मुहावरों पर आधारित (कहानी-6) अंधों में काना राजा

बहुत समय पहले की बात है। एक बहुत बड़ा राज्य था। उस राज्य की एक खासियत यह थी कि वहां पर कोई भी बीमार नहीं होता था। उस राज्य के सभी लोग पूर्ण रूप से स्वस्थ थे। सभी नागरिकों को इसी बात का बहुत ज्यादा अभिमान था। वह इस बात से अंजान थे कि आखिर बीमारी क्या होती है। एक दिन उनके राज्य में एक महान तपस्वी आया।

वह साधु आम इंसानों जैसा इंसान था। बस एक चीज की कमी थी उसमें और वह था उसका अंधापन। वह साधु अंधा था। क्योंकि ऐसा अंधा साधु उस राज्य के लोगों ने पहले कभी नहीं देखा था, इसलिए उन्हें उस साधु को देखकर हैरानी हुई। उस साधु ने राज्य में हर एक घर पर जाकर भिक्षा मांगी। लेकिन उसे भिक्षा के बदले अपमान ही सहना पड़ा।

जो कोई भी लोग उसे देखते वह उसे अंधा कहकर झिड़क देते थे। साधु को हर एक घर पर सम्मान की जगह अपमान ही सहना पड़ रहा था। उसे बहुत दुख हुआ। उसने कभी नहीं सोचा था कि लोगों की मानवता इतनी जल्दी खत्म हो जाएगी। जब हर एक घर पर उसे निराशा हाथ लगी तो वह बहुत ज्यादा भावुक हो गया था।

उसने सोचा कि आज शायद उसे भूखा ही रहना पड़ेगा। उसे दुख इस बात का नहीं था कि वह आज भूखा रहने वाला था। बल्कि उसे इस बात से बहुत निराशा हुई कि लोग उसके अंधेपन पर भद्दा मज़ाक़ बना रहे थे। अचानक एक और आदमी साधु के पास आया और बोला, “देखो साधु महात्मा, आपकी दाल हमारे राज्य में नहीं गलने वाली है।

आप अंधे हो। इसलिए सही यही रहेगा कि आप किसी अंधे राज्य में जाकर भिक्षा मांगों। वहां पर आपको अच्छे से भिक्षा देंगे।” ऐसा कहते ही वह आदमी जोरों से हंसने लगा। साधु को इस बार बहुत ज्यादा बुरा लगा। उसने सभी गाँव वालों को श्राप दिया कि, “आज तुम सभी लोगों ने मेरे अंधेपन का उपहास बनाया है।

आज मैं यह श्राप देता हूं कि इस राज्य के सभी लोग अंधे हो जाएंगे। सभी लोगों को उतने ही अपमान का सामना करना पड़ेगा जितना कि आज मैंने महसूस किया है।” वह आदमी इस बात पर बहुत ज्यादा डर गया। उसने साधु से कहा, “महात्मा, आप इतना बड़ा श्राप हमें मत दीजिए। अगर ऐसा हुआ तो हम सभी बर्बाद हो जाएंगे।” साधु ने उनकी एक भी ना सुनी और वह उस राज्य को श्राप देकर चला गया।”

किस्मत से उस राज्य का एक आदमी किसी काम के चलते राज्य से बाहर गया हुआ था। हुआ यूं कि साधु के श्राप से राज्य के सभी लोग अंधे हो गए। क्योंकि वह आदमी दूसरे राज्य में था इसलिए उसे साधु का आधा श्राप लगा। मतलब वह आदमी एक आंख से काना हो गया। उस राज्य के सभी लोग अंधे हो गए।

उन लोगों पर भारी विपत्ति तब टूट पड़ी जब उस राज्य में एक दिन चोरों के गिरोह ने धावा बोल दिया। क्योंकि चोरों को यह पता चल गया था कि राज्य के सभी लोग अंधे हैं इसलिए उन लोगों के लिए चोरी करना और भी आसान हो गया था। बहुत बार ऐसा भी होता था कि चोर किसी का धन लूटकर उन्हें मार भी दिया करते थे। राज्य के लोग उन चोरों से अति परेशान हो गए थे। वह सभी इस समस्या से निजात पाने का तरीका सोच रहे थे।

एक दिन वह काना आदमी दूसरे राज्य से अपने राज्य लौट आया। उसने राज्य के लोगों से पूछा कि यहां पर लोग इतने डरे हुए क्यों है? तो सभी लोगों ने बताया कि यहां पर एक चोरों के गिरोह ने आतंक फैला रखा है। वह चोर सभी का धन लूट लेते हैं और कभी कभी किसी की हत्या भी कर देते हैं। उसने गौर से यह बात सुनी और फैसला लिया कि सभी लोग उसपर विश्वास करें।

वह निश्चित रूप से चोरों को राज्य से भगा देगा। और ऐसा ही हुआ। उस आदमी ने अपनी वीरता और साहस के साथ चोरों के गिरोह को राज्य से उखाड़ फेंका। लोगों ने उस आदमी को अपना राजा घोषित कर दिया। ऐसे में उस काने आदमी के साहस के साथ राज्य में एक बार फिर से खुशहाली छा गई। सभी ने उस आदमी को धन्यवाद दिया। उस दिन से लेकर आज तक भी हम अंधे में काना राजा वाले मुहावरे का इस्तेमाल करते हैं।

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