राजा कृष्णदेव राय बड़े ही हंसमुख और सरल स्वभाव के थे। वह आमतौर पर छोटी छोटी बातों का बुरा नहीं मानते थे। लेकिन कभी कभी ऐसा भी होता था जब वह छोटी सी बात पर भी नाराज हो जाते थे। फिर उनकी नाराजगी किसी से भी हो सकती थी चाहे वह उनके बच्चे या पत्नी ही क्यों ना हो। एक बार ऐसा ही एक वृत्तांत उनकी पत्नी के साथ भी हुआ।
एक बार ऐसा हुआ कि तेनालीराम को लगा कि रानी और राजा कृष्ण देव राय के संबंधों में कुछ सही नहीं चल रहा है। लेकिन दूसरे ही पल वह इस भावना को अपने दिल से निकालकर फेंक देता था। एक दिन रानी ने अपनी दासियों को तेनालीराम के पास जाने को कहा। रानी ने अपनी दासियों को तेनालीराम के पास एक संदेश लेकर भेजा था।
दासी तेनालीराम के पास पहुंची और बोली, “मंत्री जी, रानी साहिबा ने आपके लिए एक संदेश भिजवाया है। आप कहे तो हम संदेश पढ़कर आपको सुना दे।” तेनालीराम बोला, “नहीं, दासियों तुम अब जा सकती हो। मैं यह संदेश खुद पढ़ लूंगा।” फिर तेनालीराम ने संदेश पढ़ना शुरू किया, “सादर प्रणाम मंत्री जी।
मैं आपको यह बताना चाहती हूं कि इन दिनों मैं बहुत दुःखी हूं। मेरे इस दुःख के चलते मैं ना तो ढंग से सो पाती हूं और ना ही मुझे ढंग से खाना भाता है। अब आप ही शायद मेरे इस दुःख का कोई समाधान बता सकते हो। मैं आपसे मिलना चाहती हूं और आपको मेरी समस्या बताना चाहती हूं। आशा करती हूं कि आप शीघ्र अतिशीघ्र मुझसे मिलने पहुंचे।”
जैसे ही तेनालीराम ने खत पढ़कर खत्म किया वह सोच में पड़ गया कि आखिर रानी तिरुमाला देवी को ऐसा क्या हो गया कि वो इतनी दुःखी हो गई है। कहीं उनका दुःख मुख्य रानी (पट्ट महिषी) की वजह से तो नहीं। लेकिन यह सारे ख्याल तेनालीराम ने अपने दिमाग से उड़न छू कर दिए। और वह जल्दी से रानी तिरुमाला देवी से मिलने निकल पड़ा।
रानी तिरुमाला देवी के भवन कक्ष में पहुंचकर तेनालीराम ने रानी को प्रणाम किया। रानी ने उनका प्रणाम स्वीकार करके उन्हें बैठने का आदेश दिया। फिर जैसे ही तेनालीराम बैठा रानी जोर जोर से रोने लगी। रानी ने रोते रोते तेनालीराम से कहा, “मंत्री जी, मैं आपको क्या बताऊँ कि हाल के दिनों में मैं कितनी तकलीफ में हूं। मुझसे अब यह दुःख बर्दाश्त नहीं होता। इसी तकलीफ के चलते मैं उदासीन हो चली हूं।
मुझे रंगीन दुनिया भी बेरंग लगती है।” तेनालीराम ने पूछा, “ऐसा क्या बड़ा हो गया है रानी साहिबा जो आप इतना दुःखी हैं। आपको क्या चीज इतना व्याकुल कर रही है? कहीं आपकी तकलीफ का कारण पट्ट महिषी तो नहीं।” रानी बोली, “नहीं, नहीं मंत्री जी, यह दर्द पट्ट महिषी की वजह से नहीं है। बल्कि इसकी वजह कुछ और है। आप ध्यान से सुनना मैं जो आपको बताने जा रही हूं।”
