गणतंत्र दिवस पर कविताएं (Republic Day Poem In Hindi) | 26 January Poem In Hindi

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गणतंत्र दिवस पर कविताएं (Poem On Republic Day In Hindi)- भारत में गणतंत्र दिवस का त्यौहार हर साल जोर-शोर से मनाया जाता है। देश का राष्ट्रीय त्यौहार (National Festival) गणतंत्र दिवस (Republic Day) वह दिन है जब भारत का संविधान लागू हुआ था। देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 26 जनवरी सन् 1950 को 21 तोपों की सलामी के साथ ध्वजारोहण कर भारत को पूर्ण रूप से गणतंत्र घोषित किया था। इसीलिए इस दिन को हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। 26 जनवरी गणतंत्र दिवस (26 January Republic Day) के दिन कई जगहों पर कविता पाठ (Poetry Reading) का आयोजन भी होता है। स्कूल, कॉलेज और सभाओं में लोग कविता पाठ करते हैं।

गणतंत्र दिवस कविताएं (Poems On Republic Day In Hindi)

26 जनवरी के मौके पर हम आपके लिए गणतंत्र दिवस पर कविताएं हिंदी में (Poem On Republic Day In Hindi) लेकर आए हैं। लोग गूगल पर गणतंत्र दिवस पर कविताएं (Republic Day Poem In Hindi), स्कूल में बोलने के लिए कविता, गणतंत्र दिवस पर शायरी और गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं काफी सर्च करते हैं। आप parikshapoint.com के इस पेज से गणतंत्र दिवस पर बेस्ट कविताएं (Republic Day Poems In Hindi) पढ़ सकते हैं। जिसे आप किसी भी कार्यक्रम में आसानी से पढ़कर लोगों का दिल जीत सकते हैं और अपनी शान बढ़ा सकते हैं। अपने पाठकों को हम बता दें कि इस पेज पर दी गई प्रत्येक गणतंत्र दिवस पर कविता प्रसिद्ध कविओं द्वारा रची गई हैं। 26 जनवरी पर कविता (26 January Par Kavita) पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करें।

26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर कविता

भारत को गणतंत्र देश बनाने में वीर जवानों के साथ-साथ कविओं और उनकी कविताओं की भी अहम भूमिका रही है। हरिवंश राय बच्चन, अल्लामा इकबाल. शैलेन्द्र आदि जैसे बड़े कविओं ने अपनी कविताओं में देश प्रेम को उजागर किया और अपनी कविताओं के माध्यम से हर भारतवासी के दिल में देश प्रेम को जिंदा रखने का काम भी किया। ऐसे सच्चे देशभक्त कविओं की कविताओं में देश के प्रति प्रेम और सम्मान देखने को मिलता है। आप हमारे इस पेज से इन्हीं कविओं की गणतंत्र दिवस की कविताएं (Republic Day Hindi Poem) पढ़ सकते हैं। हिंदी में गणतंत्र दिवस पर कविताएं (Poetry On Republic Day In Hindi) पढ़ने के लिए नीचे देखें।

गणतंत्र दिवस पर कविताएं
(Republic Day Poem In Hindi)

कविता 1

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बंधाए,

कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए,

इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े,

और इन्हें झटके देने में कितनों ने निज प्राण गंवाए!

किंतु शहीदों की आहों से शापित लोहा, कच्चा धागा।

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

जय बोलो उस धीर व्रती की जिसने सोता देश जगाया,

जिसने मिट्टी के पुतलों को वीरों का बाना पहनाया,

जिसने आजादी लेने की एक निराली राह निकाली,

और स्वयं उसपर चलने में जिसने अपना शीश चढ़ाया,

घृणा मिटाने को दुनियाँ से लिखा लहू से जिसने अपने,

‘जो कि तुम्हारे हित विष घोले, तुम उसके हित अमृत घोलो।’

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कठिन नहीं होता है बाहर की बाधा को दूर भगाना,

कठिन नहीं होता है बाहर के बंधन को काट हटाना,

गैरों से कहना क्या मुश्किल अपने घर की राह सिधारें,

किंतु नहीं पहचाना जाता अपनों में बैठा बेगाना,

बाहर जब बेड़ी पड़ती है भीतर भी गांठें लग जातीं,

बाहर के सब बंधन टूटे, भीतर के अब बंधन खोलो।

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कटीं बेड़ियां औ’ हथकड़ियां, हर्ष मनाओ, मंगल गाओ,

