तारापुर में तीन भाई रहते थे। कहने को तो वह तीनों भाई थे लेकिन वह तीनों ही खूब लड़ा करते थे। वह तीनों भाई कभी धन की बात को लेकर झगड़ा करते थे तो कभी किसी और बात को लेकर। उन तीनों में बिल्कुल भी एकता नहीं थी। झगड़ा करना उनके दिनचर्या में शामिल हो गया था।
उन तीनों भाइयों की एक बूढ़ी माँ भी थी जो उन तीनों से बहुत परेशान रहती थी। वह सोचती थी कि उसी को ही ऐसे बेटे क्यों मिले है। लेकिन फिर वह यह सोचकर शांत हो जाती कि जो आपको कर्मों में भोगने को मिल जाते हैं वह आपको भोगने ही पड़ते हैं। अपने बेटों के आपस में मनमुटाव के चलते उनकी माँ बहुत बीमार रहने लगी थी।
उसका शरीर दिन-ब-दिन कमजोर पड़ने लगा था। उसे अब यह डर सताने लगा था कि वह कभी भी दुनिया छोड़कर जा सकती है। उसे लगता था कि वह यह दुनिया छोड़कर चली जाएगी और उसके बेटे यूं ही झगड़ते रहेंगे। इसलिए उसने सोचा कि क्यों ना उसके बेटों के बीच संपति का बंटवारा कर दिया जाए।
एक दिन उसने अपने तीनों बेटों को अपने पास बुलाया। अपने तीनों बेटों को अपने पास बुलाकर उसने कहा, “मैंने तुम सभी को कोई जरूरी काम के चलते अपने पास बुलाया है।” बेटों ने पूछा, “क्या जरूरी काम है, माँ।” माँ बोली, “देखो बेटा मैं अब बूढ़ी हो चली हूं। मेरे जीवन का अब कोई भरोसा नहीं है। इसलिए मैं चाहती हूं कि तुम सभी मेरे जीवित रहते हुए साथ में मिलकर रहो। मैं तुम तीनों को साथ में रहते हुए देखना चाहती हूं।
“माँ की इस बात पर सबसे बड़ा बेटा बोला, “माँ, मैं यह अच्छे से जानता हूं कि यह तुम्हारी हार्दिक इच्छा है कि हम तीनों साथ मिलकर रहे। पर माँ शायद ऐसा हो नहीं सकता। हम तीनों के सोच और विचार एक दूसरे से अलग है। ऐसे में अगर हम एक ही छत के नीचे मिलकर रहने लगे तो फिर झगड़ा तय है।” माँ बोली, “तुम लोगों की सोच ही ऐसी हो गई है तो इसमें किसी का क्या कसूर। लोग पहले के ज़माने में भी साथ मिलकर रहते थे।
लेकिन ना जाने क्यों तुम लोग साथ मिलकर नहीं रहना चाहते हो।” इसी बात पर दूसरे बेटे ने कहा, “तुम एकदम सही कह रही हो, माँ। लेकिन तुम समझती क्यों नहीं हो कि बड़े भैया जो कह रहे हैं वह एकदम सही है। तुम्हारी इच्छा है कि हम साथ मिलकर रहे। पर असल में ऐसा हो नहीं सकता है। हम ऐसा नहीं कह रहे हैं कि हम तुम्हारी बात नहीं मानेंगे। हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे।” तीसरा बेटा बहुत ज्यादा समझदार था।
इसी बात पर वह अपने विचार रखते हुए बोला, “माँ, मैं तुम्हारी बात से बिल्कुल सहमत हूँ। मैं भी साथ मिलकर रहना चाहता हूं। लेकिन क्या करूं मेरे दोनों बड़े भाई जब लड़ाई की बात छेड़ देते हैं तो मुझे भी बहुत गुस्सा आता है। इसी कारण से इनके साथ रहने की बात हमेशा ठंडी पड़ जाती है।” माँ उन तीनों की बात सुनकर बहुत हैरान थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे। लेकिन सामाजिक रीति के अनुसार उसने अपनी जायदाद का हिस्सा अपने तीनों बेटों के नाम कर दिया।
अब कई दिन गुजर गए थे। तीनों भाई अभी भी साथ नहीं रह रहे थे। तीनों भाइयों की माँ अब बहुत ज्यादा बीमार रहने लगी थी। थोड़े दिनों बाद में वह इस दुनिया को छोड़कर चली गई। अब तीनों को यह लगा कि उनकी माँ इस दुनिया को छोड़कर चली गई और उन्होंने उसकी एक भी बात नहीं सुनी। अब माँ की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने सोचा कि क्यों ना तीनों भाई माँ के द्वारा दी गई जमीन पर तीन घर पास में बनाकर साथ रहे। तीनों इस बात से सहमत हो गए।
अब पहले भाई ने कहा कि वह अपना घर बांस से बनाएगा। दूसरे ने कहा कि वह अपना घर लकड़ी से बनाएगा। तीसरे भाई ने कहा कि वह अपना घर पत्थर से तैयार करेगा। तीनों भाई अपनी अपनी बात से सहमत हो गए। पहले वाले भाई ने बांस से घर तैयार करवाया और बचे हुए पैसों से वह घर का दूसरा सामान ले आया।
दूसरे भाई ने भी अपना लकड़ी का घर तैयार करवा लिया। और बचे हुए पैसों से वह घर के लिए सामान ले आया। और तीसरे भाई ने अपने बचे पैसों से पत्थर मंगवाए और पत्थर से अपना घर तैयार करवा लिया। जो सामान उसको घर के हिसाब से चाहिए थे वह उसने खेतीबाड़ी करके मंगवा लिए। फिर एक दिन ऐसा तूफान आया कि बहुत सी चीजें उससे नष्ट हो गई। दो बड़े भाइयों का घर तूफान के चलते तबाह हो गया।
लेकिन छोटे भाई के घर को बिल्कुल भी नुकसान नहीं पहुंचा। छोटे भाई ने अपने दोनों भाइयों से कहा, “भैया, शायद माँ यही चाहती थी कि हम सभी साथ मिलकर रहें। तो आज से हम तीनों इसी पत्थर के घर में साथ साथ रहेंगे।” आखिरकार उनकी माँ का सपना पूरा हो गया था।
इस कहानी से सीख- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी अपने से बड़ों की बात को नहीं टालना चाहिए। हमारे बड़ों को दुनिया की अच्छी समझ होती है। इसलिए हमेशा बड़ों के कहे काम करना चाहिए।
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