बहुत पुराने समय की बात है जब एक बड़े से बगीचे में दो मोर रहा करते थे। उन दोनों मोर का नाम था बल्लू और भोलू। बल्लू बड़ा था और भोलू छोटा था। वह दिन रात बगीचे में इधर-उधर घूमते और खूब अठखेलियाँ करते रहते थे। उन्हें अपना यह स्वतंत्र जीवन बहुत पसंद आता था। जो कोई भी लोग बगीचे के आसपास से गुजरते थे वह सब उन दोनों की सुंदरता पर मोहित हो उठते। सभी को वह मोर बहुत अच्छे लगते थे।
दोनों मोर कई बार लोगों से यह सुना करते थे कि, “यह मोर इतने खूबसूरत है कि इनकी जगह तो राजमहल में होनी चाहिए। यह मोर राजमहल की सुंदरता में चार चांद लगा देंगे। “बल्लू और भोलू सोचा लोगों की बात सुनकर सोचा करते थे कि अगर वह राजमहल में चले जाए तो उनकी खातिरदारी कितनी शाही अंदाज में होगी।
एक दिन उस बगीचे के आसपास एक शिकारी आया। उस शिकारी की नजरें बल्लू और भोलू पर पड़ी। शिकारी को वह दोनों इतने ज्यादा पसंद आए कि उसने उन दोनों को पकड़ लिया। वह दोनों को पकड़कर अपने घर की ओर चलने लगा। तभी बीच रास्ते में एक शहर पड़ा। उस शहर में एक बड़ा मेला लगा हुआ था।
शिकारी ने सोचा कि क्यों ना इस मेले में शिरकत की जाए। मेले में शिरकत करने से मोर भी बिक जाएंगे और उसे अच्छी खासी रकम भी मिल जाएगी। यह शायद उस शिकारी का अच्छा भाग्य था कि उस मेले में राजा का बेटा भी आया हुआ था। राजा के बेटे ने मेले में इतनी सारी चीजें देखी। लेकिन उसे अंत में शिकारी के मोर बहुत ज्यादा पसंद आ गए। राजा के बेटे ने शिकारी को सोने की मुहर दी और शिकारी से दोनों मोर खरीद लिए।
राजा का बेटा जब बल्लू और भोलू को लेकर महल पहुंचा तो सभी की नजर उन दोनों पर ही अटक गई। राजा भी उन दोनों को देखकर बहुत खुश हुआ। राजा ने अपने बेटे से पूछा कि उसने यह मोर कहां से खरीदे हैं। तो इसपर राजा के बेटे ने अपने पिता को सारी बात बताई दी।
राजा ने अपने नौकरों से कहा कि इन दोनों मोर को सोने के बड़े से पिंजरे में बैठा दिया जाए। बल्लू और भोलू को सोने के पिंजरे में रख दिया गया। उस पिंजरे में खाने पीने का सारा सामान रखवा दिया गया। पिंजरे के पास दो दासियां हर पल खड़ी रहती थी। बल्लू और भोलू की खूब आवभगत होती थी। वह दोनों ही ऐसी मेहमाननवाजी से बहुत खुश थे।
एक साल तक तो सभी बल्लू और भोलू को ही देखने आते थे। उन दोनों का खूब लाड़ प्यार होता था। उन्हें खुद पर गर्व महसूस होता था कि वह दोनों ही लोगों को कितना ज्यादा पसंद है। फिर एक दिन राजा का बेटा अपने साथ एक बड़ा और सुंदर कुत्ता लाया। उसने राजा से कहा, “पिताजी, देखो मैं कितना सुंदर कुत्ता लाया हूं।” राजा को वह कुत्ता बहुत पसंद आया।
राजा के बेटे ने कहा कि वह इस कुत्ते को महल में रखना चाहता है। राजा ने इस बात के लिए हामी भर दी। अब राजदरबार में वह कुत्ता सभी का प्रिय बन गया। अब बल्लू और भोलू को कम तरजीह दी जाने लगी। जब राजदरबार में वह कुत्ता सभी के आगे पीछे घूमता तो सभी उसको प्यार करते। यह देखकर बेचारे बल्लू और भोलू बहुत दुखी हो जाते। एक दिन ऐसा भी आया जब राजा ने आदेश दिया कि दोनों मोर को वापिस बगीचे में छोड़ दिया जाए।
राजा की यह बात सुनकर दोनों को बहुत दुख हुआ। लेकिन वह दोनों करते तो भी क्या करते। आखिरकार उन्हें दुबारा अपने मूल स्थान पर जाना पड़ा। राजा के बेटे का वह कुत्ता अब धीरे धीरे बड़ा हो रहा था। वह अब बहुत ज्यादा बदमाश होने लगा था। धीरे धीरे उसकी बदमाशियां हद से ज्यादा बढ़ गई। राजा ने कुत्ते से परेशान होकर अपने बेटे को यह आदेश दिया कि उस कुत्ते को दुबारा जंगल छोड़ दिया जाए। कुत्ते को जंगल छोड़कर आने के बाद राजा का बेटा फिर से दोनों मोर को अपने महल ले आया। महल आने के बाद में बल्लू और भोलू की फिर से खूब खातिरदारी होने लगी।
एक दिन बल्लू ने भोलू से पूछा, “भोलू, हम दोनों तो आज भी वैसे ही हैं जैसे पहले थे। तो फिर बीच में जब वह कुत्ता महल आया तो हमें दरकिनार क्यों कर दिया गया। और जब वह कुत्ता इन सभी को परेशान करने लगा तो उस कुत्ते को त्यागकर हमें फिर से महल में स्थान दे दिया गया।
ऐसा क्यों हुआ?” इस बात पर भोलू ने जवाब दिया, “ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि समय बहुत बलवान है। जब हमारा समय अच्छा चल रहा था तब हमें महल लाया गया। और जब उस कुत्ते का समय अच्छा आया तब हमें राजमहल से निकाल दिया गया और उस कुत्ते को हमारी जगह मिल गई। अब दुबारा हमारा समय अच्छा आ गया है। तो मेरे दोस्त, कहने का मतलब यह है कि समय बदलते हुए देर नहीं लगती।”
इस कहानी से मिलने वाली सीख- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें समय के अनुसार परिस्थितियों में ढल जाना चाहिए। किसी का भी जीवन एक समान नहीं रहता है।
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