किंतु यहां पर लक्ष्य नहीं है, आगे पथ पर पांव बढ़ाओ,

आजादी वह मूर्ति नहीं है जो बैठी रहती मंदिर में,

उसकी पूजा करनी है तो नक्षत्रों से होड़ लगाओ।

हल्का फूल नहीं आजादी, वह है भारी जिम्मेदारी,

उसे उठाने को कंधों के, भुजदंडों के, बल को तोलो।

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

– हरिवंश राय बच्चन

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कविता 2

चिश्ती ने जिस जमीं पे पैगामे हक सुनाया

नानक ने जिस चमन में बदहत का गीत गाया

तातारियों ने जिसको अपना वतन बनाया

जिसने हेजाजियों से दश्ते अरब छुड़ाया

मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है।

सारे जहां को जिसने इल्मो-हुनर दिया था,

यूनानियों को जिसने हैरान कर दिया था

मिट्टी को जिसकी हक ने जर का असर दिया था

तुर्कों का जिसने दामन हीरों से भर दिया था

मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

टूटे थे जो सितारे फारस के आसमां से

फिर ताब दे के जिसने चमकाए कहकशां से

बदहत की लय सुनी थी दुनिया ने जिस मकां से

मीरे-अरब को आई ठण्डी हवा जहां से

मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है।

– इकबाल

कविता 3

कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे,

आजाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे

हटने के नहीं पीछे, डरकर कभी जुल्मों से

तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे

बेशस्त्र नहीं हैं हम, बल है हमें चरखे का,

चरखे से जमीं को हम, ता चर्ख गुंजा देंगे

परवाह नहीं कुछ दम की, गम की नहीं, मातम की,

है जान हथेली पर, एक दम में गंवा देंगे

उफ तक भी जुबां से हम हरगिज न निकालेंगे

तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे

सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका

चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे

दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं

खूं से ही हम शहीदों के, फौज बना देंगे

मुसाफिर जो अंडमान के, तूने बनाए, जालिम

आजाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे

– अशफाकउल्ला खां

कविता 4

इलाही खैर! वो हरदम नई बेदाद करते हैं,

हमें तोहमत लगाते हैं, जो हम फरियाद करते हैं

कभी आजाद करते हैं, कभी बेदाद करते हैं

मगर इस पर भी हम सौ जी से उनको याद करते हैं

असीराने-कफस से काश, यह सैयाद कह देता

रहो आजाद होकर, हम तुम्हें आजाद करते हैं

रहा करता है अहले-गम को क्या-क्या इंतजार इसका

कि देखें वो दिले-नाशाद को कब शाद करते हैं

यह कह-कहकर बसर की, उम्र हमने कैदे-उल्फत में

वो अब आजाद करते हैं, वो अब आजाद करते हैं

सितम ऐसा नहीं देखा, जफा ऐसी नहीं देखी,

वो चुप रहने को कहते हैं, जो हम फरियाद करते हैं

यह बात अच्छी नहीं होती, यह बात अच्छी नहीं करते

हमें बेकस समझकर आप क्यों बरबाद करते हैं?

कोई बिस्मिल बनाता है, जो मकतल में हमें ‘बिस्मिल’

तो हम डरकर दबी आवाज से फरियाद करते हैं।।

– राम प्रसाद बिस्मिल

कविता 5

होठों पे सच्चाई रहती है, जहां दिल में सफाई रहती है

हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं

जिस देश में गंगा बहती है

मेहमां जो हमारा होता है, वो जान से प्यारा होता है

ज्यादा की नहीं लालच हमको, थोड़े मे गुजारा होता है

बच्चों के लिये जो धरती मां, सदियों से सभी कुछ सहती है

हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं

जिस देश में गंगा बहती है

कुछ लोग जो ज्यादा जानते हैं, इंसान को कम पहचानते हैं

ये पूरब है पूरबवाले, हर जान की कीमत जानते हैं

मिल जुल के रहो और प्यार करो, एक चीज यही जो रहती है

हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं

जिस देश में गंगा बहती है

जो जिससे मिला सिखा हमने, गैरों को भी अपनाया हमने

मतलब के लिये अन्धे होकर, रोटी को नही पूजा हमने

अब हम तो क्या सारी दुनिया, सारी दुनिया से कहती है

हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं

जिस देश में गंगा बहती है..

