हर कोई इंसान केवल किताबी ज्ञान से ही चतुर नहीं बन सकता है। चतुर और बुद्धिमान कोई भी हो सकता है। उसके लिए चाहिए होती है गहरी सोच और समझ। ऐसा करके कोई भी बुद्धिमान और चतुर बन सकता है। ऐसा ही था तेनालीराम के साथ भी। तेनालीराम बहुत ज्यादा बुद्धिमान था।
उसे कोई भी समस्या का समाधान निकालना आसानी से आता था। वह कभी भी कोई भी तरह के काम से घबराता नहीं था। वह हर मुश्किलों का समाधान चुटकियों में कर देता था। राजा कृष्णदेव राय भी उसके इस स्वभाव से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। वह तेनालीराम से अनेकों सवाल जवाब पूछते ही रहते थे।
राजा कृष्णदेव राय के कोई सवाल तो ऐसे भी होते थे जिनका हल निकालना तो जैसे टेढ़ी खीर के समान हो जाता था। लेकिन तेनालीराम तो अत्यंत चतुर और बुद्धिमान था। उसे कोई भी सवाल कठिन नहीं लगता था। वह बिना घबराए राजा के प्रश्नों का उत्तर बड़ी ही आसानी से दे देता था। राजा कृष्णदेव राय को तेनालीराम की यही एक बात सबसे अच्छी लगती थी। इसलिए ही तो वह तेनाली के मुरीद हो गए थे। एक ऐसा ही किस्सा है जो राजा के सवाल और तेनालीराम के जवाब से जुड़ा है।
एक बार हर दिन की तरह राजा कृष्णदेव राय शाम के समय तेनालीराम के साथ बगीचे में टहल रहे थे। उन्होंने देखा कि शाम के समय खूब सारे पक्षी अपने घर की ओर जा रहे थे। शाम का माहौल बहुत सुंदर बन पड़ा था। घूमते घूमते राजा की नज़र एक कौवे पर पड़ी जो पेड़ के टहनी पर फुदक रहा था।
राजा और तेनाली उसको निहारे जा रहे थे। तभी अचानक राजा ने कहा, “तेनाली, मुझे इस कौवे को देखकर एक बात याद आ गई।” तेनालीराम ने कहा, “आपको कौनसी बात याद आ गई महाराज?” राजा बोले, “मेरे दिमाग में यह बात आ गई कि हमारे राज्य में कुल कितने कौवे होंगे? तो क्या तुम यह बता सकते हो कि हमारे राज्य में कुल कितने कौवे हैं?”
तेनालीराम बोला, “महाराज, मैं आपको इस बात का सटीक उत्तर दे सकता हूँ लेकिन क्या आप मुझे इस काम के लिए करीब करीब एक हफ्ता दे सकते हैं?” राजा ने कहा, “ठीक है, तेनालीराम। तुम कहते हो तो मैं तुमको एक हफ्ते की मोहलत देता हूं। पर इस एक हफ्ते में तुम्हें यह निश्चित तौर पर पता करना होगा कि आखिर हमारे राज्य में कौवों की कुल संख्या कितनी है। और अगर तुम इस बात का पता लगाने में विफल रहे तो फिर मैं तुम्हें काल कोठरी की सजा दे दूँगा। क्या तुम अब भी मेरी चुनौती स्वीकार करते हो?” तेनालीराम ने यह बात स्वीकार कर ली।
फिर पूरे एक हफ्ते तक तेनालीराम ने कौवों की गिनती जारी रखी। बहुत से लोग यह बात जानकार हैरान थे कि तेनालीराम कौवों की गिनती कर रहा था। सब उसपर हंसे बिना नहीं रहे। लेकिन तेनाली ने बिना शर्म किए कौवों की गिनती जारी रखी। फिर ऐसे करते करते पूरा एक हफ्ता बीत गया। अब समय आ गया था जब तेनाली को महल में जाकर महाराज को कौवों की कुल संख्या बतानी थी।
एक सप्ताह बीत जाने के बाद अगली सुबह तेनाली राजमहल की ओर निकला। वहां पहुंचा तो सबने उसका स्वागत किया। फिर वह महाराज के समक्ष गया। राजा बोले, “आओ, तेनाली! कैसे हो? और कैसा रहा तुम्हारे लिए गणना करना?” तेनालीराम बोला, “महाराज, मैं एकदम सही हूं। और अगर बात रही कौवों की गिनती की तो उसमें मुझे कोई परेशानी नहीं हुई।
“राजा ने कहा, “अच्छा तो ठीक है अगर तुम्हें कोई परेशानी नहीं आई तो फिर तुम यह बताओ कि हमारे राज्य में कुल कितने कौवे हैं?” तेनालीराम ने एकदम चिंता मुक्त होकर कहा, “महाराज, हमारे राज्य में कुल तीन लाख कौवे हैं। अगर आपको मेरे पर यकीन ना हो तो आप किसी और से भी इसकी गिनती करवा सकते हैं। दूसरे व्यक्ति का उत्तर भी यही होगा।” राजा कृष्ण देव राय अपने सिंहासन से खड़े हुए और तेनालीराम के लिए ताली बजाने लगे।
फिर वह बोले, “हम तुम्हारी ईमानदारी और भरपूर आत्मविश्वास से बहुत खुश हुए। आज हर किसी में इतना साहस नहीं होता कि वह इतनी खतरनाक चुनौती स्वीकार कर सके। लेकिन तुमनें बिना डरे यह चुनौती स्वीकार की। और पूरे आत्मविश्वास के साथ पूरा भी किया। तुम हमारी परीक्षा में सफल हुए। तुमनें आज यह साबित कर दिया कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए यह जरूरी नहीं कि हम किताबों को पढ़कर ही ज्ञान प्राप्त करें। बल्कि हम व्यावहारिक होकर भी ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।” अब तेनालीराम मंद मंद मुस्करा रहा था।
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