बहुत समय पहले की बात है जब एक जंगल में एक चींटी रहा करती थी। वह चींटी बहुत ज्यादा मेहनती थी। उसे मेहनत करने में बहुत आनंद आता था। हालांकि उस जंगल में और भी जानवर रहा करते थे लेकिन वह उस चींटी जितने मेहनती नहीं थे।
चींटी इतनी परिश्रमी थी कि वह रात दिन अपने लिए अनाज जुटाने के लिए दिन और रात एक कर दिया करती थी। कई बार ऐसा होता था कि बहुत से जानवर उसे यूं बिना थके काम करते देख हंसा करते थे। लेकिन वह चींटी उन जानवरों की हंसी की परवाह किए बिना अपने काम पर अडिग रहती।
एक दिन हर दिन की ही तरह वह चींटी अपने लिए अनाज जमा कर रही थी। क्योंकि कुछ ही महीनों बाद में सर्दियों के दिन आने वाले थे इसलिए वह पहले से ही खुद के लिए दाना पानी जमा कर रही थी। उसे ऐसा करते देख बहुत से जानवरों ने उसे कहा कि, “ओ रे, नन्ही चींटी, तुम क्यों इतना परिश्रम कर रही हो? तुम कितना ज्यादा थक गई हो।
थोड़े देर रुककर आराम तो कर लो बहन। अभी तक तो सर्दियों का मौसम बहुत दूर है। तुम अभी से ही इतना भार ढोकर अपने शरीर को कष्ट क्यों दे रही हो?” इस पर चींटी ने कहा, “मेरे प्रिय भाइयों और बहनों, मुझे अच्छा लगा कि आप मेरे बारे में इतना ज्यादा सोच रहे हैं।
लेकिन मैं आपको एक बात बताना चाहती हूं कि ऐसा करने से मेरे शरीर पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा। अगर मैं अभी से ही मेहनत करूंगी तो आगे जाकर मुझे कोई प्रकार का कष्ट नहीं झेलना पड़ेगा। मेहनत करने का फल सदैव ही मीठा होता है।” ऐसा कहकर चींटी फिर से अनाज इकठ्ठा करके अपने बिल में ले जाने लगी।
एक दिन जंगल में उड़ता हुआ टिड्डा आया। वह टिड्डा हरा और सुंदर रंग वाला था। टिड्डी अपने लंबे पंखों के साथ लंबी से लंबी दूरियां तय करता था। टिड्डी को हर पल गुनगुनाना अच्छा लगता था। वह भोजन के रूप में हरी पतियों को चबाता और ऐसे करके अपना पेट भरता।
वह सुबह के समय उड़कर खाना खाता और शाम के समय पर हरी भरी पत्तियों पर आकर दोबारा बैठ जाता। सुबह वह जल्दी उठ जाता था और जब धूप निकलती थी तो वह धूप में अपने शरीर को सेंकता था। वह नियम से यह काम करता था। एक दिन जब वह पेड़ों के आसपास उड़ रहा था तो उसने देखा कि हर दिन की ही तरह चींटी अपने बिल में खाना जमा कर रही थी। उसने चींटी से पूछा, “चींटी तुम खाना अभी से ही क्यों जमा कर रही हो।
अभी तो बहुत समय पड़ा है सर्दियों में। अनाज इकट्ठे करने के चक्कर में तुम कितनी दुबली होती जा रही हो। तुम क्यों जीवन के मजे नहीं ले रही हो?” चींटी बोली, “मैं अपना कर्म कर रही हूं भाई। अगर मैं अपना कर्म नहीं करूंगी तो आगे जाकर मुझे परेशानी होगी। और बात रही जीवन के मजे लेने की तो यह तो बाद में भी लिए जा सकते हैं। सर्दियों में मुझे भी आनंद आएगा।” टिड्डा चींटी पर जोर से हंसा और फुर्र से आसमान में उड़ चला। चींटी भी अपने काम में दुबारा व्यस्त हो गई।
कुछ महीनों बाद में सर्दियों ने जंगल में दस्तक दी। सारे जानवर अपने अपने घरों में जाकर दुबक गए। जंगल में बहुत ही कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। ठंडी ठंडी हवा चल रही थी। फिर थोड़े समय पश्चात जंगल में बर्फबारी भी होने लगी। हर तरफ बर्फ की चादर बिछ गई थी। सभी जानवरों के पास रहने के लिए घर था।
लेकिन एक टिड्डा ही था जिसके पास रहने को घर नहीं था। वह टिड्डा अब ठंड में बुरी तरह से कांप रहा था। उसके पास खाने पीने के लिए भी कुछ नहीं था। भूख के मारे उसका हाल बिल्कुल ही बुरा हो गया था। उसे ऐसे भूख से तड़पता देख चींटी को दया आ गई। चींटी ने उसे अपने घर में बुलाया और उसे खाना भी खिलाया।
चींटी ने टिड्डी को सर्दियों तक अपने घर में रहने के लिए शरण दे दी। अंत में चींटी ने टिड्डे से यही कहा कि इस संसार में हर एक प्राणी को मेहनत की अति आवश्यकता है। जो कर्म करता है उसे मुश्किलों का सामना कभी भी नहीं करना पड़ता है।
इस कहानी से सीख- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने जीवन में हमेशा कर्म करते रहना चाहिए। बिना कर्म के हमें सफलता प्राप्त नहीं होती है। जब हम कर्म करते हैं तो दूसरों के लिए भी एक मिसाल बन जाते हैं।