तेनालीराम नाम से हर कोई परिचित है। हम बचपन से ही तेनालीराम के किस्से और कहानियां सुनते आए हैं। तेनालीराम बहुत ही बुद्धिमान और चतुर दिमाग का व्यक्ति था। वह अपनी बुद्धि से सबको परास्त कर देता था। तेनालीराम की बुद्धि के आगे बड़े से बड़े लोग भी हार जाते थे।
लेकिन क्या आप सभी यह जानते हैं कि तेनालीराम को ऐसी बुद्धि कहां से प्राप्त हुई? कि कैसे वह विश्व प्रख्यात बन गया। इसके पीछे भी बहुत बड़ी कहानी है। तो आइए हम तेनालीराम के जीवन से ही जुड़ी एक कहानी जानते हैं। आशा करते हैं कि आपको यह रोचक कहानी जाननी अच्छी लगेगी।
यह बहुत समय पहले की बात है। शायद बात है 16वीं शताब्दी की। उस समय रामलिंगम् नाम के एक सुंदर बालक ने जन्म लिया था। बात है आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले की। बाद में इसी बच्चे का नाम तेनालीराम रख दिया गया था। तेनालीराम बचपन से ही हंसमुख स्वभाव का व्यक्ति था। वह आम बच्चों से थोड़ा अलग इसलिए था क्योंकि वह बचपन से ही हाजिरजवाबी किस्म का व्यक्ति था। उसकी उम्र के बच्चे इतने बुद्धिमान नहीं थे। तेनालीराम बचपन से ही धार्मिक स्वभाव का व्यक्ति भी था।
एक बार की बात है। एक बार हुआ यूं कि गुंटूर जिले में एक ज्ञानी पंडित आया हुआ था। सभी लोग कहते थे कि उसको माँ काली की सिद्धि प्राप्त थी। उसको अनेक प्रकार के मंत्र मुंह जुबानी याद थे। हर कोई इंसान उस पंडित से ज्ञान प्राप्त करना चाहता था।
एक दिन जब तेनालीराम ने उस पंडित के बारे में लोगों से सुना तो उसे पंडित से मिलने की हार्दिक इच्छा हुई। वह लोगों से पूछता रहता था कि वह पंडित कैसा है और वह कहां रहता है। लोगों ने उस पंडित के बारे में तेनालीराम को अच्छे से बताया। और यह भी बताया कि उस पंडित को माँ दुर्गा का आशीर्वाद मिला हुआ है। और वह पंडित एक गुफा में रहकर साधना करता है।
बस फिर क्या था। तेनालीराम झट से उस पंडित से मिलने को निकल गया। जब वह गुफा पहुंचा तो उसने देखा कि वह गुफा बहुत बड़ी थी। वह उस गुफा में अंदर गया। अंदर पहुंचकर उसने देखा कि वह साधु साधना में लीन था। तेनालीराम गुफा में एक किनारे पर जाकर बैठ गया और साधु की साधना खत्म होने का इंतजार करने लगा। फिर जैसे ही साधु की साधना खत्म हुई तेनालीराम दौड़कर उस पंडित के पास आकर बैठ गया।
उसने पंडित से कहा, “प्रणाम महाराज! मैंने बहुत से लोगों से आपके बारे में सुना। सभी लोगों ने मुझे यह बताया कि आपको माँ दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त है। तो आप मुझे यह बताइए कि आपने यह कैसे संभव किया?” पंडित बोला, “वत्स, हमारे जीवन में माँ का आशीर्वाद होना बहुत जरूरी है। उसके बिना हम जीवन में कुछ भी हासिल नहीं कर सकते हैं। तो आज मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूं कि तुम कैसे माँ को प्रसन्न करके माँ का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हो।
