तेनालीराम की कहानी-9 “नली का कमाल”

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Ekta Ranga

इस दुनिया में हमेशा बुद्धिमान लोगों का हर जगह आदर किया जाता है। उन्हें हर कोई सम्मान की नजरों से देखता है। समाज में उनका स्थान ऊंचा होता है। लेकिन हमें यह भी अच्छे से पता है कि बुद्धिमान लोगों के दोस्त भी जितने ज्यादा होते हैं उतने ही ज्यादा होते हैं उनके दुश्मन। बुद्धिमान लोगों से बहुत सारे लोग ईर्ष्या करते हैं। ठीक ऐसा ही कुछ तेनालीराम के साथ भी था। तेनालीराम अपने समय का विद्वान मंत्री और कवि था। उसके भी कई तो मित्र थे और कई लोग ऐसे भी थे जो उसके दुश्मन भी थे। एक ऐसा ही किस्सा जुड़ा है तेनालीराम के जीवन से।

राजा कृष्णदेव राय के दरबार में अनेक मंत्री थे। लेकिन एक मंत्री था जो कि राजा का सबसे प्रिय मंत्री था और वह था तेनालीराम। बुद्धिमत्ता में तेनाली को कोई नहीं हरा सकता था। तेनाली की इसी बुद्धिमत्ता से अन्य सभी मंत्री जलते थे। उन सभी को तेनाली की सलाह मशविरा अच्छी नहीं लगती थी। वह यही सोचते थे कि राजा केवल तेनालीराम को ही मौका देते हैं।

एक दिन दरबार में सभा चल रही थी। सभी हर तरह के महत्त्वपूर्ण कार्यों पर अपने विचार रख रहे थे। सभी प्रकार के विषयों के चलते एक विषय समझदारी और बुद्धिमत्ता पर भी आया। जब इस विषय पर चर्चा चली तो एक मंत्री ने राजा से कहा, “महाराज, जब भी बात समझदारी की आती है तो हमेशा तेनालीराम का ही नाम क्यों सर्वोपरि रखा जाता है? हम सभी आपके ही मंत्री हैं। तो फिर हमसे ऐसा भेदभाव क्यों?” राजा बोले, “प्रिय मंत्री जी, मैंने कब कहा कि आप हमारे लिए खास नहीं हैं। मेरे लिए तो सभी मंत्री एक समान है।

हम भेदभाव को अपने महल में स्थान नहीं देते हैं। तो फिर आपको ऐसा क्यों लगा कि हम आप सभी से भेदभाव करते हैं। और अगर बात रही तेनालीराम की तो वह तो सही में सभी से काफी अलग है। जीवन में आप कभी भी किसी दूसरे से खुद की तुलना नहीं कर सकते हैं।” मंत्री बोला, “अगर ऐसी बात है तो आप हमें अपने आप को साबित करने का मौका दीजिए, महाराज। हम भी आपको यह दिखाना चाहते हैं कि हम भी तेनाली जितने ही बुद्धिमान हैं।” राजा को लगा कि अगर उन मंत्रियों को मौका नहीं दिया गया तो यह बात भेदभाव वाली हो जाएगी। इसलिए राजा ने यह निर्णय लिया कि उन मंत्रियों को भी मौका दिया जाएगा।

राजा ने कहा, “अच्छा, तो अगर आप सभी अपने आप को साबित करना चाहते हो तो उसके लिए आपको एक परीक्षा से गुजरना होगा। क्या आप सभी इस बात के लिए सहमत हैं?” सभी मंत्रियों ने राजा की बात पर सहमति जता दी। फिर राजा ने कहा, “तो आपकी परीक्षा यह है कि आपको मंदिर में जो धूप-बत्ती जली हुई दिख रही है, उसी धूप-बत्ती का धुंआ आपको अपने हाथ में लेना है और उसे लेकर मुझे देना है। क्या आप इस परीक्षा को पार कर लेंगे? एक बार फिर से सोच लीजिए।” मंत्रियों ने इसके लिए हामी भर दी।

अब सभी मंत्री एक एक करके धूप-बत्ती के पास गए और अपने हाथों में धुंआ भरने लगे। सभी मंत्री एक एक करके जाते रहे लेकिन कोई भी कामयाब नहीं हो सका। एक आखिरी बार और कोशिश करके देख लिया लेकिन इस बार भी नाकामयाबी ही हाथ लगी। जब किसी से भी यह चुनौती पूरी नहीं हुई तो राजा ने कहा कि क्यों ना तेनालीराम को भी मौका देकर देख लेना चाहिए। सभी मंत्रियों ने कहा कि वह इस बात पर सहमत हैं। लेकिन अगर तेनाली ने भी यह चुनौती पार नहीं की तो वह सभी उसे एक साधारण मंत्री घोषित कर देंगे। राजा ने तेनालीराम से भी यही पूछा कि क्या वह यह चुनौती स्वीकार करते हैं। तो तेनालीराम का प्रत्युत्तर हाँ में था।

राजा की चुनौती स्वीकार करने के बाद तेनालीराम ने अपनी नज़रे इधर-उधर दौड़ाई और फिर वह सीधे ही एक सेवक के पास जा पहुंचा। उसने सेवक को एक किनारे में आने को कहा। फिर तेनाली को जो बात उसे कहनी थी वह कह दी। सभी लोग आश्चर्यचकित थे कि ऐसे मौके पर तेनाली को एक सेवक की क्या जरूरत पड़ गई। फिर कुछ चंद मिनट बाद ही वह सेवक दुबारा दरबार में लौट आया। पर जब वह दरबार में लौटा तो उसके हाथ में एक कांच की नली थी।

उस सेवक ने वह कांच की नली तेनालीराम के हाथ में पकड़ा दी। फिर जैसे ही वह नली तेनालीराम के हाथ में आई वह जल्दी से कांच की नली को लेकर धूप-बत्ती के पास गया। वहां पहुंचकर उसने धूप-बत्ती का धुंआ उस नली में डाला और उस नली को एक ढक्कन से ढक दिया। और फिर वह नली को लेकर राजा के पास पहुंचा। जैसे ही राजा ने नली खोली, उसमें से धुआं निकला।

अब सब यह दृश्य देखकर हैरान रह गए। राजा ने भी गर्व भरी नजरों से तेनालीराम को देखा। अब सभी मंत्रियों को अपनी गलती का एहसास हो गया था। वह सभी नज़रे झुकाए बैठे थे। तेनालीराम भी मंद मंद मुस्कुरा रहा था। आखिरकार यह साबित हो चुका था कि तेनालीराम से ज्यादा चतुर और दरबार में कोई नहीं था।

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