प्रेरणादायक कहानियां (Motivational stories in Hindi)

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Ekta Ranga
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कहानियाँ हमेशा ही मनोरंजक होती है। इनको पढ़कर दिल और दिमाग को मानो सुकून सा मिलता है। कहानियां हम सभी को समाज का आईना दिखाती है। कहानियां सदियों से चली आ रही सुंदर परंपरा है। कहानियां कई तरह की होती है जैसे कि पौराणिक कहानियां, साहसिक कहानियां, सच्ची घटनाओं पर आधारित कहानियां और प्रेरणादायक कहानियां आदि। प्रेरणादायक कहानियां अपने आप में एकदम अलग होती हैं। ऐसी कहानियां पढ़ने से हमें जीवन में प्रेरणा मिलती है। आज के भागदौड़ भरे जीवन में हमें हरपल प्रेरणा की जरूरत होती है।

प्रेरणादायक कहानियां (Motivational stories in Hindi)

आजकल का समय बड़ा ही भागदौड़ भरा है। आज चारों तरफ प्रतिस्पर्धा की होड़ मची हुई है। हर कोई एक दूसरे से बड़ा बनना चाहता है। यही एक बड़ी वजह है कि आज लोगों को अवसाद ने घेरना चालू कर दिया है। आज के समय में चिंता और अवसाद इंसान के बड़े दुश्मन बन चले हैं। इंसान सोचता है सही मार्ग पर चलने की पर पर फंस जाता है अवसाद के भंवर में। आज लोग अपना आत्मविश्वास खोने लगे हैं। उनको सही और गलत की पहचान नहीं रह गई है। आज के समय में यह बहुत जरूरी हो गया है कि इंसान अपने आप को चिंता के भंवर से बाहर निकालकर सकारात्मकता की ओर जाए। वैसे भी इंसान बहुत ज्यादा समझदार प्राणी है। इंसान चीजों को बहुत जल्दी समझ लेता है। इसलिए उसे चाहिए कि वह हर पल कुछ प्रेरक पढ़े। प्रेरक किस्से कहानियों से एक इंसान को जीने का ज़ज्बा मिलता है।

प्रेरणा क्या होती है?

“प्रेरणा शब्द को हम बचपन से सुनते आए हैं। जीवन में हम सभी को प्रेरणा की अति आवश्यकता होती है। बिना प्रेरणा के हम अपने जीवन में कुछ भी हासिल नहीं कर सकते हैं। बिना प्रेरणा (motivation) के हम जीवन में कुछ भी हासिल नहीं कर सकते हैं। इंसान को इस भागदौड़ भरी जिंदगी में प्रेरित रहना बहुत ज्यादा जरूरी है। आप प्रेरणा के साथ अपने जीवन के हर लक्ष्यों को पूरा कर सकते हैं।

प्रेरणा से हमें अपने लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलती है। बिना प्रेरणा के हमारा जीवन एक सूखे पेड़ के समान है। हमनें अपने जीवन में कितने ही महान लोगों के बारे में पढ़ा और सुना है। महान लोग आज ऐसे ही महान नहीं बने हैं। उन्होंने महान बनने के लिए अपना दिन रात एक किया तब जाकर उनको सफलता हाथ लगी। उन सभी की सफलता का राज प्रेरणा ही है। इस दुनिया में आज जो कोई भी सफल है उन सभी का एक ही मकसद होता है वह है सफलता प्राप्त करना।

प्रेरणा का महत्व क्या होता है?

हमारे जीवन में प्रेरणा का बहुत ज्यादा महत्व होता है। बिना प्रेरणा के हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते हैं। चलिए मैं आपको इसका एक अच्छा उदाहरण देती हूं। एक बच्चा जब छोटा होता है तो उसे कोई भी चीज़ की समझ नहीं होती है। फिर जब वह थोड़ा बड़ा होता है और अपने से बड़ों को चलते फिरते देखता है तो वह सोचता है कि मैं ऐसा क्यों नहीं कर सकता।

वह बच्चा भी बोलने की कोशिश करता है। चलने की भी कोशिश करता है। चाहे परिणाम कुछ भी हो लेकिन वह हारता नहीं है। क्या आपको पता है कि वह ऐसा क्यों करता है? हमें लगता है कि बच्चा जिद करके सब काम सीख रहा है। बल्कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। वह बच्चे की जिद नहीं होती बल्कि वह तो उसके मन के अंदर जगी वह प्रेरणा होती है। यही प्रेरणा उस बच्चे को कई चीजें सीखने के लिए उत्सुक रखती है।

