तेनालीराम की कहानी-5 “दूध न पीने वाली बिल्ली की कहानी”

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Ekta Ranga

एक समय ऐसा था जब पूरे विश्व में चूहों की बीमारी यानि कि प्लेग फैला हुआ था। यही बीमारी कहीं कहीं विजयनगर राज्य में भी आ गई। हालांकि इस बीमारी से ज्यादा तो लोग चूहों की शैतानी से बहुत ज्यादा परेशान थे। चूहे आए दिन परेशानी खड़ी करते थे। वह कभी तो लोगों के कपड़ों को कुतरकर उन्हें नुकसान पहुंचाते तो कभी वह लोगों के खेतों में घुसकर फसल को भी नुकसान पहुंचाते। विजयनगर के लोग चूहों से अति परेशान आ गए थे। वह यह सोच रहे थे कि इन चूहों से आखिर कैसे निदान पाया जाए।

इसी परेशानी को लेकर लोग राजा के पास पहुंचे। राजा कृष्ण देव राय ने उनकी बात सुनी और बहुत से विद्वान लोगों से चूहों से निजात पाने का समाधान पूछा। सभी लोगों ने यही बताया कि चूहों से निजात तभी पाया जा सकता है जब घरों में बिल्ली को पाला जाए। राजा ने यह बात स्वीकार कर ली। अब राजा ने अपनी प्रजा को यह आदेश दिया कि सभी लोग अपने घरों में बिल्ली को जरूर पाले।

राजा ने अपने मंत्रियों और सिपाहियों को भी बिल्ली रखने का आदेश दिया। उन्हीं मंत्रियों में तेनालीराम भी थे। तेनालीराम को भी महाराज की तरफ से एक बिल्ली भेंट की गई। फिर सभी लोग अपने घर में बिल्ली पालने लगे। बिल्लियों की तो जैसे मौज आ गई थी। सभी बिल्लियों का आवभगत होने लगा। उन्हें महारानी जैसे रखा जाने लगा। बिल्लियों को दूध की कमी न पड़े इसलिए घरों में गायों को भी रखा जाने लगा ताकि गाय का दूध पीकर बिल्लियां मोटी ताजी हो जाए।

तेनालीराम ने भी अपनी बिल्ली को बहुत अच्छे से रख रखा था। उस बिल्ली के लिए हर तरह के इंतजाम करवा रखे थे तेनालीराम ने। वह बिल्ली को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होने देता था। तेनालीराम की बिल्ली भी बहुत मोटी तगड़ी हो गई थी। वह आराम भरा जीवन जी रही थी। वह चूहों को खाती। मजे से दूध पीती और दिन भर आराम करती। वह धीरे-धीरे आलसी भी होती जा रही थी।

एक दिन तेनालीराम ने उसे दूध पीने के लिए बुलाया तो वह आई ही नहीं और जमीन पर ही लेटी रही। तेनालीराम को गुस्सा तो आया लेकिन उसने दूध ले जाकर बिल्ली के सामने रख दिया तो उसने दूध बड़ी ही आसानी से पी लिया। अगले दिन फिर से बिल्ली ने जब ऐसी ही हरकत की तो इस बार तेनालीराम ने बिल्ली को ठंडे दूध की जगह गर्म दूध दे दिया। इस बार जैसे ही बिल्ली ने दूध पिया वैसे ही वह भाग खड़ी हुई। अगली बार जब तेनालीराम ने बिल्ली के सामने दूध रखा तो वह भाग खड़ी हुई। अब तेनालीराम की बिल्ली धीरे धीरे पतली होने लगी थी। वह अब दूध पीने की बजाए अपने आप ही खाना ढूंढती और खाती।

एक दिन राजा ने सभी लोगों को यह आदेश दिया कि सभी अपनी बिल्लियों को लेकर महल पहुंचे। राजा यह देखना चाहते थे कि सभी की बिल्लियां किस हालत में थी। सभी लोग अपनी-अपनी बिल्लियों को लेकर महल पहुंचे। सभी की बिल्लियां मोटी ताजी पड़ी थी। लेकिन केवल तेनालीराम की ही बिल्ली ऐसी थी जो कि बहुत पतली हो गई थी।

राजा को यह देख बहुत हैरानी हुई। राजा ने तेनालीराम से पूछा, “यह मैं क्या देख रहा हूं तेनाली कि तुम्हारी बिल्ली इतनी पतली हो गई। जब मैंने तुम्हें यह पहली बार दी थी तब तो यह शरीर में अच्छी थी। लेकिन फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि यह बिल्ली इतनी थक गई?” तेनालीराम ने कहा, “बिल्ली अपनी हरकतों के चलते ही ऐसी हुई है। दरअसल यह बिल्ली इतनी ज्यादा मोटी हो गई थी कि इसको उठने बैठने को कहते तो यह उठती नहीं थी।

इसने ज्यादा चलना फिरना बंद कर दिया था। फिर एक दिन मैंने इसे मज़ा मजा चखाने की सोची। एक दिन मैंने इसे गर्म दूध पिला दिया। जिसके चलते इसका मुंह जल गया और इसे दूध ही अच्छा लगना बंद हो गया।” राजा ने कहा, “ऐसा कैसे हो सकता है कि इसने दूध पीना ही बंद कर दिया। मैं अभी इसको दूध पिलाकर देखता हूं।” फिर राजा ने अपने सिपाहियों से कहा कि बिल्ली को दूध पिलाया जाए।

जैसे ही सिपाहियों ने बिल्ली के सामने दूध का कटोरा पेश किया वह कटोरे के सामने से ही हट गई। वहां पर मौजूद सभी लोगों को इस बात का आश्चर्य हुआ कि जो बिल्ली दूध इतना ज्यादा पसंद करती है वह दूध पीने से पीछे क्यों हट रही है? इस बात पर तेनालीराम ने कहा, “महाराज, यह बिल्ली दूध इसलिए नहीं पी रही है क्योंकि इसने दूध गर्मा गर्म पी लिया था। और दूध गर्म होने की वजह से इसका मुंह जल गया था।

अब जो भी इसको दूध पिलाता है तो यह सोचती है कि उसका मुंह फिर से जल जाएगा। इसने मेरी बात नहीं मानी थी तो मैंने इसको सबक सिखाने के लिए गर्म दूध पिला दिया। लेकिन अब यह मेरी सारी बात मानती है। सेवक और मालिक का रिश्ता बिल्कुल बराबरी का होना चाहिए। अगर मालिक सेवक का खूब ख्याल रखता है तो सेवक को भी उतना ही ख्याल मालिक का रखना चाहिए।” अब राजा को सारी बात अच्छे से समझ में आ गई थी।

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