तेनालीराम की कहानी-10 “महान पुस्तक”

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Ekta Ranga

किताबें पढ़ना हमेशा से ही हर किसी का शौक रहा है। किताबें पढ़कर हमें ज्ञान की प्राप्ति होती है। किताबें पढ़ने से अनेक प्रकार के कौशल निखर कर आते हैं। वह हमें आत्मविश्वास प्रदान करती है। इससे हमारी एकाग्रता क्षमता में निखार आता है। किताबों का यह शौक पुराने समय से चलता आया है। ऐसा ही शौक राजा कृष्णदेव राय के राज्य विजयनगर में भी हुआ करता था। राजा के दरबार में भी हर कोई पढ़ने लिखने का शौकीन था। राजा के दरबार में बहुत से लोग कई महान पुस्तकों पर वाद विवाद प्रतियोगिता रखते थे।

एक बार की बात है जब राजा कृष्णदेव राय के दरबार में कोई दूसरे राज्य का मंत्री आया। दूसरे राज्य के राजा ने अपने उस मंत्री को राजा कृष्णदेव राय के पास कोई महत्त्वपूर्ण काम के लिए भेजा था। पर उस आदमी की बातों से ऐसा लगता था कि मानो वह महत्त्वपूर्ण बातों की बजाए वाद विवाद वाली चर्चाओं में ज्यादा इच्छुक था। उसे खुद पर अति अभिमान था।

वह दरबार में जब से आया था तब से वह यही कह रहा था कि उसे हर प्रकार के विषयों पर तर्क-वितर्क करना आता है। वह दरबार के हर एक मंत्री से तर्क-वितर्क करने बैठ जाता था। उसे शायद हर किसी को नीचा दिखाने में आनंद आता था। दरबार के सभी मंत्री उसकी इस हरकत से परेशान थे। उसके घमंडी स्वभाव के चलते दरबार का कोई भी व्यक्ति उसके पास बैठना पसंद नहीं करता था।

लेकिन दरबार में एक व्यक्ति ऐसा भी था जिससे उस मंत्री का पाला नहीं पड़ा था। और वह था तेनालीराम। तेनालीराम से उसका परिचय नहीं हो पाया था क्योंकि तेनाली कहीं बाहर गया हुआ था। थोड़े ही दिन बाद में तेनालीराम अपने राज्य लौटा। लौटने पर उसका खूब स्वागत किया गया। दरबार लौटने पर उसे पता चला कि दरबार में दूसरे राज्य का मंत्री मेहमान बनकर आया हुआ है। और यह कि वह मंत्री बहुत अभिमानी है।

जब तेनाली को यह पता चला कि वह दरबार में अपने ज्ञान को लेकर हर किसी को अपमानित करता रहता है तो तेनालीराम को बहुत ज्यादा गुस्सा आया। तेनाली ने सोचा कि इस घमंडी व्यक्ति का अभिमान खत्म करना ही होगा। फिर वह उस मंत्री के घमंड को तोड़ने के एक अच्छी तरकीब सोचने लगा। आखिरकार तेनालीराम को एक अच्छी तरकीब सूझ गई थी।

अगले दिन जब दरबार लगा तो राजा ने दूसरे राज्य के मंत्री को भी आने के लिए आमंत्रित किया। दरबार में सभी अपने अपने स्थान पर बैठ गए। फिर राजा ने उस मंत्री का परिचय तेनालीराम से करवाया। वह मंत्री भी तेनाली से मिलकर खुश हुआ। फिर राजा ने उस मंत्री से कहा, “यह बात सब जानते हैं कि आप बहुत बड़े विद्वान हो।

लेकिन क्या आपको पता है कि इस दरबार में ऐसा भी कोई है जो शायद आपसे भी ज्यादा विद्वान है। वह आपको कड़ी टक्कर दे सकता है।” वह मंत्री बोला, “ऐसा कौनसा व्यक्ति है जो कि मुझसे भी ज्यादा विद्वान है। मुझे नहीं लगता कि मुझे कोई टक्कर दे सकता है। और अगर ऐसा कोई व्यक्ति है तो मैं उससे जरूर मिलना पसंद करूंगा।

