एक बहुत बड़ा गाँव था। उस गाँव के लोग आपस में मिल जल कर रहते थे। सभी गाँव वाले दिल खोलकर धर्म पुण्य के काम किया करते थे। सभी जगह इस गाँव की खूब चर्चा थी। हालांकि चर्चा का एक और विषय भी था। वह यह था कि इसी गाँव में एक धनवान सेठ भी रहता था। वह सेठ केवल नाम का ही धनवान था।
काम उसके कंजूसों की तरह हुआ करते थे। इतना धन होने के बावजूद भी वह दान करने से डरता था। गाँव के सभी लोग अपने मेहमानों को घर पर खाना खिलाने बुलाते थे। लेकिन वह कंजूस सेठ किसी भी मेहमान को घर पर खाने के लिए न्योता नहीं देता था। अक्सर लोग दर्जी से कपड़े सिलवाया करते हैं।
लेकिन वह कंजूस सेठ तो दर्जी से कपड़े सिलवाने की बजाए अपनी पत्नी से कपड़े सिलवाता था। बेचारी उसकी पत्नी इसी वजह से बहुत दुखी रहती थी कि पहले तो घर का सारा काम करो और फिर सेठ के लिए कपड़े भी सिलो। जब जूते पहनने की बात आती तो वह जूतों को अपने हाथ में लेकर अपनी दुकान तक जाता था। इसके पीछे कारण यह था कि वह अपने जूतों को घिसने से बचाना चाहता था। वह सोचता था कि जितना हो सके जूतों को चलाना चाहिए। इससे उसके पैसे बचेंगे।
उसकी कंजूसी की हद तो तब हो गई थी जब वह सुबह का बना हुआ भोजन रात को भी खा लेता था। और कभी कभी तो अगली सुबह भी वही भोजन करता। वह अपनी पत्नी और बच्चे को भी बासी भोजन करने के लिए कहता। उसकी पत्नी बहुत बार कहती थी कि इतनी कंजूसी करना किसी के लिए भी अच्छी नहीं है। पर उस सेठ के कानों पर एक जूं तक नहीं रेंगती थी। एक बार उसके बच्चे ने बहुत जिद की कि उसको बाहर की बनी मिठाई खानी है। लेकिन सेठ ने अपने बच्चे की एक भी ना सुनी। उसने अपने बच्चे को इतना डांटा कि बेचारे बच्चे को बुखार ने जकड़ लिया। कैसे तैसे करके बच्चा दुबारा स्वस्थ हुआ।
एक दिन की बात है जब उस सेठ को कुछ गर्मा गर्म चीज खाने का मन हुआ। उसने अपनी पत्नी को बुलाया और कहा, “अरे ओ भाग्यवान, आज कुछ गर्मा गर्म ताजा खाना खाने को जी चाह रहा है। तो बताओ कि तुम क्या बनाओगी? पत्नी बोली, “जी, आप जो चाहो मैं वो बनाने के लिए तैयार हूं।
आप बस यह बताओ कि आप क्या खाना चाहते हो।” सेठ बोला, “ऐसा करो आज दाल बना दो। और वो भी खूब सारे घी के साथ।” कुछ समय पश्चात उसकी पत्नी गर्मा गर्म खाना लेकर बाहर आ गई। उस सेठ के मुंह में पानी भर आया। आज उसकी बीवी और बच्चा भी बहुत खुश थे। वह सेठ जैसे ही खाना खाने बैठा तो उसे दाल को देखकर लगा कि उसमें गी थोड़ा कम था।
उसने अपनी पत्नी से कहा कि वह उसे दाल में थोड़ा और घी डाले। उसकी पत्नी ने घी डाल दिया। अब इससे पहले वह दाल खाता उससे पहले एक मक्खी घूमती हुई सेठ की दाल की कटोरी में आ गिरी। सेठ के बच्चे ने कहा कि सेठ की दाल में मक्खी गिर गई है। सेठ को मक्खी पर बहुत गुस्सा आया। सेठ की पत्नी ने कहा कि वह एक दूसरी दाल की कटोरी ले आती है। सेठ ने कहा कि इसकी कोई जरूरत नहीं है क्योंकि वह मक्खी को दाल से निकालकर दाल खा लेगा। उसकी पत्नी को इस बात पर बहुत आपत्ति हुई।
लेकिन उसे सेठ की बात माननी ही पड़ी। उसने दाल से मक्खी निकाली तो देखा कि वह मक्खी तो मर चुकी थी। लेकिन उस मक्खी के शरीर पर खूब सारा घी लगा हुआ था। सेठ ने ज्यादा कुछ ना सोचा और जल्दी से उस मक्खी को चूसने लगा। फिर जैसे ही मक्खी के शरीर से सारा घी उतर गया तो उसने मक्खी को एक किनारे की ओर फेंक दिया।
उसका बेटा तो यह दृश्य देखकर बेहोश हो गया। इस सारी घटना का जिक्र सेठ की पत्नी ने अपने मायके में भी किया। जैसे ही उन सभी ने यह घटना सुनी सभी के मुंह से सेठ के लिए एक शब्द निकला – बाप रे! सेठ तो भयंकर रूप से कंजूस मक्खीचूस है। यह कहावत उस दिन के बाद से सभी के बीच लोकप्रिय हो गई।
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