बहुत समय पहले एक शक्तिशाली देश का एक बादशाह हुआ करता था। देश की प्रजा बादशाह से बेइंतहा प्यार करती थी। बादशाह न्यायप्रिय भी था। उसके महल में दास दासियों की भरमार थी। उसी बादशाह के मंत्री के बेटे और एक दास के बेटे के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी। बादशाह का जो यह दास था वह भी बेहद ईमानदार था। उस दास की ईमानदारी की वजह से ही बादशाह भी उस दास पर पूरा भरोसा करते थे।
बादशाह को अपने मंत्री और दास के बेटों से भी लगाव था। लेकिन दास के बेटे से थोड़ा अधिक ही लगाव था। यह इसलिए था क्योंकि एक तो कारण यह था कि दास का बेटा छोटा था। और दूसरी वजह यह थी कि बादशाह की खुद की कोई संतान नहीं थी इसलिए वह बच्चों से बहुत प्रेम करते थे। दास का बेटा भी बादशाह के लिए बहुत खास बन गया था। वह दास के बेटे के साथ खेलता था। उसके साथ खूब मस्ती किया करता था।
महल में सब कुछ अच्छा चल रहा था। लेकिन एक बात थी जो मंत्री को बहुत परेशान किया करती थी। दरअसल मंत्री को इस बात से बहुत दुख होता था कि बादशाह उसके बेटे से भी ज्यादा नौकर के बेटे को क्यों पसंद करते हैं। वह जब भी नौकर के बेटे को बादशाह के साथ खेलते देखता तो उसे अपने बेटे के लिए बहुत चिंता होती।
उसे यह लगता कि आखिर नौकर के बेटे में ऐसा क्या था जो बादशाह उसी खूब पसंद करते। मंत्री का बेटे का ओहदा तो नौकर के बेटे से बड़ा था। तो फिर बादशाह उस दास के बेटे पर ही क्यों मेहरबान थे। कभी-कभी तो मंत्री को ऐसा लगता कि हो सकता है कि आने वाले समय में बादशाह दास के बेटे को अपना वारिस घोषित कर दे। यह चिंता उसे सताने लगी थी। वह रात-दिन और सोते-जागते हुए हमेशा यह ही बात सोचता था। इस कारण वह अवसाद में भी रहने लगा था।
मंत्री की ईर्ष्या और द्वेष दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। एक दिन उसने एक बहुत बड़ी साजिश रची। अब उससे ज्यादा बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था। जिस समय का वह कितने ही दिन से इंतजार कर रहा था वह समय अब आ गया था। एक दिन मंत्री ने दास के बेटे को अपने कमरे के बुलाया।
दास का बेटा खुशी खुशी कमरे में आ गया। फिर मंत्री ने कई देर तक तो दास के बेटे का लाड़ प्यार किया। फिर थोड़ी देर बाद उसने बच्चे से कहा, “बेटा, क्या तुम अपने बड़े भाई के लिए अर्थात मेरे बेटे के लिए गोश्त खरीद कर ला दोगे क्या?” बच्चा बोला, “हाँ, चाचा जान मैं तो भैया के लिए कुछ भी कर सकता हूं।
फिर यह गोश्त खरीदकर लाना तो बहुत आसान काम है। मैं दुकान जाकर गोश्त खरीद लूँगा।” मंत्री बोला, “शाबाश बेटा, मुझे तुमसे यह उम्मीद थी। अब एक बात गौर से सुनो। महल से 8 मिनट की दूरी पर ही एक कसाई की दुकान है। तुम्हें उसी कसाई की दुकान जाना है और वहां से गोश्त खरीदना है। तुम्हारे बड़े भैया को उसी दुकान का गोश्त पसंद है। इसलिए तुम उस कसाई की दुकान जाओ और जल्दी से गोश्त ले आओ।
“उस बच्चे ने खुशी खुशी काम के लिए हामी भर दी। फिर मंत्री ने एक रुमाल निकाला। उस रुमाल में मंत्री ने पैसे डाल रखे थे। उसने बच्चे को समझाया कि भुगतान के रूप में तुम यह रुमाल कसाई को पेश कर देना। इसी रुमाल में उस कसाई के लिए रुपयों का बंदोबस्त भी हो रखा है। वह बच्चा बिना कोई आना कानी किए बगैर दुकान के लिए रवाना हो गया।
वह उसी दुकान के आस-पास पहुंचा जिस दुकान के बारे में मंत्री ने उसे बताया था। क्योंकि वहां पर दो और कसाई की दुकानें थी, इसलिए बच्चे को कुछ समझ में नहीं आया कि वह आखिर कौन सी दुकान चढ़े। उसी समय उसकी नज़रे मंत्री के बेटे पर पड़ी जो कि वहां अन्य बच्चों के साथ छुपन छुपाई खेल रहा था।
ऐसे में उस बच्चे की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह दौड़ता हुआ मंत्री के बेटे के पास गया और बोला, “अरे भैया, आप यहां खेल रहे हो क्या। आप खेल लो पर मेरी समस्या का समाधान करो।” मंत्री के बेटे ने कहा, “हाँ, बोलो छोटे तुम क्या पूछना चाहते हो?” बच्चा बोला, “भैया, मुझे चाचा जान ने एक कसाई की दुकान से गोश्त लाने को बोला। अब मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि वह दुकान कौन सी है जिसके बारे में चाचा जान बात कर रहे थे।
यहां पर तीन कसाईखाने हैं। इन तीनों में वह कौन सा है जिसका चाचा जान ने जिक्र किया था।” मंत्री का बेटा बोला, “बस इतनी सी बात है क्या छोटे। मैं उस दुकान को अच्छी तरह से जानता हूँ। मैं खरीद लूँगा गोश्त। तब तक तू इन बच्चों के साथ छुपन छुपाई खेल ले।” बच्चे ने मंत्री के बेटे की बात स्वीकार कर ली। और फिर मंत्री के बेटे ने बच्चे से रूपये वाला रुमाल लिया और दुकान की ओर चल दिया।
दुकान पहुंचकर मंत्री के बेटे ने वह रुमाल कसाई को सौंप दिया और कहा, “चाचा जान आप बढ़िया सा गोश्त तैयार कर दीजिए। मुझे गोश्त घर ले जाना है।” कसाई बोला, “ठीक है तुम बाहर बैठो। मैं गोश्त की तैयारी करता हूं। फिर अंदर जाकर कसाई ने वह रूमाल खोला।
रुमाल पर मंत्री ने लिखा था कि जो बच्चा तुमसे गोश्त लेने आए उसे कढ़ाई में उतार कर मार देना। कसाई ने ठीक वैसा ही किया। उसने मंत्री के बेटे को अंदर बुलाया और छल कपट से उसे मार डाला। थोड़ी ही देर बाद मंत्री के पास खबर आई कि एक कसाई ने उसके बेटे को मार डाला है। मंत्री ने अपना सिर पीट लिया और फफक फफक कर रोने लगा। उसने आखिरकार स्वीकार कर लिया कि “जो कुंआ खोदता है वही गिरता है।”
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