नैतिक कहानी-21 हाथी और बकरी की दोस्ती

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Ekta Ranga

एक बहुत विशाल जंगल हुआ करता था। उस जंगल में बहुत से जानवर रहते थे जैसे कि हाथी, घोड़ा, बंदर, खरगोश, चीता और शेर आदि। लेकिन इन्हीं जानवरों में दो जानवर ऐसे भी थे जो पक्के दोस्त थे। एक था नंदू नाम का हाथी। और एक थी रानी नाम की बकरी। वह दोनों ही अच्छे दोस्त थे। नंदू हाथी अपनी दोस्त बकरी के साथ बहुत सी जगह घूमने फिरने जाता। वह दोनों एक दूसरे का साथ पाकर बहुत खुश रहते थे। दोनों पेड़ पौधों के पास जाते और पेड़ से फल तोड़कर खाते थे।

एक दिन रानी का बहुत ज्यादा मन हुआ कि वह मीठे मीठे बेर खाए। रानी ने अपनी ये इच्छा नंदू के सामने प्रकट की। नंदू ने रानी से कहा, “दोस्त, तुम्हें मीठे मीठे बेर खाने हैं तो वह मैं खिलाऊंगा तुम्हें। कल हम दोनों मीठे बेर की तलाश में चलेंगे।” रानी बहुत ज्यादा खुश हुई। रानी को जागती हुई आंखों में भी बेर दिख रहे थे।

उसके लिए एक रात काटनी भी बहुत मुश्किल लग रही थी। वह टकटकी लगाए आसमान की ओर देखे जा रही थी। वह सोच रही थी कि कब यह सुंदर सा चंद्रमा सूरज के रूप में आएगा। ऐसा सोचते सोचते उसकी आंख कब लग गई उसे पता ही नहीं चला।

जब रानी की आंख खुली तो उसने देखा कि आसमान में सूरज चमक रहा था। उसने अपनी आंखों को एकबार फिर से मला तो उसे यकीन हो गया था कि सुबह हो चुकी है। उसने जल्दी से नहाना धोना किया और पहुंच गई नंदू के पास। नंदू भी नहा धोकर तैयार था। फिर वह दोनों दोस्त बेर खाने के लिए निकल पड़े।

वह कई दूर तक चले लेकिन उनको कहीं भी बेर का पेड़ नहीं दिखाई दिया। आखिरकार लंबी दूरी तय करने के बाद में उन्हें बेर का पेड़ दिखाई दिया। रानी बेर का पेड़ देखते ही उछल पड़ी। रानी ने पेड़ चढ़ने की कोशिश की लेकिन असफल रही। फिर कई देर तक कोशिश करने के बाद में रानी मायूस हो गई।

रानी को दुखी देखकर नंदू ने उससे कहा कि, “अरे रानी, तुम पेड़ पर चढ़ने के लिए इतनी कड़ी मेहनत क्यों कर रही हो? मैं अगर इस समय तुम्हारे काम नहीं आऊंगा तो फिर किस समय आऊंगा। “इस बात पर रानी बोली, “अरे नंदू, मैं तुम्हें पेड़ से बेर तोड़ने के लिए इसलिए नहीं बोल रही क्योंकि हो सकता है कि इस पेड़ पर किसी चिड़िया का घोंसला हो।

“नंदू बोला, “रानी, मुझे नहीं लगता है कि इस पेड़ पर कोई चिड़िया का घोंसला होगा। और अगर होगा भी तो हम उस घोंसले को सुरक्षित रखेंगे।” रानी ने इस बात के लिए हामी भर दी। फिर नंदू बेर तोड़ने के हिसाब से बेर के पेड़ को जोर जोर से हिलाने लगा। जब उसने जोर जोर से पेड़ हिलाया तो खूब सारे बेर पेड़ से उतरकर नीचे आ गिरे। जैसे ही बेर जमीन पर गिरे, दोनों दोस्त बड़े चाव के साथ उन्हें खाने लगे। बेर बहुत मीठे थे।

लेकिन बेर गिरने के साथ एक और बड़ी अनहोनी हो गई थी। जिस बात का रानी को डर था वही हुआ। पेड़ से ना केवल बेर गिरे, बल्कि चिड़िया का घोंसला भी गिर गया। वह घोंसला धरती पर ना गिरकर पास के ही एक तालाब में गिर गया था। जैसे ही रानी ने देखा कि घोंसला पानी में गिर गया तो वह जोर जोर से रोने लगी।

रानी को रोते देख नंदू भी घबरा गया। रानी घोंसले को बचाने के लिए पानी में कूद गई। उसने जैसे तैसे घोंसले को पकड़ा। लेकिन वह पानी में संतुलन नहीं बना पाई। उसको तैरना नहीं आता था इसलिए वह मदद के लिए चिल्लाने लगी। नंदू ने जब यह नजारा देखा तो वह झट से तालाब में कूद पड़ा। नंदू को पानी में अच्छे से तैरना आता था। उसने रानी और घोंसले को डूबने से बचा लिया।

तालाब से बाहर निकलते ही दोनों के चैन में चैन आया। अपने घोंसले को ढूँढती हुई चिड़िया भी वहां आ पहुंची। जैसे ही चिड़िया ने पाया कि उसके बच्चे एकदम सुरक्षित हैं उसने बच्चों को गले से लगा लिया। फिर उस चिड़िया ने हाथी और बकरी को धन्यवाद दिया। अब वह चिड़िया, हाथी और बकरी अच्छे दोस्त बन गए थे। वह चिड़िया उस हाथी और बकरी की बहुत आभारी थी। अब चिड़िया का मुख्य काम यह होता कि वह रानी और नंदू को ऐसे पेड़ों के बारे में बताए जिसपर कोई घोसला ना हो। अब नंदू और रानी बेफिक्र होकर अनेकों प्रकार के मीठे फल खाया करते थे।

इस कहानी से मिलने वाली सीख- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हर किसी का भला करना चाहिए। जब हम निस्वार्थ भावना से दूसरों के लिए काम करते हैं तो हमारा जीवन भी सुख के साथ बीतता है।

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