नैतिक कहानी-22 संगत का असर

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Ekta Ranga

नंदीग्राम गाँव एक खुशहाल गाँव था। उस गाँव में सब कुछ अच्छा चल रहा था। उस गाँव में खूब सारे तोते रहा करते थे। उस गाँव में यह माना जाता था कि घर में तोता पालना बहुत शुभ होता है। इसी कारण से गाँव के आधे से ज्यादा लोगों ने अपने घरों में तोते पाल रखे थे।

उसी गाँव में दो ऐसे तोते रहा करते थे जो अच्छे से बोलना जानते थे। उन तोतों का नाम था राम और श्याम। राम बहुत ही बातूनी स्वभाव का तोता था। वही श्याम सरल स्वभाव का तोता था। मजे की बात यह थी कि वह दोनों ही तोते गाँववालों के घरों में रहने की बजाए एक पेड़ पर रहते थे। वह दोनों ही पेड़ पर उछल कूद करते रहते थे। जो कोई भी पेड़ के नीचे आकर बैठता, वह उसकी नकल निकालते थे।

गाँव में सब कुछ अच्छा चल रहा था। लेकिन एक दिन एक बहेलिया गाँव में आया। वह बहेलिया गाँव के अनेक पक्षियों को पकड़कर ले जा रहा था। उसकी चंगुल में राम और श्याम भी आ गए। गाँव वालों ने राम और श्याम को छुड़ाने की खूब कोशिश की, लेकिन नाकामयाब रहे।

वह अपने जाल को कंधे पर टांगे अपने घर की ओर जा रहा था। बीच रास्ते में जब बहेलिए को प्यास लगी तब वह एक तालाब के पास रुका और पानी पीने के लिए गया। उसको पानी पीते देख श्याम ने भी कहा कि उसको भी पानी पीना है। जब बहेलिया श्याम को जाल से निकालकर पानी पिलाने लेकर गया तब श्याम अच्छा मौका देखकर उड़ गया। श्याम को पकड़ने के लिए बहेलिया उसके पीछे-पीछे भागा, लेकीन वहां उसी पकड़ नहीं पाया।

श्याम हांफते हुए एक आश्रम के पास पहुंचा। वहां पर यज्ञ चल रहा था। चारों ओर का वातावरण बहुत शुद्ध था। मंत्रोच्चारण से माहौल बहुत ही पावन बन गया था। श्याम को यह सब बहुत अच्छा लगा। श्याम आश्रम के अंदर दाखिल हुआ तो उसने देखा कि तपस्वी तपस्या कर रहा था। उस तपस्वी ने जब श्याम को ऐसे डरे हुए देखा तो उसने पूछा, “हे प्राणी, तुम इतना डरे हुए क्यों हो। क्या हुआ है तुम्हें?” श्याम बोला, “गुरुजी, मैं नंदीग्राम गाँव का प्राणी हूं।

दरअसल आज हमारे गाँव में एक बहेलिया आया था। वह बहेलिया कई सारे पक्षियों को पकड़कर ले गया। उन्हीं पक्षियों में से एक मैं भी था। मेरा एक दोस्त भी उसी बहेलिए के साथ ही रह गया। मैं कैसे ही करके उसके चंगुल से छूटकर निकला।” श्याम की बात सुनकर वह तपस्वी बोला, “जो भी हुआ वह बहुत बुरा हुआ। अब इसी में ही सार है कि तुम मेरे साथ रहो। आज से तुम मेरे पुत्र समान हुए।” तपस्वी की बात सुनकर श्याम बहुत खुश हुआ। उसे अच्छा लगा कि उसको नया घर और पिता मिल गए थे।

राम भी बहेलिए के साथ रहने लगा। बहेलिया बहुत ही अभद्र भाषा का इस्तेमाल करता था। बहेलिया हिंसक व्यवहार भी करता था। धीरे-धीरे राम भी अभद्र भाषा का प्रयोग करने लगा। वह भी हिंसक बन गया था। तो वही दूसरी ओर श्याम तपस्वी के पास रहता था। तपस्वी बहुत ही ज्यादा धार्मिक और विनम्र स्वभाव का था। श्याम की भाषा भी उस तपस्वी की तरह विनम्र और मीठी थी। आश्रम के सारे ऋषि मुनि श्याम को बहुत प्यार करते थे। श्याम बहुत खुशहाल जीवन जी रहा था आश्रम में।

एक दिन एक राजा जंगल घूमते घूमते बहुत ज्यादा थक गया था। थकान के मारे उसको प्यास लग गई थी। उसे आस-पास किसी का भी घर नहीं दिखा सिवाय बहेलिए के। वह बहेलिए के घर में प्रवेश कर गया। जैसे ही उसने बहेलिए के घर के अंदर अपने कदम रखे, राम ने उसे अंदर आने से रोक दिया। श्याम बोला, “तुम कौन हो? मैंने तुम्हें कभी भी नहीं देखा।

गंदे आदमी कहीं के। तुम यहां क्यों आए हो?” फिर जब बहेलिए की आवाज नहीं आई तो राम फिर से बोला, “सरदार, मैं इस राजा को मार डालूंगा। यह यहां पर क्यों आया है। यह बहुत गंदा आदमी है। मैं इसे यहां से धक्का मारकर निकाल दूंगा।” जैसे ही राजा ने यह सुना कि राम उससे इस तरह से अभद्रता से बात कर रहा है राजा उसपर क्रोधित हो उठा। राजा अब एक पल भी यहां नहीं रुक सकता था। वह जल्दी से वहां से रवाना हो गया।

बेचारा थका प्यासा राजा अंत में उसी तपस्वी के आश्रम पहुंचा। राजा ने जैसे ही आश्रम में प्रवेश किया उसे आश्रम के पेड़ पर बैठा हुआ तोता दिखा। राजा ने कहा, “अरे, तुम यहां भी आ गए। तब तो मैं यहां एक पल भी नहीं रुक सकता हूं।” तभी श्याम बोला, “रुकिए, मान्यवर। आप मुझसे नाराज क्यों हैं। आप बहुत थके हुए दिखते। लगता है कि आप लंबी दूरी तय करके यहां तक आए हैं। आश्रम के भाग्य बड़े हैं कि आपके जैसे श्रेष्ठ राजा यहां पधारे।

आप बैठिए, मैं अपने गुरुजी को बुलाकर लाता हूं।” राजा को यकीन नहीं हुआ कि अभी कुछ देर पहले वह जिस तोते से मिलकर आया था वह आखिर कौन था। राजा ने मन ही मन सोचा कि एक यह तोता है जो इतनी सभ्यता के साथ बातचीत कर रहा है। और एक उस बहेलिए का तोता था जिसने राजा के साथ इतनी अभद्रता के साथ व्यवहार किया।अपने गुरुजी के साथ बाहर आया। उस तपस्वी ने राजा की खूब अच्छे से आवभगत की।

इस कहानी से मिलने- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि आपका व्यवहार और आचरण इस बात से तय होता है कि आप किसकी संगत में रह रहे हैं। समझदार लोग कहते हैं कि हमें अच्छे लोगों की संगत में ही रहना चाहिए। जब हम बुरी संगत में रहते हैं तो आचरण भी बुरा हो जाता है।

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