तेनालीराम की कहानी-7 अपराधी बकरी

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Ekta Ranga

एक दिन हर दिन की ही तरह राजा कृष्ण देव राय अपने दरबार में बैठे सभी मंत्रियों से विचार विमर्श कर रहे थे। सभी राजा के सामने अपनी अपनी समस्याएं साझा कर रहे थे। राजा भी सभी की बातों को बड़ी ही गंभीरता से सुन रहे थे। अचानक राजा के सिपाही दौड़ते हुए राजा के सामने आए और राजा को कहने लगे,

“महाराज, एक गडरिया दरबार में आने की फरमाइश कर रहा है। वह कह रहा है कि वह बहुत दुःखी है। और उसे आपसे एक समस्या का समाधान पूछना है। हमनें उसे यहां से जाने को बोला लेकिन वह गडरिया मान ही नहीं रहा है। वह आपसे मिलने की जिद पर अड़ा है।” जब राजा को पता चला कि वह गडरिया कोई बड़े दुःख से गुजर रहा है तो राजा ने गड़रिए को दरबार में आने की अनुमति दे दी।

जैसे ही वह गडरिया दरबार में आया वह राजा के पैरों में गिर पड़ा। पैरों में गिरकर वह जोर जोर से रोने लगा। राजा ने उसे उठने का आदेश दिया और कहा कि वह राजा को अपनी आपबीती सुनाए। राजा की बात मानकर वह उठा और बोला, “महाराज, मैं बहुत दुःखी हूं। मेरे दुःख का भी एक बड़ा कारण है। दरअसल अभी से चार दिन पहले जब तेज बारिश आई थी तब मेरे पड़ोसी की छत ढह गई थी।

छत गिरने के कारण मेरी बकरी मर गई थी। महाराज मैं चाहता हूं कि आप मेरे पड़ोसी को सख्त से सख्त सजा दो।” फिर वह जोर जोर से रोने लगा। राजा ने कहा, “तुम मत रोओ। मैंने तुम्हारी बात सुनी। तुम्हारे साथ बहुत गलत हुआ। हम तुम्हारे पड़ोसी को बुलाकर उसे सजा जरूर देंगे।

“दरबार में बैठे तेनालीराम को यह बात हज़म नहीं हुई। उसने अपने कुर्सी से उठकर कहा, “महाराज, यह जरूरी नहीं है कि जो बकरी मरी है उसमें इस गड़रिए का पड़ोसी पूर्ण रूप से दोषी हो। हो सकता है कि इसका दोषी कोई और भी हो। इसलिए मैं यह चाहता हूं कि आप मुझे असली दोषी को ढूंढ निकालने के लिए थोड़ा समय दें।” राजा ने सोचा कि अगर तेनालीराम कुछ कह रहा है तो कुछ सोच समझ के ही कह रहा होगा। राजा ने तेनालीराम को कुछ दिनों की मोहलत दे दी।

फिर शुरू हुआ दोषी को ढूंढने का सिलसिला। तेनालीराम सबसे पहले उस गड़रिए के पड़ोसी के घर पहुंचा। पड़ोसी ने तेनालीराम की खूब आव भगत की। फिर तेनालीराम ने पूछा, “अच्छा, तो तुम मुझे यह बताओ कि तुमनें अपने छत की दीवार कच्ची क्यों बनाई थी। तुम्हारी वजह से तुम्हारे पड़ोसी की बकरी की जान चली गई। अब तुम्हारी सजा यह है कि तुम्हें अपने पड़ोसी को भरपाई के रुपये देने पड़ेंगे।

अगर तुमनें ऐसा नहीं किया तो राजा तुम्हें सजा दिए बिना नहीं छोड़ेंगे।” पड़ोसी ने तेनालीराम से कहा, “मंत्री जी, मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूं। मेरे जैसे निर्दोष का घर मत उजाड़िए। वह बकरी मेरी वजह से नहीं मरी। इसमें दोष उस इमारत बनाने वाले का है जिसने यह इमारत बनाई। तो आप सजा भी इमारत बनाने वाले को ही दीजिए।” तेनालीराम ने सोचा कि शायद वह आदमी सही कह रहा है। गलती तो इमारत बनाने वाले की ही है।

फिर तेनालीराम इमारत बनाने वाले के पास पहुंचा। वहां पर पहुंचकर तेनालीराम ने मिस्त्री को भी वही पूछा जो कि उसने उस पड़ोसी से पूछा था। मिस्त्री ने भी हाथ जोड़कर तेनालीराम से यही कहा कि जो बकरी मरी उसमें उन मजदूरों का हाथ है जिन्होंने चूने के मसाले में ज्यादा पानी मिलाया था। फिर इसमें मेरा क्या दोष हो सकता है। आप सजा उन मजदूरों को दीजिए जिनके चलते वह बकरी मरी।” तेनालीराम ने इस बात पर कई देर तक सोच विचार किया और फिर उसने सोचा कि यह मिस्त्री शायद सही कह रहा है।

अब तेनालीराम मजदूरों के घर की ओर रवाना हो गया। वहां पहुंचकर उसने मजदूर से पूछा, “तुमनें हाल में ही जिसके घर की मरम्मत की थी उसमें चूने में जरूरत से ज्यादा पानी क्यों मिलाया? तुम्हारे ज्यादा पानी मिलाने के चक्कर में उस आदमी के छत की दीवार गिर गई। और उसके चलते एक बकरी मर गई।

“मजदूर बोला, “मंत्री जी, अगर वह बकरी मर गई तो इसमें मेरा क्या दोष। हम सभी मजदूरों ने तो उस चूने में ज्यादा पानी नहीं मिलाया था। बल्कि हमें तो चूना बनाने वाले ने ही ऐसा मसाला तैयार करके दिया था जिसमें जरूरत से ज्यादा पानी था। अब आप ही बताइए कि इसमें गलती हम मजदूरों की हुई या फिर चूना तैयार करने वाले उस आदमी की।” तेनालीराम को उस आदमी की बात भी ठोस लगी।

अब तेनालीराम चूना तैयार करने वाले आदमी के पास गया। वहां पर पहुंचकर तेनालीराम ने कहा, “क्यों भाई, तुमनें चूने में इतना पानी क्यों मिलाया था। तुम्हारे चूने में पानी मिलाने के चक्कर में एक आदमी के घर की छत गिर गई और उसके चलते एक बकरी की मौत हो गई।” वह आदमी बोला, “इसमें मेरा कोई दोष नहीं है। मुझे तो जिस आदमी ने चूना तैयार करने के लिए बर्तन दिया था वह बर्तन बहुत छोटा था। छोटे बर्तन के चलते मुझसे चूने में ज्यादा पानी डल गया।”

अंत में जब तेनालीराम बर्तन देने वाले आदमी के पास पहुंचे तो उसने यह कहकर बात को विराम दे दिया कि जो बर्तन उसे दिया गया था वह उसी गड़रिए के घर से आया था जिसकी बकरी हाल ही में मर गई थी। अब तेनालीराम को असली दोषी का पता लग चुका था।

वह अगले दिन दरबार में पहुंचा और वहां पर पहुंचकर राजा को सारी बात बता दी। राजा ने उस गड़रिए को बुलाकर पहले सारी घटना सुनाई। और फिर यही कहा कि तुम्हारी बकरी के मरने के जिम्मेदार तुम खुद हो। अब गडरिया शांत हो गया था क्योंकि उसे पता चल चुका था कि असली दोष उसी का ही था।

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