गीता अपने गांव की सबसे सुलझी हुई और पढ़ी लिखी महिला थी। पूरे गांव में अगर सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी कोई महिला थी तो वह गीता ही थी। गीता उम्र में बड़ी होने के बावजूद भी सुंदर दिखती थी। अपने जवानी के दिनों में तो वह और भी ज्यादा खूबसूरत दिखा करती थी। उसे इस बात पर भी खूब नाज था। गीता का पति भी उसे प्यार से रखता था। गीता के दो बेटे थे। एक था मोहन और एक था सोहन। मोहन बड़ा बेटा था तो सोहन छोटा था। उसके बेटों की उम्र अब शादी के लायक हो रही थी। उसने अपने दोनों बेटों के लिए बहू ढूंढनी शुरू कर दी थी।
एक दिन उसने अपने बड़े बेटे को एक लड़की की फोटो दिखाई। लेकिन मोहन को वह लड़की पसंद नहीं आई थी। इस बात पर गीता ने उसे जोर से डांट लगाते हुए कहा, “मोहन, तुझे क्या कमी लगी इस लड़की में? इतनी तो सुंदर और पढ़ी-लिखी लड़की है यह। अब तुझे इसके अलावा और क्या चाहिए।” मोहन ने बेबाक होकर कहा, “मां, मैं दिशा से बहुत ज्यादा प्रेम करता हूं।
अगर मैं किसी से शादी करूंगा तो वह दिशा के अलावा और कोई नहीं हो सकता है।” गीता गुस्से से तिलमिलाती हुई बोली, “अगर तुम्हें शादी करनी है तो लड़की मेरी पसंद की ही होगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो मैं तुझे शादी नहीं करने दूंगी।” लेकिन मोहन था कि अपनी ही जिद पर ही अड़ था। उसने अपनी मां को साफ साफ शब्दों में बोल दिया था कि वह शादी दिशा से ही करेगा।
जब बड़े बेटे ने अपनी मां द्वारा प्रस्तावित रिश्ता ठुकरा दिया तो गीता ने अपने छोटे बेटे से उस लड़की की शादी करवा दी। उस लड़की का नाम साक्षी था। साक्षी दिखने में बेहद ही सुंदर थी। साथ ही साथ वह खूब पढ़ी लिखी भी थी। बड़े बेटे मोहन ने भी अपनी मां की इच्छा के खिलाफ जाकर शादी कर ली। जैसे ही साक्षी और दिशा ने शादी करके घर में कदम रखा, तो दोनों के बीच तुलना शुरू हो गई।
गीता के सभी रिश्तेदार और पड़ोसी साक्षी की खूब तारीफ किया करते थे। आखिर वह बहुत सुंदर और इतनी पढ़ी लिखी बहू जो थी। तो वही दूसरी ओर लोग दिशा को देखकर मुंह बनाया करते थे। पहला कारण यह था कि वह दूसरी बिरादरी से थी। और दूसरा कारण यह था कि वह दिखने में बेहद ही सांवली सी साधारण रंग रूप वाली लड़की थी। दिशा साक्षी जितना पढ़ी लिखी हुई भी नहीं थी।
मोहन को बहुत बुरा लगता था जब वह देखता कि उसकी बीवी की कोई कद्र नहीं करता। यहां तक की मोहन की मां गीता भी अपनी बड़ी बहू को बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थी। वह कभी दिशा में उसके बने हुए खाने को लेकर कसर निकालती। तो कभी वह उसके रंग रूप और उसकी पढ़ाई लिखाई में कमियां निकालती। गीता अपनी बड़ी बहु से बहुत बुरा व्यवहार करती थी।
वह अपनी बड़ी बहू और छोटी बहू के बीच भेदभाव करती थी। उसे अपनी छोटी बहू से प्यार इसलिए था क्योंकि उसकी छोटी बहू उसकी पसंद की थी। गीता अपनी बड़ी बहू दिशा से बात ही नहीं करना चाहती थी। अगर बात करें मेहनत की तो दिशा साक्षी से दोगुना मेहनती थी। मेहनत का कोई भी काम साक्षी से नहीं होता था। दिशा अपनी सास की दिन रात देखभाल किया करती थी, लेकिन गीता पर इसका कोई असर नहीं होता था।
अब मोहन दिशा को और ज्यादा दुखी नहीं देखना चाहता था। उसने तय किया कि वह दिशा को लेकर कहीं और चला जाएगा। इस बात से उसकी मां को भी शांति मिल जाएगी और उसकी पत्नी भी खुश रहेगी। फिर एक दिन मोहन दिशा को लेकर दूसरे घर चला गया। मोहन की मां को यह जानकर बहुत अच्छा लगा। अब वह अपनी छोटी बहू के साथ खुशी खुशी से रहने लगी। गीता को बहुत अच्छा लगता था कि उसकी बड़ी बहू अब घर से चली गई थी।
थोड़े ही दिनों बाद गीता बीमार सी रहने लगी थी। अब वह बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं रह पाती थी। गीता के शरीर में दिन रात थकान ही थकान बनी रहती। एक दिन वह चक्कर खाकर गिर पड़ी। डॉक्टर ने उसे बताया कि उसे हाई बीपी रहता है और इसी वजह से वह गिर पड़ी थी। अब उसे दिन रात आराम करने को बोला गया।
एक दिन गीता के पति और छोटे बेटे को किसी काम के सिलसिले से बाहर जाना था। इसलिए गीता ने अपनी छोटी बहू को कहा कि जब तक उसके पति और बेटा बाहर है तब तक वह उसकी सेवा करे। छोटी बहू ने इस बात के लिए हामी भर दी। लेकिन कहीं ना कहीं साक्षी अपनी सास को कोसती भी थी।
वह सोचती थी कि उसको ऐसी बीमार सास क्यों मिली है। फिर एक दिन साक्षी के दोस्तों ने किटी पार्टी का एक बड़ा आयोजन रखा। साक्षी को पूरे एक दिन के लिए अपनी दोस्त के यहां रहना था। साक्षी ने अपनी सास से कहा, “मम्मी जी, आज मैं अपनी दोस्त के घर रहने जाऊंगी। मेरे और दोस्त भी आएंगे वहां। आप ऐसा करना कि आज रात के लिए दिशा भाभी को अपने पास सोने के लिए बुला लेना।”
जब गीता ने साक्षी से यह बात सुनी तो गीता को मानो जैसे कोई गहरा धक्का लगा। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी बहू उसे ऐसे अकेला छोड़गी। गीता ने शर्म खाते हुए दिशा को फोन लगाया। दिशा को जब इस बात के बारे में पता चला तो वह दौड़ती हुई गीता के पास आ गई। गीता को अब खुद पर शर्म आ रही थी कि उसने कितना गलत व्यवहार किया था दिशा के साथ।
उसने दिशा से माफी मांगते हुए कहा, “मुझे माफ करना, बहू। मैंने तुम्हारे साथ कितना गलत व्यवहार किया। और तुमने कभी भी मेरी बातों का बुरा नहीं माना। आज मुझे समझ आ गया है कि इंसान की असली सुंदरता और जात-पात उसके व्यवहार से बनती है।” ऐसा कहते ही दोनों ने एक दूसरे को गले लगा लिया। उस दिन के बाद गीता और दिशा एक अच्छी सास और बहू की तरह रहने लगे।
इस कहानी से मिलने वाली सीख- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि इंसान की असली सुंदरता की परख उसके व्यवहार से की जाती है। हमें इंसान के व्यवहार को ही महत्व देना चाहिए।
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