(1) मेहनत का फल

बबलू और चिंटू बहुत ही अच्छे दोस्त थे। उनकी दोस्ती बहुत घनिष्ठ थी। वह कभी भी किसी से बुरा व्यवहार नहीं करते थे। लोग उनकी दोस्ती को देखकर बहुत ज्यादा जलते थे। बहुत से ऐसे लोग भी थे जो उनकी दोस्ती में दरार लाना चाहते थे। लेकिन वह दोनों ही किसी की भी बातों में नहीं आए और उनकी दोस्ती और प्रगाढ़ होती चली गई। दोनों का स्वभाव भी लगभग एक जैसा था। लेकिन एक ही बात की कमी थी बबलू में। चिंटू बहुत ही परिश्रमी किस्म का इंसान था। लेकिन बबलू उससे बिल्कुल अलग था। बबलू परिश्रम की बजाए मौज मस्ती में ज्यादा दिलचस्पी रखता था। क्योंकि बबलू के माता-पिता जल्दी गुजर गए थे इसलिए चिंटू के पिता ने उसे भी अपने घर पर दूसरे बेटे के समान ही रखा। बबलू और चिंटू को जेब खर्च के हिसाब से एक समान पैसे मिलते थे। लेकिन चिंटू उन्हीं पैसों का सही इस्तेमाल करता था और बबलू उन पूरे पैसों को मौज मस्ती में उड़ा देता था। कुछ सालों में चिंटू ने थोड़े थोड़े करके खूब सारे पैसे इक्कठे कर लिए थे। वही बबलू के पास अपने हिस्से का कुछ भी धन नहीं बचा था। उसने सारे पैसों को फिजूलखर्ची में उड़ा दिए थे।

अब चिंटू के पिता भी शरीर से बूढ़े हो चले थे। एक दिन उन्होंने चिंटू और बबलू को अपने पास बुलाया और कहा, “बेटा, अब मेरा शरीर बहुत कमजोर होता जा रहा है। डॉक्टर साहब ने कहा कि यह खतरनाक बीमारी बहुत दुर्लभ है। क्या पता मैं कल को इस दुनिया को अलविदा भी कह दूँ।” क्योंकि चिंटू की तरह ही बबलू भी उनसे उतना ही प्यार करता था इसलिए वह उनके जाने के बारे में सोच तक नहीं सकता था। बबलू बहुत ज्यादा भावुक हो गया और बोला, “बाबा, आप हमें ऐसे छोड़कर नहीं जा सकते हैं। आप ऐसा क्यों बोल रहे हैं। आप कहीं नहीं जाएंगे हमें छोड़कर। आप मेरे को बताओ कि इस बीमारी का इलाज क्या है?” चिंटू के पिता बोले, “इस बीमारी का तो कोई इलाज नहीं है। लेकिन एक भले मनुष्य ने मुझे कहा कि अगर अपने बगीचे में पपीते का पेड़ लगाया जाए तो हो सकता है कि यह बीमारी खत्म हो सकती है।” चिंटू ने पूछा, “पिता जी क्या यह एक प्रकार का टोटका है? अगर है तो मेरे से तो यह काम नहीं होगा। यह पौधे लगाने वाला काम तो बहुत ही बोरियत भरा होता है।” इस बात पर बबलू गुस्सा करते हुए बोला, “तुम बाबा के बारे में ऐसी बात कर रहे हो। यह बाबा ही थे जिन्होंने तुम्हें खूब पढ़ा लिखाकर बड़ा किया। खैर, अगर तुम पपीते का पेड़ नहीं लगाओगे तो मैं लगा दूंगा।”

