नैतिक कहानी-25 “मुर्ख कछुआ”

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Ekta Ranga

एक गाँव की तालाब में पारस नाम का कछुआ रहा करता था। वह ऐसे तो बहुत ज्यादा मिलनसार था। लेकिन उसमें एक कमी भी थी कि वह बहुत ज्यादा बातूनी था। वह चाहता था कि हर कोई उससे बातें करें। बहुत बार तो ऐसा होता था कि उसकी बात सुनने वाला जानवर बहुत ज्यादा परेशान हो जाता था।

उसकी बात सुनने वाला उसकी बातों से थक हारकर उसे चुप हो जाने को कहते। लेकिन पारस पर मानो जैसे कोई असर ही नहीं पड़ता था। वह अपनी बातें दूसरों को सुनाए जाता था। एक दिन उस तालाब के पास दो हंस पधारे। वह दोनों बहुत ज्यादा सफेद थे। वह दिखने में भी बहुत सुंदर थे। सभी जानवर उन दोनों की सुंदरता के कायल हो गए थे।

पर वह दोनों जितने ही सुंदर दिखने में थे, उतना ही सुंदर उनका व्यवहार था। सभी जानवर उन दोनों से बहुत ज्यादा घुल मिल गए थे। वह दोनों हंस बहुत दूर से उड़कर उस गाँव में इसलिए आए थे क्योंकि जहां वह रहते थे वहां पर पानी खत्म हो गया था। वह चंदनपुर नाम की ऐसी नगरी में रहते थे जो खूब सारे ऋषि मुनि रहा का निवास स्थान था।

पानी की कमी के चलते ऋषि मुनियों ने भी चंदनपुर से पलायन कर लिया था। वह दोनों हंस ऋषि मुनि के पास रहकर बहुत धार्मिक बातें सीख गए थे। बहुत सारे जानवर हंसों से धार्मिक बातें सुनने को आते थे। उन्हीं जानवरों में वह कछुआ भी था जो हंसों से धार्मिक बातें बड़े चाव से सुनता था।

कछुए और हंसों में धीरे-धीरे गहरी दोस्ती हो गई थी। वह एक दूसरे का बहुत ध्यान रखते थे। हंसों को कछुए की बातें पसंद आती थी। वह दोनों कछुए की मासूमियत से प्रभावित हो गए थे। पहले कछुआ उन दोनों को अपने मन की बातें बताता था। फिर वह दोनों हंस कछुए को धार्मिक बातें सुनाया करते थे।

कछुए को भी उनकी वह धार्मिक बातें बहुत ज्यादा अच्छी लगती थी। ऐसे करते करते पूरा एक साल बीत गया था। गाँव में सब कुछ अच्छा चल रहा था। लेकिन कहते हैं ना कि जब जीवन में सब कुछ अच्छा चल रहा हो तो यह स्वाभाविक है कि कोई बड़ी कठिनाई जल्दी ही आने को है। उस गाँव में भी एक बड़ी तबाही आनी अभी बाकी थी।

गर्मी के मौसम में हर साल पहले भीषण गर्मी पड़ती है और बाद में बारिश गर्मी से राहत दे देती है। गाँव में भी भयंकर गर्मी का मौसम चल रहा था। सभी गर्मी से बहुत ज्यादा परेशान हो गए थे। काली घटाएँ आती, लेकिन वह बिन बरसे ही चली जाती। जब भी जानवर काली घटाओं को देखते तो उनके मन में आस जग जाती कि आज तो पक्की ही बारिश आएगी।

लेकिन थोड़ी ही देर बाद उनकी उम्मीदों पर पानी फिर जाता। आखिरकार गाँव में सूखा पड़ गया। गाँव के लोग बिना पानी के दम तोड़ने लगे। गाँव के जानवर भी धीरे-धीरे मरने लगे। जिस तालाब में वह कछुआ रहता था उस तालाब का पानी भी सूख गया। कछुआ इस बात से बेहद डर गया। उसकी आंखों के सामने मछलियों ने दम तोड़ दिया। अब कछुए ने सोचा कि शायद उसका अंत भी नजदीक है।

