एक गाँव था जिसका नाम था वरुणपुरी। उस गाँव में एक आदमी रहा करता था जिसका नाम सूरज था। वह भगवान का असीम भक्त था। वह हर रोज विष्णुजी की आराधना किया करता था। एक दिन उसकी ऐसी आराधना देख विष्णु भगवान प्रकट हुए। भगवान ने सूरज को वरदान दिया कि उसके पास जादुई शक्ति आ जाएगी।
विष्णुजी ने सूरज से यह भी कहा कि वह हमेशा अपनी जादुई शक्तियों को सही रूप में इस्तेमाल करें। विष्णुजी उसे वरदान देकर वापिस गोलोक चले गए। अब सूरज के पास असीम शक्तियां आ गई थी। उसके माता-पिता बहुत ज्यादा खुश थे। उनको लगने लग गया था कि उनका बेटा आम लोगों से काफी अलग है।
एक दिन सूरज के माता-पिता ने उसके लिए रिश्ते की बात रखी। लेकिन सूरज ने यह कहकर मना कर दिया कि वह आम इंसानों की तरह शादी नहीं करेगा। बल्कि वह एक योगी बनकर तपस्या करेगा। उसके माता-पिता को यह सुनकर बहुत दुख हुआ। उन्होंने सोचा कि अब उनके बेटे के बुढ़ापे का सहारा कौन बनेगा। सूरज कई समय बाद एक महान साधक बन गया। उसने अपनी एक कुटिया बना ली थी। सभी लोग उसे ऋषि सूरज के नाम से जानने लगे थे।
एक दिन सूरज गहरी तपस्या में लीन था कि तभी अचानक उसकी गोद में कुछ आकर गिरा। सूरज ने जब आंखों को खोलकर देखा तो पाया कि उसकी गोद एक प्यारी सी गिलहरी बुरी तरह से घायल हुई पड़ी थी। उस गिलहरी को ऐसे घायल देख सूरज अपनी कुटिया में तेजी से गिलहरी को लेकर भागा। उसने गिलहरी का उपचार किया। फिर कई दिन की देखभाल के बाद वह गिलहरी दुबारा स्वस्थ हो गई। जैसे ही वह गिलहरी स्वस्थ हुई, अनेक जानवर फिर से उसकी जान के दुश्मन बन खड़े हुए।
आखिरकार एक दिन सूरज ने सोचा कि क्यों ना इस गिलहरी को एक मनुष्य बना दिया जाए। फिर उसने अपने जादू से गिलहरी को एक सुंदर बच्ची में बदल दिया। उस बच्ची का नाम रखा गया भगवती। बाद में सूरज ने भगवती को अपने ही आश्रम में रख लिया और उसे अपनी बेटी की तरह पाल पोसकर बड़ा किया।
बड़ी होने पर भगवती एक सुंदर युवती में तब्दील हो गई। भगवती इतनी सुंदर थी कि उसके लिए दूर दूर से रिश्ते आते थे। लेकिन सूरज कहता कि उसकी बेटी तो बहुत गुणवान है इसलिए वह अपनी बेटी का रिश्ता एक अत्यंत ही शक्तिशाली व्यक्ति के साथ तय करेगा। सभी लोग सोचते कि सूरज को भगवती के लिए कहां पर इतना शक्तिशाली व्यक्ति मिलेगा। सभी लोग सूरज की बातों पर हंसते थे।
लेकिन सूरज लोगों की बातों से बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हुआ। एक दिन उसने सूर्य देव को पूरे मन के साथ पुकारा। सूर्य देव उसके भक्ति भाव को देखकर उससे प्रसन्न हुए और सूरज के सामने प्रकट हुए। सूर्य देव ने कहा, “वत्स, मैं तुम्हारी भक्ति भाव से बड़ा प्रसन्न हुआ। बताओ तुम क्या मांगना चाहते हो।” सूरज बोला, “सूर्य देव, मैं चाहता हूं कि आप मेरी बेटी से शादी करें और उसे पूरे जीवन खुश रखें।
मैं अपनी बेटी का हाथ आपके हाथ में सौंपना चाहता हूं।” सूर्य देव बोले, “तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी, वत्स। पर मैं चाहता हूं कि तुम अपनी बेटी का रिश्ता तय करने से पहले उससे यह अवश्य पूछ लो कि आखिर वह क्या चाहती है।” सूरज बोला, “ठीक है। आप जैसा कहें वैसा ही होगा।” जब सूरज ने आश्रम आकर अपनी बेटी से सूर्य देव के रिश्ते की बात की तो भगवती ने कहा, “पिताजी, मैं सूर्य देव से शादी कैसे कर सकती हूं।