अगले दिन वह पपीते के बीज लाया और बीज जमीन में बो दिए। अब बबलू उस पौधे को रोज पानी देता और उसकी उचित देखभाल करता। अब बबलू की मेहनत रंग दिखाने लग गई। 7-8 महीनों में उस पौधे में खूब सारे पपीते के फल उग आए। उसको बहुत खुशी महसूस हुई। फिर थोड़े दिनों बाद जब पपीते अधिक उगने लगे तो वह पपीते बाजार में बेच आता था। बेचने से जो पैसे उसको मिलते थे वह उनको बचाकर अलग से रख देता था। ऐसा करते हुए करीब एक साल हो गया था। एक दिन बबलू बाबा के पास गया और बोला, “बाबा, कहना पड़ेगा कि आपकी सेहत में पहले से बहुत सुधार हुआ है। पपीते वाला टोटका बहुत कारगर रहा।” इस बात पर चिंटू के पिता खुश होते हुए बोले कि, “मेरे सेहत के सुधार का राज वह पपीते नहीं बल्कि तुम्हारी मेहनत है। पहले तुम्हें मेहनत का कोई अंदाजा ही नहीं था। लेकिन आज तुमने मेहनत करके जो फल उगाए और उन्हीं से जो पैसे कमाए वह बहुत गर्व की बात है। दरअसल मैंने और चिंटू ने तुम्हारी परीक्षा लेने की सोची थी। और तुम इस परीक्षा में पास भी हो गए।

(2) बेटा और बेटी की कहानी

विकास आज के दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। उसकी पत्नी आज उसके बच्चे को जन्म जो देने वाली थी। डॉक्टर ने बोला था कि माँ की हालत बहुत खराब है इसलिए ऑपरेशन करना ही पड़ेगा। हालांकि विकास और उसकी पत्नी सीमा इस ऑपरेशन के बिल्कुल खिलाफ थे। लेकिन सीमा की सेहत के चलते ऑपरेशन के लिए मजबूर होना पड़ा। घड़ी की टिक टिक के साथ ही विकास के दिमाग की भी घड़ी दौड़ रही थी। वह सोच रहा था कि अब अगले पल क्या होने वाला है। विकास की नज़रे लगातार ऑपरेशन थिएटर के सामने टिकी हुई थी। दस मिनट बाद ही डॉक्टर्स की टीम थिएटर से निकली। कुछ समय पहले जो डॉक्टर्स के चेहरे पर चिंता की लकीरें देखी जा सकती थी वह अब काफी हद तक कम हो चुकी थी। विकास को समझ आ चुका था कि अब खतरा टल चुका है। उसने डॉक्टर से जल्दी से पूछा कि उसकी पत्नी कैसी है। डॉक्टर ने जवाब दिया कि उसकी पत्नी बिल्कुल सही हालत में है। पर एक अच्छी खबर है और एक बुरी खबर। विकास का शरीर जैसे ठंडा पड़ गया। डॉक्टर ने पूछा कि वह पहले बुरी खबर सुनना चाहता है कि अच्छी खबर। विकास ने कहा कि वह अच्छी खबर पहले सुनेगा। इस बात पर डॉक्टर बोला कि अच्छी खबर यह है कि आपको बेटी हुई है। और बुरी खबर यह है कि आपका बेटा अब इस दुनिया में नहीं रहा। विकास की तो मानो जैसे दुनिया ही खत्म हो गई थी। कुछ देर तक तो मानो वह अपना सिर पकड़कर बैठा रहा। काफी देर बाद उसने हिम्मत जुटाई और अपने मरे हुए बेटे को देखा। उसे देखते ही वह फूट-फूट कर रोने लगा। बेटे के दुख में उसे पता ही नहीं चला कि पास में ही उसकी बेटी भी रो रही थी। रात को उसके मन में एक पाप जागा।

रात को सब गहरी नींद में सो रहे थे। उसने अपनी बेटी को गोद में उठाया। बेटी को अपनी बांहों में लेकर वह कई देर तक उसे देखता रहा। फिर मन ही मन सोचा कि बेटी की जगह कहीं और ही थी। विकास अपनी बेटी को लेकर हॉस्पिटल से निकल गया। रात बहुत गहरी थी इसलिए किसी ने भी उसे नहीं देखा। चलते चलते वह एक अनाथ आश्रम के पास रुक गया। फिर तो उसने एक पल की भी देरी नहीं की। इससे पहले उसे कोई देखता उसने फुर्ती से अपनी बेटी को उस आश्रम की सीढ़ियों पर सुला दिया। कड़ाके की ठंड पड़ रही थी उस समय। पर शायद विकास का दिल नहीं पसीजा। वह तो इतनी भरी ठंड में ही अपनी बेटी को आश्रम छोड़ आया। उसकी बेटी रोती गई लेकिन उसने एक बार भी पलटकर नहीं देखा।

