नैतिक कहानी-6 झील में नमक

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Ekta Ranga

विमल बहुत ही सुंदर और सुशील लड़का था। उसके पास जीवन में सब कुछ था। रहने के लिए घर, पहनने के लिए कपड़े और भरा-पूरा परिवार। पर फिर भी ना जाने क्यों वह ऐसे उदास रहता था जैसे कि कोई बहुत बड़ी कमी हो उसके जीवन में। बस एक अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी ही नहीं थी उसके पास। बाकी सब कुछ तो था उसके जीवन में।

वह बेवजह ही हर पल चिंता में रहता। हर पल वह उखड़ा उखड़ा ही रहता था। वह दिन प्रतिदिन निराशा के समुद्र में डूबे जा रहा था। उसे खुद के व्यवहार से बहुत चिढ़ भी मचती थी। लेकिन वह अपनी आदत से मजबूर था। उसके इस रवैये से उसके माता-पिता भी बहुत परेशान थे। वह हर पल यही सोचते कि ऐसे निराशावादी बनकर उनका बेटा कैसे जीवन जिएगा। उनको अपने बेटे के भविष्य को लेकर बहुत चिंता थी।

विमल निराश रहते रहते अंदर से टूटा जा रहा था। उसे कभी-कभी तो लगने लग जाता कि उसका जीवन निरर्थक है। क्या वह इस धरती पर बोझ के समान है? उसका दिमाग इन्हीं बातों में उलझा रहता। एक दिन उसको किसी ने बताया कि एक महात्मा इस शहर में आए हुए हैं।

वह महात्मा बहुत ही समझदार व्यक्ति हैं। जिस प्रकार से वह लोगों को जीवन का ज्ञान देते हैं वह बहुत ही अद्भुत है। विमल को लगा कि शायद वह महात्मा उसको जीवन का असली ज्ञान दे सकते हैं। इसलिए वह महात्मा के पास मिलने चला गया।

विमल महात्मा की कुटिया में पहुंचा तो देखा कि महात्मा किसी और को प्रवचन देने में व्यस्त थे। उसने अपनी बारी का इंतजार किया। जब उसकी बारी आई तो वह महात्मा के पास गया। वह महात्मा से बोला, “गुरुजी मैं आपके पास इसलिए आया हूं ताकि मेरी उलझन खत्म हो सके।” महात्मा बोले, “बोलो बेटा तुम्हें क्या परेशानी है?” विमल बोला, “जी गुरुजी मेरे जीवन में कोई कमी नहीं है।

लेकिन फिर भी ना जाने क्यों मुझे चारों ओर निराशा ने घेर रखा है। इस निराशा को खत्म करने का कोई उपाय बताइए, गुरुजी।” वह महात्मा बिना कोई जवाब दिए वहां से उठकर बाहर की ओर चले गए। विमल ने सोचा कि गुरुजी ने उसकी बातों पर कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी। उसे बहुत अजीब लगा। उसने सोचा कि वहां रुकने का अब कोई फायदा नहीं था। इसलिए वह उठा और अपने घर की ओर रवाना होने।

लेकिन इससे पहले वह जाता, वह महात्मा एक गिलास और एक नमक की थैली के साथ वापिस लौटे। महात्मा ने वह ग्लास और नमक की थैली विमल को दी और कहा, “बेटा तुम ऐसा करो कि इस गिलास में नमक मिलाकर पी जाओ।” विमल को लगा कि गुरुजी उसको ऐसा करने को क्यों कह रहे हैं।

लेकिन उसने फिर सोचा कि अगर गुरुजी कह रहे हैं तो मेरे सही के लिए ही कह रहे होंगे। उसने पानी का गिलास उठाया और पानी में नमक मिलाकर पी गया। उसने जैसे ही पानी पिया उसका मुंह खारा हो गया। विमल बोला, “यह क्या गुरुजी। यह पानी तो बहुत खारा है। इससे मेरा मुंह खारा हो गया है।” फिर महात्मा ने विमल को निर्देश दिया कि उसे उसी नमक की थैली और पानी की गिलास के साथ झील की तरफ चलना है। विमल महात्मा के कहे अनुसार झील की तरफ चला गया।

जैसे ही वह झील के पास पहुंचा उस महात्मा ने विमल से कहा, “बेटा, अब तुम ऐसा करो कि इसी थैली के नमक को झील के पानी में मिलाओ। और उस पानी को गिलास में डालकर पी जाओ।” विमल ने वैसा ही किया। लेकिन इस बार जब विमल ने पानी पिया तो वह खारा नहीं था बल्कि जैसा झील का पानी होता है वह वैसा था।

इस बार महात्मा ने पूछा कि, “क्यों बेटा, इस बार तुम्हें पानी का स्वाद कैसा लगा?” विमल बोला, “गुरुजी इस बार जो पानी मैंने पिया वह तो खारा ही नहीं था। झील वाला पानी तो सामान्य पानी जैसा था। पर एक बात यह है कि नमक का झील के पानी पर कोई असर क्यों नहीं हुआ?” महात्मा बोले, “ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि नमक की गिलास में पानी कम था और नमक की मात्रा ज्यादा थी। और झील का पानी मात्रा में ज्यादा था और उसमें जाने वाले नमक की मात्रा थोड़ी थी। ठीक ऐसा ही जीवन में होता है।

जब हम अपने जीवन में नकारात्मक विचारों को ज्यादा भाव देते हैं तब ऐसे में हमारा जीवन निराशा से घिर जाता है। और वही दूसरी ओर अगर हम दिमाग में आने वाले अनगिनत विचारों को किनारे कर दें तो हमारा जीवन खुशियों से भर उठता है। तो अब यह फैसला तुम्हें करना है कि तुम अपने जीवन को खुशियों से भरना चाहते हो या फिर अपने जीवन में दुःख को पनाह देना चाहते हो। फैसला तुम्हारा है।

इस कहानी से सीख- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने जीवन में हर पल सकारात्मक सोच रखनी चाहिए। सकारात्मकता रखने से जीवन में हमें ही खुशी मिलती है।

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