एक समय की बात है। एक बड़े से राज्य का एक बहुत शक्तिशाली राजा हुआ करता था। वह अच्छे से शाशन कर रहा था और उसके शासन में सभी बहुत खुश थे। इतना सब कुछ अच्छा होने के बावजूद भी उस राजा का व्यक्तिगत जीवन कुछ खास नहीं था। एक दिन उस राजा ने सोचा कि जब उसकी प्रजा इतनी खुश है तो, फिर वह और उसका परिवार इतना खुश क्यों नहीं है जितना उन सभी को होना चाहिए।
फिर राजा ने सोचा कि क्यों ना जनता की खुशी को प्रजा के बीच जाकर समझा जाए। उस राजा ने अपने मंत्रियों को यह आदेश दिया कि वह आस-पास के गाँवों में जनता की खुशी का राज पता करने जाएंगे। फिर वह मंत्रियों सहित गाँव की ओर निकल पड़े।
जब वह पहले गाँव पहुंचे तो उस राजा का ध्यान एक साधारण सी किसान की झोपड़ी पर गया। उसने देखा कि किसान अपने बच्चों के साथ हंसी खुशी खेल रहा था और उसकी पत्नी भी खुशी खुशी पकवान बनाने में लगी थी। उस परिवार के चेहरे से प्रसन्नता के भाव मानो जैसे टपक टपक कर कर गिर रहे थे।
अब राजा से रहा नहीं गया। और उसने अपने मंत्री से पूछा कि, “मंत्री जी, क्या आप मुझे यह समझाएंगे कि इस किसान और इसके परिवार की खुशी का आखिर असली राज क्या है? मैं यह देख सकता हूँ कि यह परिवार बेहद गरीबी में जी रहा है। लेकिन ऐसा होने के बावजूद भी इनके चेहरे पर एक शिकन तक नहीं है। क्या इनको अधिक धन की कोई अभिलाषा नहीं है? कहना पड़ेगा कि एक तरफ यह गरीब किसान परिवार है जो गरीब होने के बाद भी इतना सुखी है। और एक हमारा भी परिवार है जहां पर दुनिया की हर सुख सुविधा के होने के बाद भी मन पूर्ण रूप से सुखी नहीं है।
इसका क्या कारण है। मंत्री जी आप मेरी इस समस्या का निवारण कीजिए।” मंत्री ने इस बात पर पांच-दस मिनट तक विचार किया उसके बाद उसने अपने झोले से एक पोटली निकाली। उस पोटली में 100 स्वर्ण मुद्राएं थी। मंत्री ने 100 स्वर्ण मुद्राओं में से एक मुद्रा अपने पास रख ली। और निन्यानवे स्वर्ण मुद्राओं की पोटली उसने किसान की झोपड़ी के आगे रख दी। राजा को कुछ समझ में नहीं आया।
उसने अपने मंत्री से पूछा कि, “मंत्री जी आपने अपनी स्वर्ण मुद्राएं किसान की झोपड़ी के आगे क्यों रख दी? और अगर रखी भी तो केवल निन्यानवे स्वर्ण मुद्राएं ही क्यों रखी। आप पूरी की पूरी सौ मुद्राएं ही रख देते। आपको इस काम के लिए किसी ने रोका थोड़े ही था।” मंत्री बोला, “महाराज, आपने मेरे से आपकी समस्या का समाधान पूछा।
अब मैंने कुछ सोच समझ कर ही यह काम किया है। आपने अभी कहा कि यह किसान परिवार इतना खुश क्यों है। अब आप मेरी बात मानकर इसी गाँव में दोबारा दो तीन महीनों बाद में आना। मैं वादा करता हूं कि दो महीने बाद इसी खुश परिवार का आपको नजारा अलग ही देखने को मिलेगा। राजा अपने मंत्री की बात से सहमत हो गया।
अब राजा अपने मंत्रियों सहित जा चुका था। अचानक किसान के बच्चे खेलते हुए बाहर आए तो उनको वह पोटली दिखी जो मंत्री वहां रख गया था। बच्चों ने वह पोटली उठाई और अपने पिताजी को पकड़ा दी। जैसे ही किसान ने देखा कि पोटली में निन्यानवे स्वर्ण मुद्राएं थी, किसान की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। किसान के बच्चे और पत्नी भी बहुत खुश हुई। लेकिन किसान एक बात से दुखी हो गया कि उस पोटली में पूरी सौ स्वर्ण मुद्राएं क्यों नहीं थी।
किसान ने अपनी पत्नी से कहा कि वह इन मुद्राओं को तब तक हाथ नहीं लगाएगा जब तक उसके पास पूरी सौ मुद्राएं ना हो जाए। उस दिन के बाद किसान दिन रात एक एक पाई इकठ्ठी करने में जुट गया। वह किसान जो पहले खुले दिल का था अब वह कंजूस होने लगा था। वह हर दिन मजदूरी से मिले पैसों को बचा कर रख लेता था ताकि वह उन रुपयों से सोने की एक मुद्रा खरीद सके। किसान के बच्चे और पत्नी उससे दुखी रहने लगे थे।
अब पूरे पूरे दो महीने बीत गए थे। राजा को अपने मंत्री का वचन याद था। इसलिए राजा ने अपने मंत्री के साथ दोबारा उस गाँव का रुख किया। इस बार राजा ने देखा कि उस किसान की पत्नी और बच्चे रो रहे थे। वह भूख से तड़प रहे थे। लेकिन कंजूस किसान केवल पैसों को बचाने में लगा था। राजा को यह माजरा समझ में नहीं आया कि आखिर इन दो महीनों में ऐसा क्या हुआ कि एक खुशहाल परिवार का जीवन इतना दुखदायी हो गया।
राजा से रहा नहीं गया और उसने मंत्री से पूछा, “मंत्री जी, यह परिवार मात्र दो महीनों में इतना निराशावादी कैसे हो गया। ऐसा क्या हो गया जिसने इस परिवार की यह हालत कर दी?” मंत्री बोला, “इस बात को समझना बहुत सरल है महाराज। यह तो आपको पता ही है कि मैंने दो महीने पहले निन्यानवे स्वर्ण मुद्राएं किसान के घर के आगे रखी थी। वह किसान ने उठा ली थी।
एक अतिरिक्त मुद्रा कमाने के लिए वह लगातार बचत करता जा रहा है जिसकी वजह से घर का सुख चैन छिन गया है। यहां पर साफ़ दिख रहा है कि जब किसान के पास कमाई के अतिरिक्त कोई प्रकार का धन नहीं था। लेकिन जब से उस किसान ने वह मुद्राएं देखी उसके मन में मैल जमने लगी। यह जीवन की सच्चाई है कि जरूरी नहीं कि आप ज्यादा धन और दौलत से ही सुख प्राप्त करे। सुख की अनुभूति तो आप बहुत थोड़े में भी कर सकते हैं। उस किसान ने निन्यान्वे के फेर में पड़कर अपना जीवन खराब कर लिया।” अब राजा को सारी बात समझ में आ गई थी।
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