काफी समय हो चला था। अब विकास और उसकी पत्नी ने बिना बच्चों के रहना सीख लिया था। विकास ने अपनी पत्नी को यही बता रखा था कि उनके दो बच्चे हुए थे पर वह दोनों ही पैदा होते ही मर गए। विकास की पत्नी सीमा ने अपना पूरा जीवन इसी भ्रम में काट लिया कि उसके बच्चे मर चले है। धीरे-धीरे सीमा कमजोर होती चली गई। और एक दिन सीमा ने हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह दिया। अब विकास अकेला हो चला था। अब उसको सूनापन बहुत ज्यादा चुभने लगा था। लेकिन अब वो करता तो भी क्या करता। उसे ऐसा जीवन स्वीकार करना पड़ा।

अब समय बहुत आगे निकल चुका था। अब विकास भी बूढ़ा हो चला था। इस बुढ़ापे के चलते उसको अपने जीवन में बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अब उसके जीवन का मकसद क्या है। शुगर और बीपी ने उसे परेशान कर रखा था। कहते हैं कि बुढ़ापे में अगर आपके साथ संतान के रूप में कोई सहारा ना हो तो जीवन व्यर्थ हो जाता है। यही आज विकास के साथ हो रहा था। एक दिन वह घर के कोई जरूरी समान लेने के लिए निकला हुआ था। जैसे ही वह थोड़ी सी दूर चला कि उसे मानो चक्कर आ गया। जिस सड़क पर वह चल रहा था उसी सड़क पर एक बड़ी सी ट्रक भी आई। वह ट्रक उसे कुचलने को ही थी कि तभी किसी ने उसका हाथ खींचकर उसे पीछे ले लिया। उसे मालूम नहीं चला कि उसे किसने बचाया।

आज चार दिन के उपचार के बाद जब उसने अपनी आंखें खोली तो पाया कि वह किसी के घर में था। उसने देखा कि एक सुंदर और समझदार लड़की उसके पलंग के पास बैठी हुई थी। उस लड़की का चेहरा विकास को अपना सा लगा। वह पेशे से डॉक्टर थी। उसने विकास की तबीयत पूछी। विकास ने कहा कि वह अब सही महसूस कर रहा है। उस लड़की के चेहरे पर अचानक गुस्से के भाव आ गए। उसने कहा कि, “आजकल के बच्चे कैसे बुरे हो चले हैं। उन्हें अपने माता-पिता की भी नहीं पड़ी है। एक फोन तक नहीं आया है आपके घर से। किसी को अपने माँ-बाप होते हुए भी उनकी बिल्कुल भी कद्र नहीं है। और कोई हमारे जैसे भी है जिनको अपने माता-पिता तो चाहिए पर यह तक नहीं पता कि माता-पिता कौन हैं।” विकास ने पूछा, “अगर तुम्हारे माता-पिता नहीं है तो तुम्हें पाल पोसकर किसने बड़ा किया?” सीमा बोली, “एक भले मजदूर थे। वह कहते हैं कि तुझे तो तेरे घरवालों ने भरी सर्दी वाली रात में एक अनाथ आश्रम के सामने छोड़ दिया था। यह तो भला था कि मैं बच गई। बाबा मेरे को यह भी बोले कि उन्होंने किसी आदमी को देखा था जिसने मुझे अनाथ आश्रम की सीढ़ियों पर छोड़ दिया था। मैं हमेशा एक ही बात सोचती हूं कि वह आदमी जो मुझे छोड़कर गया था वह कभी भी सुखी ना रहे।” अब विकास का चेहरा एकदम से उतर गया। उसको खुद पर इतनी भयंकर शर्म आ रही थी कि वह चुल्लू भर पानी में डूब मरे।