एक दिन वह कछुआ तेज तेज रोने लगा। उसके रोने की आवाज सुनकर हंस भी वहां पहुंच गए। दोनों ने कछुए का दुख दर्द सुना। कछुए ने कहा, “दोस्तों लगता है कि थोड़े ही दिनों में मैं भी दम तोड़ दूंगा। अब मुझे अपना अंत नजदीक लग रहा है। कछुए कुछ ऐसे दुख में देख हंसों ने उसे ढाढस बंधाया।

वह बोले, “तुम चिंता मत करो मेरे दोस्त। हम तुम्हारे परम मित्र हैं। हम तुम्हें कुछ नहीं होने देंगे। हमनें कल ही ऐसी बड़ी नदी देखी है जो कि बहुत विशाल है। उस नदी में लबालब पानी भरा हुआ है। वह नदी इस गाँव के दूसरे छोर पर है। कल हम तीनों ही उस दूसरे गाँव के लिए पलायन कर लेंगे।” कछुआ बहुत ज्यादा खुश हुआ। उसे अब आशा की नई किरण दिखी। वह हंसों को आशीष देने लगा।

अगले दिन वह हंस और कछुआ दूसरे गाँव की ओर पलायन करने को तैयार थे। वह दोनों हंस अपने साथ एक बड़ी और मोटी लकड़ी भी लाए थे। कछुआ लकड़ी को देखकर बोला, “अरे, तुम दोनों यह लकड़ी अपने साथ क्यों लाए हो? इस लकड़ी का यहां क्या काम है।” इस बात पर हंस बोले, “दरअसल यह लकड़ी हम इसलिए अपने साथ लाए हैं ताकि हम तुम्हें अपने साथ इस लकड़ी पर लटकाकर दूसरे गाँव ले जा सके। बस तुम्हें यह करना है कि तुम अपने मुंह से इस लकड़ी को पकड़े रखो। तुम लकड़ी को कसकर पकड़े रखना। अगर तुमनें कसकर लकड़ी को नहीं पकड़ा तो तुम आकाश से गिर पड़ोगे।” कछुए ने इस बात के लिए हामी भर दी।

फिर थोड़ी देर बाद वह हंस कछुए को लकड़ी पर लटकाकर उड़ने लगे। दोनों ने लकड़ी को कसकर पकड़ रखा था। वह लगातार उड़े जा रहे थे। बीच रास्ते में खूब सारे सुंदर नजारे देखने को मिल रहे थे। उस कछुए ने अपने जीवन में पहली बार ऐसा अनुभव प्राप्त किया था। उसका मन हो रहा था कि वह अपने मन की बात हंसों को बताए। लेकिन उन दोनों ने उसे चुप रहने को बोला था। वह तीनों अब दूसरे गाँव में कदम रखने ही वाले थे।

अचानक उन तीनों ने देखा कि गाँव के सभी लोग बड़े ही आश्चर्यचकित होकर उन्हें देख रहे थे। कई बच्चे तो उन्हें करीब से देखने के लिए अपनी छत पर चढ़ गए। कछुए ऐसा नजारा देखकर बहुत ज्यादा खुश हुआ। उसकी खुशी की कोई सीमा नहीं रही। अब उससे यह खुशी जाहिर करे बिना रहा नहीं जा रहा था।

वह इस खुशी में यह भूल गया था कि उसे हंसों ने बोलने के लिए मना किया था। लेकिन कछुआ अपनी आदत से मजबूर था। उससे बोले बिना नहीं रहा गया, “अरे, वाह! ऐसा नजारा मैंने अपने जीवन में कभी भी नहीं देखा। आज हमें सारी दुनिया देख रही है।” उसका ऐसा बोलना हुआ और वह धड़ाम करते हुए जमीन पर आ गिरा। इतनी ऊंचाई से गिरने पर उसकी मौके पर ही मौत हो गई।

इस कहानी से मिलने वाली सीख- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें ज्ञानी लोगों की बात को अनसुना नहीं करना चाहिए। हमें ज्ञानी लोगों की बात को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए और उसका अनुसरण करना चाहिए।

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