नैतिक कहानी-26 “मुर्ख सारस और केकड़ा”

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Ekta Ranga

बहुत समय पहले की बात है जब एक बार खूब सारे सारस का झुंड उड़ता हुआ एक विशाल नदी के पास आया। वह सभी सारस एक दूसरे के सच्चे दोस्त थे। सभी सारसों ने उस विशाल नदी के पास अपना निवास स्थान बना लिया था। सभी हंसी खुशी से नदी के पास रह रहे थे। फिर प्रजनन काल का समय आया। उस काल में बहुत सी मादा अंडे दे रही थी। जब छोटे छोटे अंडों को मादा सारस देखा करती थीं तो उन्हें बहुत अच्छा लगता था। अब अंडों से बच्चों के निकलने का इंतजार चल रहा था। लेकिन एक बड़ी घटना घट गई। इस घटना से सभी आहत हो गए।

दरअसल जहां पर सारस के झुंड ने अपना डेरा जमा रखा था उसी के पास में सांप का बिल भी था। सांप बहुत दिनों से अंडों पर घात लगाए बैठा था। वह सोच रहा था कि कब उसे नर्म सफेद अंडे खाने को मिलेंगे। सारस के झुंड को यह पता नहीं था कि नदी के पास में कोबरा सांप का बिल है। वह सांप लगातार घात लगाए बैठा था। आखिरकार एक दिन उसे अंडों पर हमला करने का अच्छा मौका मिला। वह सारस के सारे अंडों को खा गया। जैसे ही सारस भोजन लेकर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि अंडे गायब थे। यह देखकर वह जोर जोर से रोने लगे। उन्होंने सोचा कि जरूर ही कोई जानवर उनके अंडों को खा गया है।

कई दिन जब उन्होने निगरानी रखकर पता किया तो पता चला कि पास के बिल में रहने वाला सांप ही अंडे खाता है। उनको उस सांप पर बहुत गुस्सा आया। उन्होंने सांप को खत्म करने की खूब सारी योजनाएं बनाई। लेकिन कोई भी योजना लागू नहीं हो सकी। फिर एक दिन सारस के झुंड ने आखिरकार उम्मीद छोड़ दी। लेकिन उस झुंड में एक ऐसा भी सारस था जो हार मानने को तैयार नहीं था।

वह सुबक सुबक कर रोने लगा। जब वह रो रहा था तो उसी समय एक केकड़ा भी उधर से गुजर रहा था। जब केकड़े ने उस सारस को रोते हैं देखा तो उसने सारस से पूछा, ” भाई क्या हुआ तुम्हें? तुम जोरों से क्यों रो रहे हो?” तब सारस बोला, “भाई, मेरे अंडों को सांप खा गया। अब हम क्या करेंगे। कितनी उम्मीद पाल रखी थी हमनें कि हम जल्द ही बच्चों को पैदा होते हुए देखेंगे। लेकिन ऐसा हुआ ही नहीं।”

उस केकड़े ने सारस को सांत्वना देते हुए कहा, “देखो, तुम रोओ मत। मैंने भी उस सांप को कई जानवरों के अंडे खाते हुए देखा है। मेरे पास एक अच्छी तरकीब है जिससे सांप से हमेशा के लिए छुटकारा मिल सकता है।” सारस खुशी के मारे उछलते हुए बोला, “अरे वाह तुम्हारे पास उसको खत्म करने की अच्छी तरकीब है।

अगर है तो वह मुझे बताओ। मैं तुम्हारे कहे अनुसार काम जरूर करूंगा।” तब केकड़े ने कहा, “सांप के बिल से थोड़ी ही दूरी पर एक नेवला गुफा में रहता है। तुम यह अच्छी तरह से जानते होगे कि नेवला सांप का जानी दुश्मन होता है। अब तुम्हें यह करना होगा कि तुम उस नदी से थोड़ी थोड़ी करके मछलियां पकड़ोगे। और उन्हीं मछलियों को तुम नेवले की गुफा से लेकर सांप के बिल तक बिछा दोगे।

जब नेवले को मछलियों की खुशबू आएगी तो वह मछली खाने के लिए दौड़ा आएगा। वही उसे सांप भी दिखेगा तो सांप को भी फाड़ डालेगा। बस तुम्हें यही ध्यान रखना है कि यह काम तुम दोपहर में करो। क्योंकि वह सांप अक्सर दोपहर को बिल से निकलता है।” सारस ने केकड़े की बात मानते हुए हामी भर दी।

अगले दिन जब दोपहर का वक्त था तब सारस ने अपने मुंह में मछलियां दबाई और एक एक करके नेवले की गुफा से लेकर सांप के बिल तक बिछा दी। जब नेवले को मछलियों की खुशबू आई तब वह वह अपनी गुफा से बाहर निकला और झटपट मछलियां खाने लगा। उन मछलियों में कुछ मछलियां सड़ी हुई भी थी। नेवले को इस बात पर खूब गुस्सा आया। फिर वह मछलियां खाते खाते सांप के बिल तक पहुंचा। सांप देखते ही उसका खून खोल उठा।

उसने उसी समय सांप को दो टुकड़ों में बांट दिया। फिर उसने देखा कि वह सारस भी वहीं खड़ा सारा नजारा देख रहा था। जब नेवले ने पूछा कि, “क्या तुम्हें यह पता है कि यह मछलियां मेरी गुफा तक किसने बिछाई?” सारस मूर्ख था। उसने सारी सच्चाई नेवले के सामने उगल दी। नेवला तो पहले से ही बौखलाया हुआ था। उसने ज्यादा कुछ नहीं सोचा। बस उसने फुर्ती से सारस पर हमला किया और सारस मौके पर ही खत्म हो गया।

इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी जल्दबाजी में कोई भी फैसला नहीं लेना चाहिए। अक्सर आपने देखा होगा कि जो कोई भी जल्दबाजी में फैसला लेता है वह भारी नुकसान भी उठाता है। अगर उस सारस ने जल्दबाजी में निर्णय नहीं लिया होता तो शायद वह ऐसी मौत नहीं मारा जाता।

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