सीतापुर नाम का एक गाँव हुआ करता था। उस गाँव में लक्ष्मी और मनोहर नाम के दो दंपति रहा करते थे। मनोहर पेशे से किसान था। वह दोनों दंपति खुशी खुशी अपना जीवन जी रहे थे। उनके पास सब कुछ था। बस जो उनके पास नहीं था वह थी संतान। वह दोनों कई समय से संतान से वंचित थे।
वह सोचा करते थे कि ना जाने कब भगवान उनके घर भी खुशियां भेजेगा। लक्ष्मी दिन रात ईश्वर से यही प्रार्थना करती कि वह उसकी सुनी गोद भर दे। बहुत समय बीत जाने के बाद भी जब उनके घर बच्चा नहीं हुआ तो उन दोनों ने उम्मीद छोड़ दी। वह अब एक दूसरे में ही खुशियां ढूंढने लगे थे।
एक दिन मनोहर हर दिन की तरह काम निपटाने के बाद अपने घर की ओर जा रहा था। बीच रास्ते में उसे किसी के कहराने की आवाज सुनाई दी। जब मनोहर ने पास जाकर देखा तो पाया कि एक नेवला अधमरा पड़ा था। उसका एक बच्चा भी पास में पड़ा रो रहा था।
नेवले ने मनोहर को अपने पास बुलाया और कहा, “राजन, क्या आप मेरे इस बच्चे को अपना बच्चा बना सकते हैं क्या? मेरी सांसे अब टूटे जा रही है। मेरे बच्चे को आप अपने बेटे जैसा ही रखना।” ऐसा कहकर नेवले ने दम तोड़ दिया। इस बात से मनोहर भी बहुत दुखी हुआ। मनोहर ने उस बच्चे को अपने हाथ में उठाया और घर की ओर रवाना हो गया।
घर जाकर उसने अपनी पत्नी को बुलाया और कहा कि उसके लिए कुछ खास चीज है। पत्नी ने कहा, “आज क्या खास लाए हो मेरे लिए आप?” मनोहर नेवले के बच्चे को दिखाते बोला, “मैं तुम्हारे लिए यह लाया हूं। भगवान ने हमारी सुन ली। आज से हम माता पिता बन जाएंगे। इसकी माँ तो चल बसी। लेकिन आज से यह हमारा बच्चा बनकर रहेगा।” उसकी पत्नी ने कहा कि एक नेवला कैसे हमारा बच्चा हो सकता है। तो इस बात पर मनोहर ने कहा कि यही भगवान की इच्छा है।
समय के साथ वह नेवला भी बड़ा हो रहा था। मनोहर तो उससे बहुत प्यार करता था। लेकिन उसकी पत्नी ने उसे कभी भी अपना बच्चा नहीं माना। वह कहती थी कि वह इंसान नहीं बल्कि जानवर है। फिर एक दिन घर में कुछ ऐसा हुआ कि घर में खुशखबरी छा गई। दरअसल मनोहर की पत्नी लक्ष्मी आखिरकार गर्भवती हो गई थी।
सभी बहुत ज्यादा खुश थे। मनोहर की खुशी का मानो जैसे कोई ठिकाना नहीं रहा। वह इस बात से बहुत ज्यादा खुश हुआ। उसने नेवले से कहा कि अब वह भी जल्दी ही भाई बनने वाला है। नेवला भी खुशी के मारे उछल पड़ा। वह नेवला अब रात दिन लक्ष्मी की हिफाजत ही करता। वह लक्ष्मी को किसी भी तरह की परेशानी नहीं उठाने देता था।
नौ महीने बाद लक्ष्मी को एक सुंदर सा बेटा पैदा हुआ। मनोहर की खुशियां दोगुनी हो गई थी। आखिरकार इतने लंबे समय बाद भगवान ने उन्हें बच्चा दे दिया था। नेवला नवजात शिशु के पास आकर बैठ जाता था और उसे घंटों तक निहारा करता था। लेकिन लक्ष्मी जब भी नेवले को अपने बच्चे के आस-पास देखती तो बहुत ज्यादा डर जाती थी।
वह सोचती थी कि वह नेवला उसके बच्चे को कहीं नुकसान ना पहुंचा दे। कई बार ऐसा भी होता था कि वह नेवले को डांट फटकार कर भगा देती थी। मनोहर को लक्ष्मी का ऐसा व्यवहार बिल्कुल भी पसंद नहीं आता था। मनोहर अपनी पत्नी से कहता था कि यह नेवला उनकी पहली संतान है। और वह नेवला बहुत वफादार है। लेकिन लक्ष्मी के कानों में मानो जूँ तक नहीं रेंगती थी।
