सावन का महीना होता भी बहुत मनभावन है। इस महीने में अच्छी बारिश होती है। पेड़-पौधे और जानवर खुशी से झूम उठते हैं। सभी का मन प्रफुल्लित हो उठता है। सावन का महीना हर किसी को खुश कर देता है। ऐसा ही सावन का महीना विजयनगर राज्य में भी चल रहा था। राजा कृष्ण देव राय को यह महीना बहुत पसंद था।
वह इस महीने से बहुत खुश रहते थे। उन्हें इस मौसम में एक अलग प्रकार की अनुभूति प्राप्त होती थी। एक दिन राज्य में अच्छी बारिश हुई। अच्छी बारिश के चलते सब जगह हरियाली ही हरियाली छा गई। राजा कृष्ण देव राय इस दृश्य को देखकर बहुत ज्यादा खुश थे। चारों तरफ फैली खुशहाली को देखकर राजा ने सोचा कि क्यों ना कोई बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाए।
राजा ने तेनालीराम को बुलाया और कहा, “देखो ना तेनाली, वातावरण कितना सुंदर हो गया है। देखते-देखते मन ही नहीं थकता है। इस बार बारिश भी उचित मात्रा में हुई है। किसान वर्ग भी फायदे में है। जब सब कुछ सही है तो मैंने सोचा कि क्यों ना इस महीने एक बड़ा उत्सव मनाया जाए। मैं यह भी चाहता हूं कि इस उत्सव में हलवाई रंग बिरंगी मिठाइयां तैयार करें।
“तेनालीराम ने कहा, “जी महाराज! मुझे आपका यह विचार बहुत पसंद आया। राज्य के सभी निवासी इस बात से बेहद खुश होंगे।” राजा को अच्छा लगा कि उसकी इस बात से तेनालीराम भी सहमत था। फिर क्या था। राजा ने ज्यादा ना सोचते हुए पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी आज से चार दिन बाद राज्य में एक बड़ा उत्सव रखा जाएगा। और इस उत्सव के लिए सभी हलवाई को रंग बिरंगी मिठाइयां तैयार करनी होगी। सभी हलवाई ने तैयारी शुरू कर दी।
तेनालीराम ने राजा की बात सुन तो ली थी। पर एक बात से वह बहुत नाखुश था। पर उसने राजा के सामने अपनी नाखुशी जाहिर नहीं की। तेनालीराम ने सोचा कि क्यों ना बिना बोले ही वह राजा को उसकी गलती का एहसास कराएं। अब तेनालीराम अपनी मंजिल की ओर निकल पड़ा।
एक दो दिन बाद जब तेनालीराम दरबार में नहीं पहुंचा तो राजा को चिंता हो गई कि तेनालीराम को क्या हो गया था। राजा ने जब तेनालीराम के घर पर पता करवाया तो उसे यह पता चला कि तेनालीराम तो घर पर लौटा ही नहीं। जैसे ही राजा को यह बात पता चली उसने अपने सिपाहियों को यह आदेश दिया कि तेनालीराम जहां कहां भी है उसे ढूंढ लिया जाए। सिपाही तेनालीराम को खोजने के लिए निकल पड़े।
तेनालीराम को बहुत जगह खोजा गया लेकिन वह कहीं नहीं मिला। लेकिन राजा ने अपने सिपाहियों को यह सख्त आदेश दे रखा था कि तेनालीराम को महल ही लेकर लौटना है। इसलिए उन्होंने उसे ढूँढने का प्रयास जारी रखा। आखिरकार तेनालीराम उनको मिल ही गया। दरअसल वह एक अन्य गाँव में कपड़े की दुकान खोलकर बैठ गया था। और वहां पर बैठा वह कपड़ों को रंगने में व्यस्त था। सिपाहियों ने जब उसे चलने के लिए कहा तो उसने मना कर दिया। लेकिन जब वह नहीं माना तो सिपाही उसे जबरदस्ती पकड़कर अपने साथ ले गए।
फिर उसे महल लाकर राजा के सामने पेश कर दिया। तेनालीराम को देखते ही राजा का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। राजा ने गरजती आवाज में कहा, “तुमनें मेरा इतना बड़ा अपमान किया कि तुम मुझे बिना बताए ही यहां से चले गए। तुम्हें तनिक अंदाजा भी है कि हम सभी को तुम्हारी कितनी ज्यादा चिंता हो रही थी। और यह क्या मज़ाक़ है कि तुमनें दरबार छोड़कर एक कपड़ा व्यापारी का पेशा अपना लिया।यह किस तरह का भद्दा मज़ाक़ है। हमनें क्या कमी रख दी जो तुम्हें कपड़े बेचने का सहारा लेना पड़ा।
“तेनालीराम बोला, “आपने मेरे लिए कोई कमी नहीं रखी। कपड़े बेचने का निर्णय मेरा निजी निर्णय था। इसमें किसी का कोई दोष नहीं है। पर एक बात है कि आपने मुझे यहां बुलाकर मेरे लिए घाटा करवा दिया। अब सारे हलवाई कपड़े वाले रंगों को खरीद लेंगे और और मैं अपने कपड़ों को रंगों से रंग नहीं सकूंगा। यह आपने मेरे साथ गलत किया महाराज।” राजा को पहले तो उसकी बात समझ में नहीं आई। लेकिन थोड़ी देर बाद जब दिमाग घुमाया तो एहसास हुआ कि वह ही गलत था।
राजा ने तेनालीराम से कहा, “तुम कहना चाह रहे हो कि जो रंग कपड़ों में इस्तेमाल लिए जाते हैं वही रंग हलवाई मिठाई में भी काम में ले लेंगे।” तेनालीराम ने कहा, “क्या आपको अब समझ में आया महाराज कि आपने क्या गलत निर्णय लिया है। अगर वह हलवाई हमारी मिठाई में कृत्रिम रंग डालेंगे तो क्या हम बीमार नहीं पड़ेंगे।
मैं चाहता हूं कि आप जल्द से जल्द कृत्रिम रंग से बनने वाली मिठाईयों का उत्पादन रुकवाए। और जनता के लिए प्राकृतिक रंगों से बनी मिठाइयां बनवाए।” अब राजा कृष्ण देव राय को अपने निर्णय पर पछतावा हो रहा था। उसने तुरंत ही ऐसे हलवाई पर कारवाई करने को कहा जो कि हानिकारक रंगों का इस्तेमाल कर रहे थे। एक बार फिर से तेनालीराम की बुद्धि के चलते बड़ा नुकसान होने से टल गया।
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