“तेनालीराम बोला, “हाँ, महाराज। आप मुझे बताइए।” पंडित बोला, “वत्स, तुम्हें कई दिनों तक माँ के कुछ सिद्ध मंत्रों का जाप करना होगा। तुम्हें कड़ी तपस्या करनी होगी। हो सकता है कि तुम्हारी तपस्या से खुश होकर माँ तुम्हारे सामने प्रकट हो जाए और तुम्हें माँ का आशीर्वाद मिल जाए।” तेनालीराम बोला, “पंडित जी आप मुझे वह मंत्र दे दीजिए। मैं माँ की तपस्या जरूर करूंगा।” उस पंडित ने फिर खुशी खुशी तेनालीराम को माँ दुर्गा का चमत्कारी मंत्र दे दिया।
तेनालीराम ने लगातार कई दिनों तक कड़ी तपस्या की। कई दिनों की कड़ी तपस्या करने के बाद माँ दुर्गा आखिरकार तेनालीराम से खुश हो गई। माँ दुर्गा तेनालीराम के सामने प्रकट हो गई। माँ दुर्गा ने तेनालीराम के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “अपनी आंखें खोलो, वत्स।” तेनालीराम ने अपनी आंखें खोली तो देखा कि सामने साक्षात माँ दुर्गा थी।
वह माँ दुर्गा के पैरों में गिर पड़ा। माँ दुर्गा ने उसे उठने के लिए कहा। माँ की बात मानकर वह खड़ा हुआ और एक बड़ी सी मुस्कान बिखेर दी। माँ दुर्गा ने कहा, “वत्स, मैं तुम्हारी आराधना से बहुत प्रसन्न हुई। इसलिए मैं तुम्हें वरदान देना चाहती हूँ। बोलो, तुम क्या मांगना चाहते हो? मैं तुम्हें दो विकल्प देती हूं – ज्ञान या धन?” फिर माँ दुर्गा ने दो कटोरी तेनालीराम के सामने पेश की और पूछा, “इन दोनों कटोरी में से एक कटोरी तुम चुन लो।
अगर पहली कटोरी चुनी तो तुम्हें जीवन में खूब धन की प्राप्ति होगी। और अगर दूसरी कटोरी चुनी तो तुम्हें आपार ज्ञान प्राप्त होगा। अब फैसला तुम्हारा है कि तुम क्या चुनना पसंद करोगे?” तेनालीराम ने पांच सात मिनट के लिए कुछ सोचा और फिर माँ दुर्गा से कहा, “माता, आप मुझे एक बार दोनों ही कटोरी पकड़ा दें। फिर मैं अपने आप निर्णय कर लूँगा।” माँ दुर्गा ने दोनों ही कटोरी तेनाली के हाथ में दे दी।
तेनाली ने बड़ी ही चतुराई से दोनों ही प्यालों के रस का सेवन कर लिया। फिर अपने भोले से मुंह से कहा, “मैं क्या करता माता। मुझे दोनों ही प्यालों के रस का सेवन करना पड़ा। मैंने कई देर तक सोचा और यह निर्णय लिया कि मुझे अपने जीवन में ज्ञान और धन दोनों की जरूरत है। दोनों की अपनी अपनी अहमियत है। दोनों के ही बिना जीवन अधूरा सा है” माँ दुर्गा को तेनाली की बात बड़ी ही मासूम लगी।
माँ दुर्गा बोली, “हम तुम्हें यह वरदान देते हैं कि तुम आने वाले समय में एक महान कवि और मंत्री के रूप में विख्यात होगे। तुम्हारे मित्र भी खूब होंगे तो शत्रुओं की भी कमी नहीं होगी तुम्हारे जीवन में।” माँ दुर्गा ने जैसे ही अपना वाक्य पूरा किया वह अदृश्य हो गई। माँ दुर्गा के आशीर्वाद के चलते ही तेनालीराम आगे चलकर राजा कृष्ण देव राय के दरबार में सबसे ताकतवर मंत्री बन गया था। उसे अपने जीवन में किसी भी चीज की कमी नहीं पड़ी।
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