लक्ष्मी का नेवले को डांटना जारी रहा। मनोहर उसके इस स्वभाव से परेशान रहने लगा था। एक दिन की बात है जब मनोहर के हाथों में लग गई थी। चोट की वजह से उसको खेत में एक और इंसान की जरूरत थी। उसने अपनी पत्नी से कहा, “मेरी चोट की वजह से मैं अकेला काम नहीं कर सकता हूं। तो इसलिए मैं यह चाहता हूं कि तुम भी मेरे साथ खेत चलो।
“लक्ष्मी बोली, “अगर मैं चलूंगी तो पीछे से छोटे बाबु का ध्यान कौन रखेगा? तुम अपने किसी दोस्त को नहीं ले जा सकते?” मनोहर बोला, “मैं तुम्हें चलने के लिए बोल रहा हूं। और अगर बात रही बाबु को संभालने की तो हमारा बड़ा बेटा उसका ध्यान रख लेगा।” लक्ष्मी ने कहा, “मैं एक जानवर के भरोसे अपना बच्चा नहीं छोड़ सकती।” इस बार मनोहर लक्ष्मी पर जोर से चिल्लाया और उसे जबरदस्ती अपने साथ खेत ले गया।
फिर थोड़ी देर खेत में काम करने के बाद लक्ष्मी की इच्छा हुई कि वह अपने घर जाए। मनोहर ने उसे थोड़ी देर और ठहरने को कहा। लेकिन लक्ष्मी का मन तो अपने बेटे में ही अटका पड़ा था। फिर जैसे ही लक्ष्मी घर पहुंची तो उसने कुछ अलग ही नजारा देखा। उसने देखा कि नेवले के मुंह पर खूब सारा खून था। कमरे से बच्चे के रोने की आवाज भी नहीं आ रही थी।
वह जो सोच रही थी शायद आज वह सच हो गया था। उसने अपना माथा पीट लिया। फिर उसने आव देखा ना ताव बस नेवले को पीटने के लिए भागी। वह नेवले को जोरों से पीटने लगी। यह तो संयोगवश मनोहर वहां आ पहुंचा। जब उसने लक्ष्मी को नेवले को बेरहमी से पीटते देखा तो वह लक्ष्मी पर जोर से चिल्लाया। उसने लक्ष्मी से कहा कि वह नेवले को क्यों पीट रही है। तो लक्ष्मी ने कहा कि इस नेवले ने उसके बच्चे की जान ले ली है।
मनोहर यह सुनकर फुर्ती से कमरे में भागा। लेकिन वहां का नजारा कुछ अलग था। कमरे में मनोहर ने देखा कि उसका बच्चा पालने में आराम से सो रहा था। और वही पालने के पास काले रंग का एक बड़ा सांप मरा हुआ पड़ा था। मनोहर को समझते देर नहीं लगी। उसने अपनी पत्नी को तेज आवाज में कमरे में बुलाया और कहा, “अरे ओ मुर्ख स्त्री। देख तेरा बेटा जिंदा है। तेरे बेटे को कुछ भी नहीं हुआ है।
आज मेरे बड़े वफादार बेटे ने तेरे बेटे की जान बचा ली। अगर नेवला यहां नहीं होता तो ना जाने आज क्या हो जाता। अब मैं तेरे पास एक पल भी नहीं रह सकता हूं। तू रह अपने बेटे के साथ।” ऐसा कहकर मनोहर कमरे से बाहर निकला और नेवले को अपने साथ लेकर कहीं और चला गया। अब लक्ष्मी के पास पछतावे के अलावा और कुछ नहीं था।
इस कहानी से मिलने वाली सीख- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सोच समझकर ही कोई बड़ा फैसला लेना चाहिए। अगर हम गलती से भी कोई बिना सोचे कोई गलत कदम उठा लेते हैं तो हमारे पास पछतावे के अलावा और कुछ नहीं रहता।
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