राम भक्त शबरी की कहानी

बहुत समय पहले की बात है। यह बात इतनी पुरानी है कि उस समय भगवान राम भी पैदा नहीं हुए थे। भील जाति से संबंध रखने वाले अज की पत्नी ने एक सुंदर बालिका को जन्म दिया। बालिका का नाम श्रमणा रखा गया। यही श्रमणा आगे चलकर शबरी कहलाई गई। अज और उसकी पत्नी बेटी को पाकर बहुत खुश थे।

शबरी अपने माता-पिता की आँखों का तारा बन चुकी थी। शबरी को प्रकृति से बहुत ज्यादा लगाव था। वह हर पल प्रकृति से बात करती रहती थी। उसे जानवरों से भी बहुत ज्यादा लगाव था। वह रात दिन जानवरों की चिंता में ही रहती थी। जानवर प्रेम के अलावा उसे एक और प्रकार का प्रेम हो गया था और वह था भगवान से प्रेम। वह भगवान की पूजा-अर्चना में भी लीन रहने लगी थी। लोग उसे भक्त बुलाने लगे थे।

शबरी के माता-पिता उसकी इस भक्ति भाव को देखकर चिंता में रहने लगे थे। वह सोचते थे कि अगर शबरी इसी तरह ही भगवान की भक्ति में लीन रही तो आगे चलकर कहीं वह जोगन ना बन जाए। बस इसी चिंता के चलते शबरी के माता-पिता ने उसका विवाह तय कर दिया।

एक दिन उसके पिता खूब सारे जानवर घर में ले आए। जब उन जानवरों को उसने घर में आते देखा तो उसे अचंभा हुआ। उसने अपने पिता से पूछा कि वह इतने जानवर घर में क्यों लाए हैं। तो इस प्रश्न पर शबरी के पिता ने कहा कि वह अपनी बेटी की शादी की दावत के लिए इतने सारे जानवर लेकर आए हैं।

यह सुनते ही शबरी की आंखों में आंसू आ गए। वह तो जानवरों को बहुत ज्यादा प्रेम करती थी और उसके पिता जानवरों को मारने का सोच रहे थे। उसने मन ही मन सोचा कि उसे ऐसी शादी नहीं करनी है जहां पर किसी की जान के साथ खिलवाड़ हो। शबरी ने तुरंत ही सोचा कि वह शादी से पहले ही अपने गाँव से भाग जाएगी।

ऐसे में जानवरों की जान भी बच जाएगी और उसकी शादी भी नहीं होगी। फिर क्या था। शबरी ने ज्यादा ना सोचते हुए घर से भागने का पूरा मानस बना लिया। रात को जब सब जने सो गए तो उसने जानवरों को भी छुड़ा दिया। और वह भी गाँव छोड़कर भाग गई।

भागते हुए वह ऋषिमुख पर्वत आ पहुंची। वह पर्वत ऐसा था कि उस पर्वत पर केवल ऋषि मुनि ही रहा रहते थे। शबरी ने सोचा कि वह जगह उसके लिए सबसे उपयुक्त होगी। वहां पर रहकर वह सारे ऋषि मुनियों की खूब सेवा और आदर सत्कार करेगी।

परंतु ऋषि मुनि को जब पता चला कि वह भील जाति से संबंध रखती है तो सभी ने शबरी को अपनाने से मना कर दिया। वह शबरी को बहुत खरा खोटा सुनाते। हर दिन के अपमान के चलते ही शबरी बहुत दुखी रहने लगी थी। वह उसी पर्वत पर अपना अलग आशियाना बनाकर रहने लगी थी।

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फिर एक दिन मतंग ऋषि उसकी कुटिया में आए। शबरी ने कहा कि, “हे ऋषि महाराज आप कृपया करके मेरी कुटिया में मत आइए। अगर आप ऐसा करेंगे तो आप अशुद्ध हो जाएंगे।” इस बात पर मतंग ऋषि ने शबरी से कहा कि, “मैं बिल्कुल भी दूषित नहीं होऊँगा। इंसान का मन बहुत साफ होना चाहिए ना की तन।” यह शब्द सुनते ही शबरी के आंसू छलक आए। ऋषि मतंग ने शबरी को अपनी बेटी मान लिया और उसे अपने साथ अपने आश्रम ले गए।

अब शबरी ऋषि मतंग के आश्रम में रहने लगी थी। वह वहां दिन रात काम करती और प्रभु भजन में अपना समय गुजारने लगी। कुछ साल बाद ऋषि मतंग बीमार रहने लगे थे। एक दिन उन्होंने शबरी को बुलाकर कहा कि, “बेटा, अब मेरे धरती से जाने के दिन आ गए हैं।

अब मैं कुछ दिनों का मेहमान हूं।” इस बात पर शबरी बोली, “पर पिता जी आप ही मेरे जीवन का आधार हैं। अगर आप अपनी देह त्याग देंगे। तो मैं भी ऐसा ही करूंगी।” इस बात पर ऋषि मतंग ने शबरी को समझाया कि वह देह इसलिए नहीं त्याग सकती क्योंकि उससे मिलने साक्षात भगवान राम आएंगे।

इस बात पर शबरी को कुछ तसल्ली हुई। ऋषि मतंग ने अपनी देह त्याग दी। और अब शबरी प्रतिदिन भगवान राम की राह देखने लगी। प्रतीक्षा करते करते वह बुढ़ी हो गई। फिर एक दिन ऐसा सुनहरा अवसर आया जब भगवान राम खुद चलकर शबरी से मिलने आए। उस दिन शबरी का जन्म सफल हो गया था। आखिरकार शबरी ने भगवान राम के सामने अपनी देह त्याग दी।

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