“राजा बोले, “मंत्री जी आपको अपने ऊपर इतना आत्मविश्वास है। इतना अभिमानी होना ठीक नहीं है। खैर जिस व्यक्ति की मैं बात कर रहा हूं वह आपके ठीक सामने ही बैठा है।” राजा कृष्ण देव राय ने तेनालीराम की ओर इशारा कर दिया। वह मंत्री घमंड भरे लहजे में बोला, “ठीक है, अगर तेनालीराम इतने ही विद्वान हैं तो मैं इनको जरूर परखना चाहूंगा। क्यों तेनाली जी क्या आप मेरी परीक्षा के लिए तैयार हैं?” तेनालीराम ने कहा, “मंत्री जी, मैं बेशक आपकी परीक्षा के लिए तैयार हूं। लेकिन आप मुझे केवल एक दिन का समय प्रदान कर दीजिए।” वह मंत्री इस बात के लिए तैयार हो गया।

अगले दिन सभी मंत्रीगण दरबार में हाजिर हो गए। तेनालीराम भी दरबार पहुंचा। लेकिन वह अपने साथ एक लाल रंग का गट्ठर लेकर लौटा। दरबार में सभी लोग इस सोच में पड़ गए कि आखिर तेनाली उस बड़े गट्ठर में क्या लाया था। फिर वह दरबार में आकर बैठ गया। उस व्यक्ति ने तेनालीराम की परीक्षा ली तो तेनाली उसमें आराम से पास हो गया।

फिर उस मंत्री ने तेनाली से कहा कि वह भी उसकी परीक्षा ले सकता है। तेनाली ने उस लाल रंग के गट्ठर की ओर इशारा किया और पूछा, “मंत्री जी, मैं इस गट्ठर में आपके लिए एक किताब लाया हूं जो कि बहुत महान किताब है। आपको इसी किताब पर मुझसे तर्क वितर्क करना होगा।

“उस मंत्री ने कहा, “अच्छा ठीक है, मैं इस तर्क वितर्क के लिए तैयार हूं। लेकिन पहले आप मुझे इस किताब का नाम तो बताइए।” तेनालीराम ने कहा, “जी, इस किताब को हम तिलक्षता महिषा बंधन के नाम से जानते हैं। नाम तो सुना ही होगा आपने। बड़ी प्रसिद्ध किताब है यह।” अब जैसे ही उस मंत्री ने पुस्तक का नाम सुना उसकी जैसे सिट्टी पिट्टी गायब हो गई। उसने तुरंत ही तेनालीराम से कहा, “हाँ, मैंने इस किताब के बारे में सुना भी है और पढ़ा भी है।

लेकिन क्या है ना मंत्री जी अभी अचानक ही मेरे दिमाग में तेज दर्द होने लगा है। तो क्या मैं कल इस पुस्तक पर वाद विवाद कर सकता हूं?” तेनालीराम ने कहा, “जी हां, आप बिल्कुल कर सकते हैं।” बातचीत खत्म होते ही दूसरे राज्य का वह मंत्री दरबार से चला गया।

अगले दिन भी तेनालीराम उस किताब के साथ लौटा। लेकिन आज वह मंत्री दरबार में अभी तक भी नहीं पहुंचा था। सभी ने कई देर तक उसका इंतजार किया लेकिन वह दरबार में आया ही नहीं। थोड़ी देर बाद में पता चला कि वह कल रात को ही अपने राज्य के लिए निकल गया था। राजा से अब रहा नहीं गया और उसने पूछा, “तेनालीराम, तुम इस गट्ठर में ऐसी कौन सी किताब लाए हो जिसका नाम सुनकर वह मंत्री भाग खड़ा हुआ।

तेनाली बोला, “तिलक्षता महिषा बंधन। तिलक्षता का अर्थ है – शीशम की सूखी लकड़ियाँ और महिषा बंधन का मतलब होता है एक ऐसी रस्सी से जिससे भैंसों को बाँधा जाता हो। इसका सही मायने में अर्थ हुआ कि इस लाल गट्ठर में मैंने कोई किताब नहीं रखी बल्कि इसमें तो मैंने सूखी लकड़ियाँ डाली है और उनको रस्सी से ऐसे बाँधा है जिससे यह बिल्कुल किताब जैसा लगे।” राजा और सभी दरबार में बैठे लोगों ने तेनालीराम की इस सूझबूझ की तारीफ की।

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