सूर्य देव का मिजाज बहुत गर्म रहता है। अगर मैं उनकी पत्नी बनी तो मैं उनके तेज से ही भस्म हो जाउंगी। यही एक कारण है कि मैं उनसे शादी नहीं कर सकती। फिर भी अगर आप चाहते हो तो मैं आपके बात की अवहेलना नहीं करूंगी और सूर्य देव से शादी कर लूंगी।” सूरज बोला, “नहीं, बेटी, अगर तुम यह रिश्ता नहीं करना चाहती हो तो मैं जबरदस्ती नहीं करूंगा।”
फिर थोड़े दिन बाद में सूरज ने वायु देव की स्तुति की। वायु देव भी उसकी साधना से खुश होकर उसके सामने प्रकट हुए। वायु देव ने कहा, “मैं तुम्हारी साधना से बहुत प्रसन्न हुआ। कहो तुम क्या वरदान मांगना चाहते हो, वत्स?” सूरज बोला, “मैं आपसे बहुत बड़ी चीज मांगना चाहता हूं। क्या आप वह चीज मुझे देंगे?” वायु देव बोले, “हाँ, मैं तुम्हारी हर मनोकामना पूर्ण करूंगा।
कहो तुम क्या मांगना चाहते हो?” सूरज बोला, “वायु देव, क्या आप मेरी बेटी से विवाह कर लेंगे? मैं उसका हाथ आपके हाथों में सौंपना चाहता हूं।” वायु देव ने भी वही जवाब दिया जो कि सूर्य देव ने दिया था। अर्थात वायु देव ने कहा कि सूरज अपनी बेटी से अवश्य पूछे कि वह यह शादी करना चाहती है कि नहीं। जब सूरज ने भगवती से पूछा कि क्या वह वायु देव से शादी करना चाहती है कि नहीं। तो भगवती बोली कि वह वायु देव से शादी इसलिए नहीं कर पाएगी क्योंकि वायु देव उसे हवा से इधर से उधर उड़ा देंगे।
अब सूरज के सामने अंतिम विकल्प था। अब सूरज ने सोचा कि क्यों ना वह भगवती की शादी बादल से करवा दे? सूरज ने बादल को पुकारा और कहा, “मैं अपनी बेटी के लिए अच्छा रिश्ता देख रहा हूं तो क्या तुम मेरी बेटी से शादी कर सकते हो?” बादल ने कहा, “मैं आपकी बेटी से शादी करने को तैयार हूं। क्या आप अपनी बेटी से मुझे मिलवा सकते हैं?” फिर सूरज ने अपनी बेटी को बुलाया। भगवती काले काले मेघ को देखकर डर गई।
उसने झट से सूरज से कहा, “पिताजी, यह मेरे पति कैसे बन सकते हैं। इनका रंग रूप तो बहुत ही अजीब है। आप मुझे देखो कि मैं कितनी सुंदर हूं। क्या आपको लगता है कि मैं बादल की पत्नी बनी हुई अच्छी लगूंगी? तभी अचानक बादल गरजने लगा। बारिश के मौसम को देखते हुए खूब सारे जानवर हर्षित होकर इधर-उधर दौड़ने लगे।
उन्हीं जानवरों में एक नर गिलहरी भी थी जो पेड़ पर उछल कूद कर रही थी। उस गिलहरी को देखकर भगवती खुशी के मारे उछल पड़ी। उसने सूरज को वह नर गिलहरी दिखाते हुए कहा, “पिताजी, यह देखो, यह दिखने में कितने सुंदर है। मेरा मन तो इन्हें ही अपना पति मानने को कह रहा है। मैं चाहती हूं कि आप मेरी शादी इन्हीं से ही तय करवा दे।”
अचानक सूरज को यह यादव आया कि जिस लड़की को वह अपनी बेटी मान रहा था असल में वह एक गिलहरी ही थी। वह बेटी के मोह माया में बंध गया था इसलिए उसे यह बात याद नहीं रही। अंत में उसे यह पता चल चुका था कि भगवती इंसान नहीं बल्कि एक जानवर है। सूरज ने भगवती को इंसान से गिलहरी बना दिया और उसकी शादी उस नर गिलहरी से करवा दी। फिर भगवती खुशी खुशी अपने पति के साथ रहने लगी।
इस कहानी से मिलने वाली सीख-