(3) गलतफहमी

दीक्षा बहुत ही समझदार और सुंदर लड़की थी। वह हर काम को बड़ी ही निपुणता के साथ खत्म करती थी। उसके जीवन में सब कुछ था। लेकिन एक बात को लेकर वह बहुत ज्यादा चिंता में रहती थी। उसे हर समय अपनी सुंदरता को लेकर असुरक्षा की भावना महसूस होती थी। आज हमेशा की ही तरह वह कॉलेज जाने को कतरा रही थी। उसे जाने का बिल्कुल भी मन नहीं हो रहा था। लेकिन शायद कॉलेज जाने की बड़ी मजबूरी थी। उसे पढ़ लिखकर बड़ा जो बनना था। लेकिन फिर भी वह घूरती आंखें उसे बहुत ही डराया करती थी। हर जगह पहुंच जाती थी वह घूरती आंखें। आज भी हमेशा की ही तरह उसने बड़ों के पाँव छुए और मंदिर में भगवान के दर्शन किए। लेकिन आज कॉलेज के लिए रवाना होने से पहले दीक्षा की मम्मी ने पूछा कि, ‘तुम्हारा कोई दोस्त आया था कल। यह चॉकलेट का बॉक्स भी देकर गया। मैं तो तुम्हें बताना ही भूल गई थी।” मम्मी की यह सुनते ही दीक्षा घबरा गई। उसने कहा, “मम्मी मेरे दोस्तों को तो आप अच्छे से जानती हो। फिर यह कौन सा दोस्त आ गया जिसे आप जानते ही नहीं।” उसकी आवाज में कंपन थी। वह फिर से बोली, “मम्मी, मुझे आदमियों की इन हरकतों से बहुत डर लगता है। जब भी कोई आदमी मुझे घूरता है तो मुझे बैचेनी सी होने लगती है। अब लगता है कि कोई नया आदमी मेरा पीछा कर रहा है। पता नहीं कौन है वो।” दीक्षा की मम्मी ने उसे ढांढस बंधाया और बेधड़क होकर कॉलेज जाने के लिए कहा। दीक्षा रवाना तो हो गई पर उसके मन में डर भी था। वह सोचने लगी कि ऐसा कौन सा लड़का है जो उसका पीछा कर रहा है।

हमेशा की तरह वह दिल्ली मेट्रो स्टेशन पहुंची और मेट्रो का इंतजार करने लगी। जैसे ही ट्रेन आई वह उसमें बैठ गई। आज वह सीट पर बैठी तो उसे एक अलग नजारा देखने को मिला। ट्रेन में वह आदमी लगातार उसे घूरा जा रहा था और मुस्कुराए भी जा रहा था। दीक्षा ने उसे कड़वी नजरों से देखा पर जैसे उस आदमी पर कोई असर नहीं हुआ। दीक्षा उसे अनदेखा करने के लिए बाहर की ओर देखने लगी। थोड़ी देर बाद कॉलेज आ गया तो वह ट्रेन से उतर गई। वह आदमी भी दीक्षा के ही पीछे-पीछे आ गया। दीक्षा जब तक कॉलेज में नहीं घुसी तब तक वह उसके पीछे-पीछे रहा। अब मानो यह हर दिन की बात हो गई थी। वह आदमी दीक्षा का हर दिन पीछा किया करता था।

दीक्षा ने ऐसी परिस्थिति का सामना पहले कभी नहीं किया था। वह अब धीरे-धीरे अवसाद में आने लगी थी। उसकी पढ़ाई पर भी बुरा असर पड़ रहा था। धीरे-धीरे उसने कॉलेज भी जाना बंद कर दिया था। उसके मम्मी पापा इस बात से बहुत परेशान हो गए थे। एक दिन तो हद तब हो गई जब वही आदमी दीक्षा के घर तक भी पहुंच गया। उसने दीक्षा के घर की डोर बेल बजाई तो उसकी मम्मी ने गेट खोला। दीक्षा की मम्मी ने उसे आवाज देते हुए बोले कि, “दीक्षा, तुम्हारा दोस्त आया है।” दीक्षा दौड़ी भागी दरवाजे पर चली आई। दरवाजे पर उस आदमी को देखकर वह पसीना पसीना हो गई। एक बार के लिए तो वह डरी लेकिन बाद में उसने हिम्मत जुटाई और आगे बढ़ी। वह गुस्से से उस आदमी की ओर भागी और उस आदमी को जोर से धक्का दे दिया। वह आदमी गिर पड़ा। जोर से गिरने की वजह से उसे चोट आ गई। दीक्षा तेज आवाज में बोली, “बेशर्म, तुम्हें शर्म नहीं आती कि एक महिला को तुम इतना तंग करते हो। तुम्हारे जितना निर्लज्ज इंसान मैंने अपने जीवन में कभी भी नहीं देखा है। मन करता है कि तुम्हें इतना मारूं कि तुम्हारी जान निकल जाए।” पीछे से एक लड़की दौड़ते हुए आई और उसने उस आदमी को गले लगा लिया। वह उस आदमी के सिर पर खरोंच देख कर बोली, “अरे रोहित भैया, मैंने आपको मना किया था ना यह सब करने को। तो फिर क्यों ऐसा किया। आपकी रिया अब मर चुकी है। यह रिया नहीं है। आप क्यों नहीं समझते।”