– शैलेन्द्र

कविता 6

नहीं, ये मेरे देश की आंखें नहीं हैं

पुते गालों के ऊपर

नकली भवों के नीचे

छाया प्यार के छलावे बिछाती

मुकुर से उठाई हुई

मुस्कान मुस्कुराती

ये आंखें

नहीं, ये मेरे देश की नहीं हैं…

तनाव से झुर्रियां पड़ी कोरों की दरार से

शरारे छोड़ती घृणा से सिकुड़ी पुतलियां

नहीं, ये मेरे देश की आंखें नहीं हैं…

वन डालियों के बीच से

चौंकी अनपहचानी

कभी झांकती हैं

वे आंखें,

मेरे देश की आंखें,

खेतों के पार

मेड़ की लीक धारे

क्षिति-रेखा को खोजती

सूनी कभी ताकती हैं

वे आंखें…

उसने झुकी कमर सीधी की

माथे से पसीना पोछा

डलिया हाथ से छोड़ी

और उड़ी धूल के बादल के

बीच में से झलमलाते

जाड़ों की अमावस में से

मैले चांद-चेहरे सुकचाते

में टंकी थकी पलकें उठाईं

और कितने काल-सागरों के पार तैर आईं

मेरे देश की आंखें…

– अज्ञेय

कविता 7

प्राची से झाँक रही ऊषा,

कुंकुम-केशर का थाल लिये।

हैं सजी खड़ी विटपावलियाँ,

सुरभित सुमनों की माल लिये॥

गंगा-यमुना की लहरों में,

है स्वागत का संगीत नया।

गूँजा विहगों के कण्ठों में,

है स्वतन्त्रता का गीत नया॥

प्रहरी नगराज विहँसता है,

गौरव से उन्नत भाल किये।

फहराता दिव्य तिरंगा है,

आदर्श विजय-सन्देश लिये॥

गणतन्त्र-आगमन में सबने,

मिल कर स्वागत की ठानी है।

जड़-चेतन की क्या कहें स्वयं,

कर रही प्रकृति अगवानी है॥

कितने कष्टों के बाद हमें,

यह आज़ादी का हर्ष मिला।

सदियों से पिछड़े भारत को,

अपना खोया उत्कर्ष मिला॥

धरती अपनी नभ है अपना,

अब औरों का अधिकार नहीं।

परतन्त्र बता कर अपमानित,

कर सकता अब संसार नहीं॥

क्या दिये असंख्यों ही हमने,

इसके हित हैं बलिदान नहीं।

फिर अपनी प्यारी सत्ता पर,

क्यों हो हमको अभिमान नहीं॥

पर आज़ादी पाने से ही,

बन गया हमारा काम नहीं।

निज कर्त्तव्यों को भूल अभी,

हम ले सकते विश्राम नहीं॥

प्राणों के बदले मिली जो कि,

करना है उसका त्राण हमें।

जर्जरित राष्ट्र का मिल कर फिर,

करना है नव-निर्माण हमें॥

इसलिये देश के नवयुवको!

आओ कुछ कर दिखलायें हम।

जो पंथ अभी अवशिष्ट उसी,

पर आगे पैर बढ़ायें हम॥

भुजबल के विपुल परिश्रम से,

निज देश-दीनता दूर करें।

उपजा अवनी से रत्न-राशि,

फिर रिक्त-कोष भरपूर करें॥

दें तोड़ विषमता के बन्धन,

मुखरित समता का राग रहे।

मानव-मानव में भेद नहीं,

सबका सबसे अनुराग रहे,

कोई न बड़ा-छोटा जग में,

सबको अधिकार समान मिले।

सबको मानवता के नाते,

जगतीतल में सम्मान मिले॥

विज्ञान-कला कौशल का हम,

सब मिलकर पूर्ण विकास करें।

हो दूर अविद्या-अन्धकार,

विद्या का प्रबल प्रकाश करें॥

हर घड़ी ध्यान बस रहे यही,

अधरों पर भी यह गान रहे।

जय रहे सदा भारत माँ की,

दुनिया में ऊँची शान रहे॥

– महावीर प्रसाद ‘मधुप’

कविता 8

भारत में इसकी धूमधाम

छब्बीस जनवरी फिर आई

इसका प्रभात स्वर्णिम ललाम

वह याद दिलाया करता है

रावी तट पर जो प्रण ठाना

ऊँचे स्वर में था घोष हुआ

है हमें अग्निपथ अपनाना

होकर स्वाधीन जियेंगे हम

बलि हों चाहें अनगिनत प्राण

– सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

कविता 9

स्वतंत्र भारत के बेटे और बेटियो !

माताओ और पिताओ

आओ, कुछ चमत्कार दिखाओ। 

नहीं दिखा सकते ?

