नैतिक कहानी-8 सोने का अंडा

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Ekta Ranga

बहुत समय पहले की बात है जब एक बहुत सुंदर गाँव हुआ करता था। उस गाँव में अनेकों लोग रहा करते थे। उन्हीं लोगों में से एक मोहन भी उसी गाँव में रहता था। मोहन के जीवन में सुख से अधिक दुख थे। ऐसा इसलिए था क्योंकि मोहन के माता-पिता का उस समय निधन हो गया था जब वह खुद छोटा सा था।

इतनी छोटी उम्र में जिम्मेदारियों को संभालना बहुत मुश्किल था। लेकिन फिर भी उसने बहुत ही शानदार तरीके से अपने आप को संभाल। और घर की जिम्मेदारियों को भी संभाला। वह किसी भी काम से हारता नहीं था। इतनी छोटी उम्र में खुद को संभालना कोई आसान बात नहीं होती है।

जब वह छोटा था तो उसके पड़ोसी ने उसको पाला था। थोड़ा सा बड़ा होते ही वह खुद कमाने लगा और अपना पेट पालने लगा। वह मुर्गी पालता था और उनके अंडों को बाजार जाकर बेच देता था। अंडों को बेचने के लिए उसे पैसे भी मिलते थे।

मोहन के ही घर के पास बबलू नाम का एक और लड़का भी रहता था। वह मोहन से बहुत जलता था। वह सोचता था कि मोहन के पास माँ-बाप ना होते हुए भी मोहन बहुत खुश कैसे है? वह हर समय मोहन से प्रतिस्पर्धा करने की सोचता रहता। जब वह देखता कि मोहन अंडों को बेचकर कमाई कर रहा है तो वह उससे ईर्ष्या करता। उसे खुद के जीवन से संतुष्टि नहीं थी। बबलू की मोहन के प्रति ईर्ष्या बढ़ती ही जा रही थी।

एक दिन यूं हुआ कि मोहन किसी काम से चलते थोड़े समय के लिए बाहर गया हुआ था। मोहन की मुर्गी उस समय घर पर अकेली थी। यह बात बबलू को भी पता चली। बबलू के मन में खोट आ गई। उसने सोचा कि क्यों ना आज मोहन की मुर्गी को बेचकर मोटी कमाई की जाए।

उसने मौके का फायदा उठाया। वह झट से मोहन के घर घुसा और फुर्ती से मुर्गी को उठाकर भाग निकला। वह मुर्गी को लेकर मुर्गीपालन फार्म गया और उसे वहां पर बेच दिया। मोहन की मुर्गी को बेचने के लिए बबलू को अच्छे पैसे भी मिले।

थोड़े समय बाद मोहन अपना काम खत्म करके घर लौटा। घर आने के बाद जब उसने अपनी नज़रे इधर-उधर घुमाई तो उसने पाया कि उसकी मुर्गी वहां थी ही नहीं। वह अपनी मुर्गी को ना देखकर व्याकुल हो उठा। उसे लगा कि कहीं किसी जानवर ने उसकी मुर्गी को मार तो नहीं दिया है।

वह घर से बाहर निकलकर अपनी मुर्गी को इधर-उधर ढूंढने लगा। कि तभी एक बच्चा उसके पास आया और बोला, “भैया आपकी मुर्गी को बबलू भैया उठाकर ले गए और किसी दुकान पर बेच आए। यह मेरी आंखों देखी घटना है।” अब मोहन ने आव देखा ना ताव और पहुंच गया बबलू के घर। वह बबलू पर बहुत तेज चिल्लाया।

बबलू ने कहा कि उसने उसकी मुर्गी नहीं चुराई। इस बात पर मोहन ने कहा, “देखो बबलू या तो तुम साफ साफ बता दो कि मुर्गी कहां है। अगर तुमनें नहीं बताया तो फिर मैं नगर-व्यवस्थापक के पास चला जाउंगा और तुम्हारी शिकायत कर दूंगा।” यह कहकर वह वहां से चला गया।

बबलू को बहुत डर लगा। उसने सोचा कि अगर मोहन नगर-व्यवस्थापक के पास चला गया तो फिर तो वह बर्बाद हो जाएगा। अब उसे कुछ और नहीं सूझा। वह तुरंत ही अपने घर से बाहर निकला और एक ऐसी मुर्गी ढूंढने लगा जो बिल्कुल मोहन की मुर्गी की तरह दिखती हो। आखिरकार उसे ऐसी मुर्गी दिख ही गई।

अब वह आधी रात को उस मुर्गी को मोहन के घर छोड़ गया। जब सुबह मोहन ने मुर्गी को अपने दरवाजे पर मुर्गी को खेलते देखा तब जाकर उसके चैन में चैन आया। मोहन को इस बात की भनक तक नहीं लगी कि जिस मुर्गी को वह अपनी मुर्गी समझ रहा था वह उसकी मुर्गी थी ही नहीं।

एक दिन भरी दोपहर के समय मोहन के घर पर किसी ने दस्तक दी। दरअसल मोहन के घर घायल अवस्था में एक साधु आया था। मोहन ने जब साधु को ऐसी घायल अवस्था में देखा तो मोहन घबरा गया। मोहन ने साधु को अपने घर में शरण दी। मोहन ने पूरे एक हफ्ते तक साधु की सेवा पूरे तन मन से की।

थोड़े समय बाद में साधु पूरी तरह से ठीक हो गया। वह साधु मोहन से अत्यंत ही खुश था। अब जब साधु पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गया था तो ऐसे में साधु ने मोहन से कहा कि वह अब जाना चाहता है। मोहन ने उसे नहीं रोका। अब जाने से पहले उस साधु के पास देने के लिए कुछ भी नहीं था। उसने मोहन को तरक्की का वरदान दिया और मोहन की बत्तख के सिर पर हाथ फ़ेर दिया। मोहन अब बहुत खुश था।

थोड़े दिन बाद मोहन ने देखा कि उसकी मुर्गी ने अंडा तो दिया था पर वह अंडा आम दिनों से थोड़ा अलग था। उसने जब अंडे को उठाकर देखा तो उसे पता चला कि वह अंडा सोने का था। उसके खुशी की कोई सीमा नहीं रही। अब हर रोज वह सोने का अंडा देती और मोहन उस अंडे को बेच आता था। अंडों को बेचने से मोहन को फायदा होने लगा। और ऐसे करते करते एक दिन वह करोड़पति बन गया।

जब बबलू को इस बात का पता चला तो उसे बहुत बहुत गुस्सा आया। उसे लगा कि वह मुर्गी उसने मोहन को दी थी। तो फिर इसका फल मोहन को क्यों मिला। फिर बबलू को सारी कहानी पता चली कि कैसे उसने मोहन की मुर्गी चुरा ली थी। और जो नई मुर्गी उसने मोहन को दी थी वह भी पहले साधारण अंडा ही देती थी।

लेकिन एक दिन एक घायल साधु आया जिसकी सेवा मोहन ने दिन रात की। जब वह साधु पूर्ण रुप से स्वस्थ हो गया तो उसने मोहन से पूछा कि उसे क्या चाहिए। मोहन के मन में कोई भी तरह का लोभ और लालच नहीं था। इसलिए साधु ने मुर्गी को वरदान दिया जिसकी बदौलत वह मुर्गी सोने का अंडा देने लगी।

इस कहानी से सीख – इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने जीवन में किसी से भी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए। क्योंकि जो ईर्ष्या करता है उसके जीवन में कभी भी सफलता नहीं आती। ईर्ष्या रखने वाला आदमी पहले खुद ही जलता है।

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