नैतिक कहानी-28 “सच्ची मित्रता”

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Ekta Ranga

गीता बहुत ही समझदार और मेहनती लड़की थी। वह अपने माता-पिता की एकमात्र लड़की थी। उसके दो बड़े भाई भी थे। वह अपने दोनों भाई की बहुत लाड़ली थी। वह अपने माता और पिता की भी बहुत लाड़ली थी। गीता बहुत ही हंसमुख और मिलनसार थी। वह हमेशा सबसे हंसकर बोला करती थी। उसे कोई भी तरह का लालच नहीं था।

वह बहुत ही दयालु भी थी। दया भाव जैसे उसके रग रग में बसा था। मिलनसार स्वभाव के चलते उसने खूब सारे दोस्त बना लिए थे। उसकी खूब सारी सहेलियां भी थी। सब उसे प्यार करते थे। यहां तक कि बहुत सारे पक्षी भी उसके दोस्त बन गए थे। उसका हर रोज़ का एक नियम था कि वह अपने आंगन आए पक्षियों को दाना डालती थी। गीता के इसी प्यार और सम्मान को देखकर वह पक्षी भी उसके अच्छे मित्र बन गए थे।

जब आपको सब प्यार करते हो तो यह जरूरी होता है कि आपके ही घर या आस पड़ोस में कोई ऐसा होगा जो आपको पसंद ही नहीं करता हो। गीता के साथ भी कुछ यही था। जब सब उसे प्यार करते थे तो उसकी दो भाभी ही ऐसी थी जो उसको पसंद नहीं करती थी।

वह दोनों दिन रात यही सोचती कि उनकी ननंद कब शादी करके दूसरे घर जाएगी। उन दोनों ने अपने सास ससुर को कितनी बार ही कह दिया था कि गीता की शादी जल्द से जल्द कर दी जाए। लेकिन गीता के माता पिता यह कहकर बात टाल देते थे कि उनकी बेटी अभी छोटी है। एक दिन गीता अपने भाई और भाभियों के साथ मंदिर के दर्शन करने गई।

वहां उसने भगवान के दर्शन किए और फिर मंदिर के बगीचे में जाकर पक्षियों को दाना खिलाने लगी। जब वह दाना खिलाने में व्यस्त थी तो एक युवक उसको लगातार देखा जा रहा था। वह गीता की सुंदरता पर मोहित हो गया था। उस लड़के का नाम मोहन था। वह ज़मींदार का लड़का था।

दो दिन बाद ही मोहन के माता पिता मोहन के लिए गीता का हाथ मांगने उसके घर पहुंचे। उन्होंने गीता के परिवार के आगे शादी का प्रस्ताव रखा। गीता के परिवार वाले इस रिश्ते के लिए हां करने को तैयार ही नहीं थे। वह अपने कलेजे के टुकड़े को अपने से दूर करने को तैयार नहीं थे। लेकिन गीता की भाभियों को यह बात बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी।

वह इस जिद पर अड़ गई कि या तो वह दोनों इस घर में रहेंगी या फिर गीता। उन दोनों ने यह धमकी दी कि अगर गीता की शादी नहीं हुई तो वह दोनों घर छोड़कर चली जाएगी। आखिरकार गीता के माता-पिता को उसकी शादी मोहन से करवानी पड़ी। गीता शादी करके अपने ससुराल चली गई।

जब गीता की शादी हो गई तब जितने भी पक्षी थे वह भी गीता के साथ ही चले गए। गीता जब भी अपने ससुराल में काम करती वह पक्षी भी पेड़ पर बैठे उसे देखते रहते थे। वह सोचती कि वह कितनी भाग्यशाली है जो यह पक्षी उसके साथी बनकर ससुराल में भी उसका साथ निभा रहे हैं। लेकिन गीता की सास को यह कतई पसंद नहीं था कि गीता उन पक्षियों के साथ खेले और बातचीत करें। वह अपने बगीचे में खूब सारे पक्षियों को देखकर गुस्से से लाल पीला हो उठती थी।

उसने गीता को खूब रोका टोका कि वह पक्षियों से ना मिला करे। लेकिन गीता का मन उन सबसे मिले बगैर मानता ही नहीं था। एक दिन गीता को सबक सिखाने के लिहाज से गीता की सास ने पक्षियों को पत्थर मारे। बेचारे बहुत से पक्षियों को इस वजह से चोट भी लगी। इस घटना से सभी पक्षी बहुत ज्यादा डर गए थे। धीरे-धीरे उन्होंने गीता के आंगन और बगीचे में आना छोड़ दिया था। लेकिन तब भी गीता और वह सभी पक्षी शहर के बगीचे में चुपके चुपके मिला करते थे।

एक दिन गीता और उसकी सास खरीदारी के चलते बाजार की ओर जा रहे थे। गीता की सास इस बात से बहुत खुश थी कि उसकी बहू ने पक्षियों से मिलना जुलना छोड़ दिया है। लेकिन उसको यह नहीं पता था कि गीता तो आज भी उन पक्षियों की सच्ची दोस्त थी। गीता और उसकी सास सोने के गहनों की खरीदारी करने गई थी। वह दोनों सुनार के पास गई और वहां से सोने के गहने खरीदे। जब वह खरीदारी करके अपने घर की ओर जा रही थी तब उन दोनों पर किसी ने तेजी से हमला किया।

पहले तो उन्हें कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन जैसे ही उन दोनों ने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि चार चोरों ने उनपर हमला किया था। क्योंकि सोने के गहने का बैग गीता की सास के पास था इसलिए उन चोरों ने उसके मुंह पर जोर से प्रहार किया। प्रहार के चलते उसकी सास के हाथ से जेवर भरा बैग गिर गया। मौका पाते ही चोरों ने उस बैग को उठाया और वह वहां से भागने लगे। लेकिन इससे पहले कि वह चोर भाग पाते, गीता के पक्षियों ने चोरों पर हमला कर दिया। चोर पक्षियों के प्रहार को सहन नहीं कर पाए और वह जेवर भरा बैग वहीं छोड़कर भाग गए।

पक्षियों ने वह बैग उठाया और उसे लाकर गीता की सास को सौंप दिया। जब गीता की सास ने बैग संभाला तो उसने पाया कि सभी जेवरात उसी बैग में सुरक्षित पड़े थे। फिर वह अचानक फफक फफक कर रोने लगी। जब गीता ने अपनी सास से पूछा कि वह क्यों रो रही है? तो सास ने कहा, “बहू, मैंने तुम्हारे साथ और इन भोले भाले पक्षियों के साथ कितना बुरा व्यवहार किया।

लेकिन आज जब बात आई मेरी जान बचाने की तो बेचारे इन पक्षियों ने अपनी जान पर खेलकर मुझे बचाया। मैं आज बहुत शर्मिदा हूं। फिर गीता की सास ने अपनी बहू और पक्षियों से माफी मांगी। उन्होंने उसे माफ कर दिया। फिर वह सभी एक साथ खुशी खुशी रहने लगे।

इस कहानी से मिलने वाली सीख – इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी किसी के साथ बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए। हमें नहीं पता होता है कि इस जीवन में हमें किसकी जरूरत पड़ जाए।

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