बहुत समय पहले की बात है जब सूर्य और हवा के बीच एक घमासान छिड़ गया। यह बात कुछ और नहीं थी बल्कि यह बात थी हवा के अभिमान की। हुआ यूं कि एक दिन हवा ने बहस छेड़ दी। बहस यह थी कि कौन ज्यादा ताकतवर है – हवा कि सूरज? सूरज को हवा हमेशा से ही घमंडी लगती थी। वह बहुत बार हवा को यह समझाया करता था कि हमें खुद पर कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए। लेकिन हवा थी कि मानने का नाम ही नहीं लेती थी। वह आए दिन अपना गुणगान करती रहती थी।
एक दिन हर दिन की ही तरह मंद मंद हवा चलती रहती थी। और सूरज आसमान में किसी आभूषण कि तरह चमक रहा था। हवा ने सूर्य को छेड़ने की सोची। वह सूर्य से बोली, “अरे ओ सूर्य देव! तुम क्यों इतना शान से चमक रहे हो? एक बात हमेशा याद रखना कि तुम बिल्कुल भी शक्तिशाली नहीं हो। तुम अपने पर झूठा घमंड करते हो।
“सूरज बोला, “मैं तो अपने आप पर बिल्कुल भी घमंड नहीं कर रहा हूं। यह तो तुम्हारी ही सोच है जो तुम मुझे घमंडी सोचते हो। अगर मैं यह बोलूँ कि असल में तुम ही असली घमंडी हो तो तुम क्या कहोगे।” हवा ने कहा, “मैं बिल्कुल भी घमंडी नहीं हूं सूर्य देव। तुम मुझपर झूठा इल्ज़ाम लगा रहे हो। खुद की बुराइयाँ दूसरों पर थोपना चाह रहे हो।
“सूरज ने कहा, “ना बाबा ना, मैं तो कोई झूठ नहीं बोल रहा हूँ। क्योंकि यह बात तुमनें छेड़ी थी इसलिए मैं तुम्हें तुम्हारी असलियत बता रहा हूं।” हवा ने कहा, “अगर तुम झूठ सच की असलियत जानना चाहते हो तो इस चीज का फैसला हर हाल में कल हो जाएगा।” सूरज ने कहा, “ठीक है, मैं तुम्हारी चुनौती स्वीकार करता हूं।” इस बात पर दोनों ने अपनी-अपनी सहमती जता दी।
अगले दिन हवा हर रोज की तरह बहने लगी। और सूरज भी आकाश में चमकने लगा। हवा और सूरज आकाश में लहरा ही रहे थे कि अचानक उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति विशाल पेड़ के नीचे आकर खड़ा हो गया। तभी हवा को एक तरकीब सूझी। हवा ने सूरज से कहा, “सुनो सूर्य देवता, आज यह फैसला होकर ही रहेगा कि तुम ताकतवर हो या फिर मैं।
अब मेरी बात ध्यान से सुनो। तुम उस विशाल पेड़ के नीचे खड़ा हुआ इंसान देख रहे हो ना। बस आज वही इंसान तय करेगा कि कौन किससे ताकतवर है। अगर उस आदमी ने तुम्हारे चलते अपना गर्मी का कोट खोल लिया तो तुम्हारी जीत पक्की। लेकिन अगर उस आदमी ने मेरे चलते अपना कोट खोला तो समझो मेरी जीत पक्की।” सूरज ने उसकी बात मान ली।
हवा की तरकीब के अनुसार हवा ने सोचा कि आज मैं अपनी पूरी ताकत दिखाऊंगा और इस इंसान को हारने के लिए मजबूर कर दूँगा। फिर हवा पहले तो धीमी गति से उस इंसान से टकराया। फिर बाद में हवा ने उस आदमी को अपना रौद्र रूप दिखाया। इस बार हवा बहुत तेजी से बही। हवा की गति इतनी ज्यादा तेज थी कि उस आदमी को ठंड लगने लगी।
आखिरकार उसने अपना कोट एक पल के लिए भी अपने शरीर से नहीं उतारा। हवा ने अंतिम बार पासा फेंकने की कोशिश की लेकिन वह विफल रही। अब सूरज की बारी थी। सूरज ने पहले तो अपनी किरणें बहुत धीमी फेंकी। धीमी किरणों के चलते उस आदमी को जो ठंड लग रही थी वह अब हल्की धूप के चलते खत्म हो गई थी।
दूसरी बार अब धूप ने अपने तेवर दिखाए। इस बार धूप बहुत तेज निकल आई थी। तेज धूप के चलते उस आदमी की ठंड खत्म होने गई थी। आखिरकार तेज धूप के चलते उस आदमी को अपना कोट उतारना ही पड़ा। यह देखकर हवा को बहुत बुरा लगा। हवा को आज खुद पर शर्म भी महसूस हो रही थी।
इस कहानी से सीख- इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने जीवन में कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए। घमंड करने वाले लोगों की हमेशा हार होती है।
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