नैतिक कहानी-3 फूटे घड़े की कहानी

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Ekta Ranga

एक कुम्हार था। वह घड़ा बनाकर बेचा करता था और उसी से ही अपना गुजारा करता था। बहुत से लोग उसकी दुकान पर आकर उससे घड़े खरीदते थे। एक दिन हर दिन की ही तरह वह कुम्हार घड़ा तैयार कर रहा था कि पास ही पड़े एक तैयार घड़े में उसके हाथ के टक्कर के चलते एक छेद हो गया। वह छेद घड़े के बीचो-बीच हुआ था।

उस घड़े को ऐसा देख कुम्हार ने सोचा कि क्यों ना इस बेकार हुए घड़े को जंगल में रख आऊं। क्योंकि यह अब कोई काम का नहीं है इसलिए यह मेरे पास रहकर क्या करेगा। फिर कुम्हार जंगल गया और घड़े को जंगल में छोड़ आया। घड़े को छोड़कर जब कुम्हार अपने घर आया तो उसने देखा कि एक ग्राहक घड़ा खरीदने की प्रतीक्षा में उसका इंतजार कर रहा था। उसने ग्राहक को नया घड़ा दिया और घड़ा मिलते ही वह ग्राहक अपने घर की ओर रवाना हो गया।

जब वह घड़े को लेकर जंगल से गुजर रहा था तो उसे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। वह यह देखने लगा कि यह आवाज आखिर कहां से आ रही थी। आखिरकार उसे पता चल ही गया कि वहां कौन रो रहा था। दरअसल वही फूटा घड़ा रो रहा था।

उस आदमी ने जब घड़े से रोने का कारण पूछा तो उसने बताया कि वह अपनी बदनसीबी पर रो रहा है। क्योंकि उसमें एक छोटा छेद हो गया है इसलिए उसके मालिक ने उसे व्यर्थ मानकर त्याग दिया है। उस आदमी को घड़े पर दया आ गई और वह घड़े को अपने साथ अपने घर ले गया।

वह आदमी एक किसान था। घर पर पहुंचकर उसने अपनी पत्नी को दोनों घड़े दिखाए। उसकी पत्नी एक घड़ा देखकर तो बहुत खुश हुई लेकिन दूसरा घड़ा देखकर उसे निराशा हुई। उसने अपने पति से कहा, “यह आप टूटा घड़ा क्यों लेकर आए हो? इसका हमें क्या फायदा होगा?” किसान बोला, “इसका फायदा यह है कि इसे कम से कम आधा भरा जा सकता है। और एक बात जीवन में हमेशा याद रखो कि जीवन में कोई भी चीज पूर्ण रूप से बेकार नहीं होती।

नागकनी के भी अपने फायदे होते हैं।” फिर किसान ने दोनों घड़ों को उठाया और नदी से पानी भरने चला गया। नदी पर पहुंचकर किसान ने दोनों घड़ों को भरा और अपने घर के लिए रवाना हो गया। जब वह बीच रास्ते से जा रहा था तब एक घड़े का पानी तो स्थायी था।

लेकिन दूसरे घड़े से पानी की बड़ी बूंदे लगातार छलक रही थी। जब वह किसान घर पहुंचा तो उसने देखा कि दुसरे घड़े में पानी आधा ही रह गया था। उसने अपना दिमाग दौड़ाया कि कैसे वह टूटे घड़े का सही रूप से इस्तेमाल कर सकता है। उसे तरकीब सूझ गई।

अब किसान हर दिन दोनों घड़ों में पानी भरता और भरकर अपने घर ले जाता। यह सिलसिला लगातार यूँ ही चलता रहा। फिर एक दिन पहले घड़े ने दूसरे घड़े से कहा कि, “पता नहीं मालिक तुम्हारे अंदर भी पानी क्यों भरते हैं। तुममें पानी भरने का कोई अर्थ नहीं है। रास्ते में तुमसे आधे से ज्यादा तो पानी गिर ही जाता है। फिर तुम तो व्यर्थ निकले ना।” फूटे घड़े ने सोचा कि पहला घड़ा एकदम सही कह रहा था।

वह अपने आप को कोसने लगा। उन दोनों की बात किसान ने सुन ली थी। वह दोनों के पास आया। फूटे घड़े ने किसान को रोते हुए कहा, “मालिक आप मुझे क्यों काम में लेते हो। मैं आपके किसी भी काम का नहीं। आप मुझे वही छोड़ आए जहां से आप मुझे लाए थे।” किसान बोला, “देखो, तुम बहुत अच्छे हो। आज मैं तुम्हें तुम्हारी अहमियत बताऊंगा। तुम आज रास्ते में उगे पौधों को देखते जाना।”

किसान दोनों घड़ों को लेकर नदी की ओर निकल पड़ा। बीच रास्ते में उस घड़े ने किसान के कहे मुताबिक छोटे छोटे पौधे देखे तो वह बहुत खुश हुआ। उन पौधों में कुछ सब्जी के पौधे थे तो कुछ फूल के पौधे थे। किसान ने उस घड़े को कहा, “क्या तुम यह पौधे देख रहे हो?” घड़ा बोला, “हाँ मालिक।” किसान ने कहा, “यह जो पौधे हैं ना वह केवल तुम्हारी मेहनत की वजह से उग पाए हैं। दरअसल मैंने मार्ग के किनारों पर कुछ फूल और कुछ सब्जी के बीज उगा दिए थे।

जब भी मैं तुममें पानी भरकर इसी मार्ग से जाता तो तुममें से पानी की बड़ी बूंदे इन पौधों पर गिरती। धीरे-धीरे इनमें सब्जी और फूल उग आए। मैं इन सब्जी और फूलों को लेता और इन्हें बाजार में बेच देता। बदले में मुझे पैसे मिलते।” अब उस घड़े को अपने ऊपर गर्व महसूस हो रहा था कि उसका भी कितना महत्व है।

कहानी से सीख- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी किसी को कम नहीं आंकना चाहिए। सब में अलग अलग गुण होते हैं। जीवन में सभी की जरूरत रहती है।

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