तो हमारी हां में हां ही मिलाओ। 

हिंदुस्तान, पाकिस्तान अफगानिस्तान

मिटा देंगे सबका नामो-निशान

बना रहे हैं-नया राष्ट्र ‘मूर्खितान’

आज के बुद्धिवादी राष्ट्रीय मगरमच्छों से

पीड़ित है प्रजातंत्र, भयभीत है गणतंत्र

इनसे सत्ता छीनने के लिए

कामयाब होंगे मूर्खमंत्र-मूर्खयंत्र

कायम करेंगे मूर्खतंत्र।

हमारे मूर्खिस्तान के राष्ट्रपति होंगे-

तानाशाह ढपोलशंख

उनके मंत्री (यानी चमचे) होंगे-

खट्टासिंह, लट्ठासिंह, खाऊलाल, झपट्टासिंह

रक्षामंत्री-मेजर जनरल मच्छरसिंह

राष्ट्रभाषा हिंदी ही रहेगी, लेकिन बोलेंगे अंगरेजी। 

अक्षरों की टांगें ऊपर होंगी, सिर होगा नीचे, 

तमाम भाषाएं दौड़ेंगी, हमारे पीछे-पीछे।

सिख-संप्रदाय में प्रसिद्ध हैं पांच ‘ककार’-

कड़ा, कृपाण, केश, कंघा, कच्छा। 

हमारे होंगे पांच ‘चकार’-

चाकू, चप्पल, चाबुक, चिमटा और चिलम।

इनको देखते ही भाग जाएंगी सब व्याधियां

मूर्खतंत्र-दिवस पर दिल खोलकर लुटाएंगे उपाधियां

मूर्खरत्न, मूर्खभूषण, मूर्खश्री और मूर्खानंद।

प्रत्येक राष्ट्र का झंडा है एक, हमारे होंगे दो, 

कीजिए नोट-लंगोट एंड पेटीकोट 

जो सैनिक हथियार डालकर 

जीवित आ जाएगा

उसे ‘परमूर्ख-चक्र’ प्रदान किया जाएगा। 

सर्वाधिक बच्चे पैदा करेगा जो जवान

उसे उपाधि दी जाएगी ‘संतान-श्वान’

और सुनिए श्रीमान-

मूर्खिस्तान का राष्ट्रीय पशु होगा गधा, 

राष्ट्रीय पक्षी उल्लू या कौआ, 

राष्ट्रीय खेल कबड्डी और कनकौआ। 

राष्ट्रीय गान मूर्ख-चालीसा, 

राजधानी के लिए शिकारपुर, वंडरफुल !

राष्ट्रीय दिवस, होली की आग लगी पड़वा। 

प्रशासन में बेईमान को प्रोत्साहन दिया जाएगा, 

ईमानदार सुर्त होते हैं, बेईमान चुस्त होते हैं। 

वेतन किसी को नहीं मिलेगा, 

रिश्वत लीजिए, 

सेवा कीजिए !

‘कीलर कांड’ ने रौशन किया था

इंगलैंड का नाम, 

करने को ऐसे ही शुभ काम-

खूबसूरत अफसर और अफसराओं को छांटा जाएगा

अश्लील साहित्य मुफ्त बांटा जाएगा। 

पढ़-लिखकर लड़के सीखते हैं छल-छंद, 

डालते हैं डाका, 

इसलिए तमाम स्कूल-कालेज 

बंद कर दिए जाएंगे ‘काका’।

उन बिल्डिगों में दी जाएगी ‘हिप्पीवाद’ की तालीम 

उत्पादन कर से मुक्त होंगे

भंग-चरस-शराब-गंजा-अफीम

जिस कवि की कविताएं कोई नहीं समझ सकेगा, 

उसे पांच लाख का ‘अज्ञानपीठ-पुरस्कार मिलेगा। 

न कोई किसी का दुश्मन होगा न मित्र, 

नोटों पर चमकेगा उल्लू का चित्र!

नष्ट कर देंगे-

धड़ेबंदी गुटबंदी, ईर्ष्यावाद, निंदावाद। 

मूर्खिस्तान जिंदाबाद!

– काका हाथरसी

कविता 10

गणतंत्र-दिवस की स्वर्णिम

किरणों को मन में भर लो !

आलोकित हो अन्तरतम,

गूँजे कलरव-सम सरगम,

गणतंत्र-दिवस के उज्ज्वल

भावों को मधुमय स्वर दो !

आँखों में समता झलके,

स्नेह भरा सागर छलके,

गणतंत्र-दिवस की आस्था

कण-कण में मुखरित कर दो !

पशुता सारी ढह जाये,

जन-जन में गरिमा आये,

गणतंत्र-दिवस की करुणा-

गंगा में कल्मष हर लो !

– महेन्द्र भटनागर

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