यह बहुत पहले समय की बात है। एक समय एक गाँव हुआ करता था। वह गाँव कुछ ज्यादा पढ़े लिखे लोगों की वजह से शहर बन गया।अब वह गाँव शहर कहलाने लगा था। उस शहर में पढ़ने लिखने वाले लोगों की संख्या अधिक हो गई थी। पर ऐसा नहीं था कि उस शहर में गरीब लोग पूर्ण रूप से गायब हो गए थे।
अब भी उस शहर में ऐसे कई लोग थे जो कि गरीब थे। लेकिन शहर के अमीरों को इस बात से कोई फर्क़ नहीं पड़ता था। बेचारे गरीब लोगों को घर की रोजी रोटी चलाने के लिए पैसों की बहुत जरूरत पड़ती थी। क्योंकि शहर में धनवान लोगों की संख्या ज्यादा हो गई थी इसलिए गरीब लोग उनसे काम मांगने के लिए उनके पास जाते थे।
अमीर लोग गरीबों को अपने यहां नौकरी पर रख लेते थे। वह गरीबों से मनचाहा काम करवाते थे। उनका शोषण किया करते थे। बेचारे गरीब लोग भी करते तो क्या करते। वह गरीबी और निरक्षरता के चलते काम करने को मजबूर थे। जब कभी भी कोई गरीब व्यक्ति भेदभाव के चलते अपनी आवाज उठाने की कोशिश करता तो उसकी आवाज यह कहकर दबा दी जाती थी कि अगर अमीर लोग गरीबों की सहायता करना बंद कर दे तो अमीरों का दाना पानी बंद हो जाए। गरीब लोग चुप रहकर अमीरों के लिए काम करते रहते थे। वह सहन करने को अपनी किस्मत मानते थे।
एक बार ऐसा हुआ कि एक दूसरे शहर का आदमी उस गाँव घूमने आया। वह विदेश से पढ़कर आया था। उसे अमीर और गरीब के बीच गहरी खाई को देखकर बहुत बुरा लगता था। जब उसने उस शहर में अमीर और गरीब के बीच असमानता देखी तो उसे बहुत बुरा लगा। उसने इस खाई को भरने का एक अच्छा उपाय सोचा। फिर एक दिन उस आदमी ने सोचा कि क्यों ना एक नाटक किया जाए। नाटक में वह एक गरीब इंसान बन गया और फिर गरीब बनकर वह उस शहर में पहुंचा।
शहर में आकर उसने लोगों से कहा कि वह एक ऐसा गरीब आदमी है जिसे भगवान ने अपना आशीर्वाद दिया है। भगवान के आशीर्वाद के चलते उसने संन्यास भी ले लिया है और अब वह एक संन्यासी की भांति अपना जीवन व्यतीत कर रहा है। शहर के लोगों को उससे मिलकर बहुत अच्छा लगा। उन लोगों ने उस आदमी को दिव्य पुरुष मान लिया था। उन्होंने सोचा कि वह कितने भाग्यशाली है जो कि उनके शहर में एक संन्यासी पधारा है।
लोग धीरे-धीरे उस आदमी को पूजनीय मानने लगे। वह आदमी सभी को बुलाकर एक ही ज्ञान देता था कि सभी लोग उसके पास अपनी समस्याएं लेकर आ सकते हैं। लोग अपनी समस्याएँ लेकर उसके पास पहुंचने भी लगे। गरीब लोग तो उसके अनमोल वचन सुनने आते ही थे। अमीर लोग भी उस आदमी से अनमोल वचन सुनने को आते थे। अमीर लोग उसके प्रवचन सुनते थे। लेकिन साथ ही साथ उसे धन भी देते थे। वह अमीर लोगों से धन ले लेता और उस धन को गरीबों के लिए बचा कर रख देता था।
धीरे-धीरे उस आदमी ने जरूरतमंद लोगों को भोर में 4 बजे बुलाना शुरू कर दिया। उस समय केवल जरूरतमंद लोग ही उसके पास आया करते थे। वह आदमी अमीरों से प्राप्त हुए धन को गरीबों में बांट दिया करता था। गरीब लोग उसके इस काम के लिए बहुत धन्यवाद दिया करते थे।
वह लोग उस आदमी को अपना मसीहा मानने लग गए थे। जब गरीब लोग उसे बार बार धन्यवाद देते तो वह कहता कि कृपया ऐसा ना कहें। मदद करना मेरा फर्ज है। मैं किसी पर भी एहसान नहीं कर रहा हूं। मैंने अपने बुजुर्गों से यही सीखा है कि नेकी कर दरिया में डाल। मतलब किसी की सहायता करने के बाद उस बात को दोहराओ मत।
अब अमीर और गरीब के बीच खाई खत्म हो गई थी। एक दिन यह बात अमीरों को भी पता चल गई। उन्हें यह भी पता चला कि वह आदमी अब शहर छोड़कर जा भी चुका है। अमीरों को यह लगा कि वह आदमी उन्हें छकलर चला गया। लेकिन उनकी गलतफहमी तब दूर हुई जब उन्हें एक चिट्टी के माध्यम से सच्चाई का पता चला।
उस चिट्टी में लिखा हुआ था, “प्रिय भाइयों और बहनों! मुझे पता है कि अभी आप मुझे गलत समझ रहे होंगे कि मैं ऐसे बिना बताए कैसे चला गया। लेकिन मैं क्या करता मुझे जाना था। मुझे पैसों की कोई चाह नहीं है। क्योंकि मैं खुद ही करोड़ों की संपत्ति का मालिक हूं। अगर मैं चाहूँ तो मेरे पास दुनिया की हर एक चीज आ सकती है। लेकिन मुझे इन पैसों का कुछ भी नहीं करना है। मैं तो आपके शहर इसलिए आया था क्योंकि आपके यहां अमीर और गरीब के बीच भेद था।
अमीर लोग मुझे जो पैसा दिया करते थे उन्हें मैं गरीबों के लिए बचा दिया करता था। अब जब आपके यहां अमीर और गरीब के बीच भेदभाव खत्म हो गया है तो मैं यहां से कोई अन्य शहर जा रहा हूं। उस नए शहर में भी मैं यह काम करना जारी रखूँगा। बस चिट्टी खत्म करने से पहले एक बात बताना चाहता हूं कि हमेशा एक बात ताउम्र याद रखना कि नेकी कर और दरिया में डाल। जब भी किसी की मदद करो तो मदद करने के बाद उस विचार को नदी में बहा देना।” चिट्टी खत्म होते ही अमीर लोग पश्चाताप की आग में जल रहे थे।
मुहावरों पर आधारित अन्य कहानियां | यहाँ से पढ़ें |