अब वह लड़की उठी और दीक्षा के पास गई। उसने दीक्षा को कहा, “माना कि जब कोई व्यक्ति किसी महिला का पीछा करता है तो ऐसे में असुरक्षा की भावना आ ही जाती है। पर हर कोई इंसान एक जैसा नहीं होता। अब मैं तुम्हें असली बात बताती हूं। दरअसल 1 साल पहले ही हमारी बहन महिमा का निधन हो गया था। वह एकदम तुम्हारे जैसी दिखती थी। जिस दिन उसका निधन हुआ उस दिन रक्षाबंधन था। रक्षाबंधन के हिसाब से महिमा ने एक बहुत ही सुंदर राखी खरीदी थी। उस दिन रक्षाबंधन था। महिमा हमारे घर राखी बांधने आ ही रही थी कि अचानक उसका एक्सीडेंट हो गया। मेरे भाई ने महिमा की याद में वह राखी अपने पास ही रख ली। जिस दिन इसने तुम्हें देखा इसे लगा कि महिमा वापिस आ गई है। यह हर रोज तुममें महिमा को ढूँढता था। क्योंकि आज रक्षाबंधन है इसलिए इसने जिद की थी कि वो महिमा वाली राखी तुमसे ही बंधवाएगा। आज इसी मकसद से यह यहां आया था। और तुम्हारी गलतफहमी से तुमनें इसे चोट पहुंचा दी।” दीक्षा शर्म के मारे पानी पानी हो गई। उसने अपनी नज़रे उठाकर रोहित को देखा। रोहित की बंद मुट्ठी में वही राखी थी जो महिमा उसे बांधने वाली थी।

(4) वृद्धाश्रम

शिखा की स्कूल बस वृद्धाश्रम की ओर लगातार बढ़ रही थी । शिखा जो की कक्षा दसवीं की छात्रा थी, आज वह वृद्धाश्रम को अपनी आंखो से देखने के लिए बड़ी उत्सुक थी। वह सोच रही थी कि आखिर क्यों कोई अपनों को लाचार और कमजोर समझकर छोड़ देता है। माँ और बाप कितना कुछ करते हैं अपने बच्चों के लिए, लेकिन बदले में उन्हें क्या मिलता है? सिर्फ अपमान और वृद्धाश्रम ! यह सोचते-सोचते शिखा को ऊब-सी होने लगी। एक लंबी सांस लेते हुए, वह बाहर का सुन्दर नजारा देखने लगी लेकिन दो टीचरों की बातों ने शिखा का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।

उन दो टीचरों की बात कुछ ऐसी चल रहा थी ‘यह देखो इस अखबार मे क्या लेख छपा है!’ पहली टीचर ने बोला । तब दूसरी टीचर ने पुछा कि, ‘ऐसा क्या लेख छपा है इस अखबार मे? पहली टीचर अखबार के लेख को पढ़ते हुए बोली ‘इस लेख में लिखा है कि लोग भले कितना ही पढ़ लिख ले, पर जब तक वह अपना कर्तव्य नही निभाते, वह अशिक्षित ही कहलाते है’। दुसरी टीचर ने कहा ‘मुझे समझ में नहीं आया कि तुम क्या कहना चाहती हो’? पहली टीचर जबाब देते हुए बोली ‘इस लेख का सारांश यह है कि आजकल के नौजवान भले ही डॉक्टर या इंजीनियर बन जाए लेकिन अगर यह ही लोग अगर अपने माँ-बाप को वृद्धाश्रम में बेसहारा छोड़ दे तो वह दुनिया के सबसे असभ्य और अशिक्षित माने जाऐंगे’। उन दो टीचरों की बातों को अपने दिमाग में लिए शिखा वृद्धाश्रम में दाखिल हो गई। वहां पर ऐसा क्या हुआ कि एक बूढ़ी कमजोर महिला को देख शिखा फूट-फूट कर रोने लगी। जब वहां खड़े लोगों और टीचरों ने इसका कारण पुछा तो पता चला कि यह बूढ़ी महिला कोई और नहीं उसकी खुद की दादी ही है। जब वह पाँचवीं कक्षा में थी तो उसे यहीं बताया गया था कि उसकी दादी चार धाम करने के लिए गई है और वह कभी भी नहीं लौटेगी। शिखा को क्या पता था कि उसकी दादी चार धाम यात्रा की बजाय वृद्धाश्रम में थी। उन दो टीचरों की बात का साक्षात प्रमाण उसे वृद्धाश्रम में आकर मिल गया था। किसी ने उस लेख में एकदम सही लिखा था; कि कोई कितना भी बड़ा क्यों नहीं बन जाए लेकिन अपने माँ-बाप को बाहर का रास्ता दिखाने वाले हमेशा के लिए अशिक्षित ही कहलाए जाएँगे।

