लिया। क्या तुम्हें यह पता नहीं कि हर एक इंसान में अपनी अपनी खूबियां और विशेषताएं होती हैं। तुमनें उसकी खूबी तो देख ली। लेकिन क्या तुमनें अपनी खूबी देखी। तुम तैर सकती हो। पानी में मस्ती कर सकती हो। लेकिन क्या वह बंदर पानी में रह सकता है? क्या वह पानी में अपना निवास स्थान बना सकता है?” राधा बोली, “अरे हाँ, मैंने तो यह सोचा ही नहीं कि वह बंदर मेरी तरह पानी में तैर ही नहीं सकता। इसका मतलब मैं अपने आप को कम आंकने लगी थी।

मैंने अपना मनोबल भी बहुत ज्यादा गिरा दिया था। लेकिन अब मैं समझ चुकी है कि मैं खुद भी कितनी खास हूं। यह बात आप इतने समय से मुझे समझा रही थी, लेकिन मुझे असल ज्ञान आज जाकर आया है। माँ, मेरी आंखें खोलने के लिए धन्यवाद।” इतना कहकर राधा फिर से पुरानी वाली राधा बन गई। उसने अपने जीवन में फिर से रंग भर लिए। कुछ ही दिन बाद में भयंकर बाढ़ आई। उस बाढ़ में वह बंदर भी बह गया।

इस कहानी से मिलने वाली सीख- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि इस दुनिया में हर कोई जीव अपने आप में खास होता है। बस जरूरत होती है अपनी खूबियों को ढूँढने की।

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