नैतिक कहानी-36 “संतोष ही धन है”

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Ekta Ranga

बहुत समय पहले आदित्यपुरम नाम का एक बहुत बड़ा नगर हुआ करता था। उस नगर के लोग खुशहाली भरा जीवन जीते थे। उस नगर में ऐसे केवल थोड़े लोग ही थे जो कि गरीब थे। ऐसे लोग बिल्कुल भी संतोष के साथ नहीं रहते थे। वह गरीबी का रोना हर जगह रोते थे। उन्हीं गरीब लोगों में एक ऐसा जोड़ा भी था जो अपने जीवन से पूरी तरह से संतुष्ट था। लोग उस जोड़े को देखकर अचरज किया करते थे कि यह गरीबी में भी संतुष्ट कैसे हैं।

लेकिन वैष्णवी और आदिनाथ को दुनिया की जैसे कोई परवाह ही नहीं थी। वह दोनों दिन रात भगवान का स्मरण करते और सभी की भलाई के बारे में ही सोचते। अमीर लोग भी उनको ऐसे खुश देखकर हैरान थे। अमीर लोग सोचा करते थे कि वह धन से सम्पन्न होते हुए भी खुश नहीं है तो फिर वैष्णवी और आदिनाथ बिना धन के भी कैसे खुश हैं।

वह दोनों ही लोगों के कौतुहल का विषय बन गए थे। यह बात राजा तक भी पहुंची। राजा ने सोचा क्यों ना मैं अपना भेष बदलकर उनकी गरीब झोपड़ी में जाऊं? इस सोच के साथ राजा ने अपना भेष बदला और वह गरीब वैष्णवी और आदिनाथ की झोपड़ी की ओर रवाना हो गया। जब राजा झोपड़ी के अंदर दाखिल हुआ तो उसने देखा कि वैष्णवी आदिनाथ के लिए खाना लगा रही थी। थाली में मात्र दो सूखी रोटियां थी। आदिनाथ रोटी को पानी के साथ निगल रहा था। राजा को यह देखकर बड़ा अचरज हुआ। वह दोनों खुद में ही इतने तल्लीन थे कि उन्हें पता तक नहीं चला कि उनकी झोपड़ी में राजा भी खड़ा है।

जब थोड़ी देर बाद वैष्णवी ने देखा कि राजा उनके द्वार खड़ा है तो वह बोली, “अरे, राजन! मुझे माफ करना कि मैंने आपको देखा नहीं। आप ऐसे खड़े क्यों है। आप धरती पर विराजमान होइए ना। मैं आपके लिए खाना लगा देती हूं।” फिर वैष्णवी रसोई में गई और जल्दी से दो रोटी राजा के लिए ले आई। राजा ने सोचा अगर मैंने रोटी खा ली तो वैष्णवी रोटी कैसे खाएगी। राजा बोला, “माते, अगर मैं रोटी खा लूंगा तो फिर आप क्या खाएंगी?” वैष्णवी ने कहा, “तुम इस बात की चिंता मत करो। हमारे यहां जो कोई भी मेहमान खाना खा ले तो समझो ऐसे में हमारा भी पेट भर जाता है।” राजा वैष्णवी की इस बात पर सोच में पड़ गया।

वैष्णवी ने राजा की तल्लीनता तोड़ते हुए कहा, “वत्स, तुम खाना खाओ।” राजा ने रोटी खाना शुरू कर दी। भोजन करने के पश्चात राजा ने कहा, “माते, रोटी बहुत स्वादिष्ट थी।” फिर राजा अपनी पोटली से कुछ कपड़े और सोने के सिक्के निकालते हुए बोला, “यह महाराज ने आपके लिए भिजवाए हैं। जब उन्हें आपके बारे में पता चला तो वह बहुत दुखी हुए। वह आपको इस हालत में नहीं देख सकते।

“इस बात पर वैष्णवी ने मुस्कुराकर कहा, “बेटे, हमें तो किसी भी बात की कोई कमी नहीं है। जिस इंसान के पास तन ढकने के लिए कपड़े हो। सिर पर छत हो। दो टाइम खाने के लिए कुछ अन्न मिल जाए तो उसको किस बात की कमी होगी। और सबसे ज्यादा कोई चीज महत्व रखती है तो वह है भगवान का साथ। अगर यह साथ इंसान के साथ ना हो तो वह मनुष्य कभी भी सोने के महल में रहकर भी खुश नहीं रह सकता।” राजा के आंखों में आंसू भर आए। वह वैष्णवी के पैरों में गिरकर बोला, “माते, आप सही मायने में धन्य हैं। आज आपने यह साबित कर दिया है कि संतोष ही सबसे बड़ा धन होता है।”

इस कहानी से मिलने वाली सीख – इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी लालच नहीं करना चाहिए। जो लोग थोड़े में भी सुखी रह लेते हैं वह अपने जीवन में कभी भी दुखी नहीं होते।”

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