(5) मैं भाग्यशाली हूं

खिड़की के पास दुखी खड़ा विभोर अपने पडोसी मित्र रोहित को रिश्तेदारों के साथ खुशियाँ मनाते हुए देख रहा था। रोहित खुशियाँ मनाएं भी क्यों नहीं? आखिर उसने आईएएस परीक्षा सर्वोत्तम अंकों से पास जो की थी। विभोर अब हीन भावना और निराशा में डूब गया था। वह अपने मन को कोसते हुए बोला- ‘क्यों?? क्यों मेरे साथ ही हमेशा ऐसा होता है? जब भी मैंने स्कूल और कॉलेज में टॉप रहने की कोशिश की तो बदले में मुझे हमेशा निराशा ही हाथ लगी। जब नौकरी की बात आई, तो नौकरी मिलने की बजाय बेरोजगारी ही हाथ लगी। मेरे और रोहित में रात-दिन का अंतर है। इतने दिन हो गए हैं जगह-जगह नौकरी के लिए चक्कर काट रहा हूं, पर ना जाने किस दिन नौकरी हाथ लगेगी? इस मामले में रोहित बहुत ज्यादा किस्मत वाला है, और मैं ‘बदकिस्मत’ । ‘चने ले लो ! बाबूजी गरम-गरम चने ले लो’ ! एक बच्चे के इस वाक्य ने विभोर का सारा ध्यान उसकी ओर खींच लिया। उस बच्चे की हालत बेहद खराब लग रही थी। बेहद दुबला, फटे पुराने कपड़ों और बेहद दुबला, फटे पुराने कपड़ों और गर्मी भरे इस मौसम में वह चने बेच रहा था। दस मिनट के लंबे इंतजार के बाद भी जब कोई ग्राहक नहीं मिला, तो वह फुटपाथ पर बैठ गया और फफक-फफक कर रोने लगा। इस दृश्य ने विभोर को अंदर से पूरी तरह से हिलाकर रख दिया। बस एक ही शब्द उसके मुंह से निकला ‘मैं बहुत ज्यादा भाग्यशाली हूं’ । यह कहने के तुरंत बाद, उसने अपने पर्स में से 500 का नोट निकाला और मासूम बच्चे की ओर दौड़ पड़ा।

FAQs

Q1. प्रेरणा के दो रूप कौन से होते हैं?

A1. प्रेरणा के दो रूप होते हैं- आंतरिक प्रेरणा और बाहरी प्रेरणा। यह दोनों ही हम सभी के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं।

Q2. प्रेरणा जीवन में क्यों जरूरी है?

A2. प्रेरणा जीवन में बहुत जरूरी चीज होती है। बिना प्रेरणा के हम अपने जीवन में कुछ भी हासिल नहीं कर पाते हैं। प्रेरणा हमें जीने की राह दिखाती है। प्रेरणा के होते हुए हम जीवन में हर तरह की मुश्किलों को पार कर लेते हैं और अपना लक्ष्य पूरा कर लेते हैं।

Q3. प्रेरक कहानियों हमारे लिए क्यों जरूरी होती है?

A3. जीवन में हमारे लिए प्रेरक कहानियों का बहुत ज्यादा महत्व होता है। भागदौड़ भरी जिंदगी में हम बहुत बार निराशा से घिर जाते हैं। ऐसे समय में प्ररेक कहानियां हमें निराशा के भंवर से उबारने में बहुत मदद करती है।

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