फिर रानी ने अपनी तकलीफ बतानी शुरू की, “मंत्री जी, राजा बहुत ही हंसमुख किस्म के व्यक्ति हैं। लेकिन वह छोटी छोटी बात पर भी गुस्सा कर सकते हैं इस बात का आभास मुझे हाल के दिनों में हुआ। दरअसल हुआ यूं कि अभी थोड़े दिन पहले ही महाराज मुझे खुद द्वारा लिखित एक कविता सुना रहे थे। कविता सुनते हुए मुझे बीच में उबासी आ गई। जैसे ही महाराज ने मुझे उबासी लेते हुए देखा वह मुझसे नाराज हो गए।
उनको लगा कि मैं उनकी कविता को नजरअंदाज कर रही थी। वह कविता के पन्ने को वही धरती पर गिराकर मेरे कक्ष से मुझसे बिना बोले ही निकल गए। अब आप बताइए मंत्री जी कि इसमें मेरी क्या गलती है। बहुत दिन हो गए हमारी महाराज से बात तक नहीं हुई है। हम अब महाराज से ज्यादा दिन तक बात किए बगैर नहीं रह सकते। अब आप ही इस समस्या का कोई समाधान निकालिए।” तेनालीराम ने कहा, “आप चिंता मत कीजिए, रानी साहिबा। मैं कोई ना कोई समाधान जरूर निकाल लूंगा।”
उस दिन तेनालीराम ने इस समस्या का समाधान निकालने के लिए दिन रात एक कर दिया। फिर जब अगली सुबह हुई तो तेनालीराम राजा के दरबार पहुंचा। दरबार में महाराज चावल की खेती पर चर्चा कर रहे थे। एक मंत्री ने कहा कि, “महाराज, हमारे खेतों के चावल में कीड़े लगने लगे हैं। सभी किसान बहुत परेशान भी रहने लगे हैं। और यही एक बड़ा कारण है कि चावल की खेती पर असर भी पड़ा है।
“महाराज ने कहा, “तो क्या इसका कोई समाधान हो सकता है मंत्री जी?” मंत्री बोला, “हाँ, हो तो सकता है। पर दिमाग में कोई समाधान आ नहीं रहा है।” तभी अचानक तेनालीराम ने मौके का फायदा उठाते हुए कहा, “महाराज, मैं आपको बता सकता हूं कि इसका समाधान क्या हो सकता है।” राजा ने कहा, “अगर तुम्हें इसका समाधान पता है तो फिर मैं यह जानना पसंद करूंगा। तो बताओ तुम्हारे दिमाग में क्या योजना चल रही है?
“तेनालीराम बोला, “महाराज, हमें चावल की खेती पर पड़ रहे कीड़ों से निजात पाने के लिए कीटनाशक बनाना होगा। कीटनाशक से सभी कीड़े पूरी तरह से मर जाएंगे। और ऐसे में चावल की खेती में भी सुधार आएगा। पर हाँ, एक बात याद रहे कि जो कीटनाशक बनाने वाला हो वह एक ऐसा आदमी हो जिसने अपने पूरे जीवनकाल में कभी उबासी ना ली हो। अगर ऐसा होगा तो ही कीटनाशक का प्रयोग सफल हो पाएगा अन्यथा नहीं।
राजा ने कहा, “यह कैसे संभव हो सकता है तेनालीराम कि किसी इंसान को कभी भी उबासी नहीं आती। उबासी आना तो स्वाभाविक है।” तेनालीराम बोला, “पर महाराज, मुझे ऐसा लगता है कि दुनिया में ऐसा तो कोई आदमी होगा जिसको उबासी नहीं आती है। मेरे अलावा महारानी को भी यही लगता है कि दुनिया में उबासी नहीं लेने वाला व्यक्ति भी है।” अब राजा को यह समझ आ चुका था कि उन्होंने अपनी रानी के साथ कितना गलत किया था।
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