यह बहुत समय पहले की बात है। यमुना के तट पर एक बहुत ही सुंदर गाँव हुआ करता था जिसका नाम था धर्मस्थल। उस गाँव में लोग मिलजुलकर रहते थे। वह कभी भी लड़ाई झगड़ा नहीं करते थे। उसी गाँव में एक ऐसा परिवार भी रहता था जिनके घर की लड़की बहुत ही सुंदर थी। उस सुंदर ब्राह्मण लड़की का नाम सुकन्या था।
सुकन्या बहुत ही सुंदर और समझदार लड़की थी। उसकी सुंदरता की चर्चा चारों ओर थी। अब धीरे-धीरे वह बड़ी हो रही थी। जैसे-जैसे वह बड़ी हो रही थी वह और भी खूबसूरत हो हो रही थी। अब तो उसके लिए खूब सारे लड़कों के रिश्ते आने लगे। लेकिन उसके पिता और भाई ने कहा कि सुकन्या के लिए योग्य वर तो वह दोनों ही चुनेंगे।
एक दिन सुकन्या के पिता और भाई किसी के सिलसिले से दूसरे गाँव गए। अब घर में सुकन्या और उसकी माँ ही रह रही थी। एक दिन हुआ यूं कि सुकन्या पानी भरने के लिए कुंए पर गई थी। जैसे ही वह कुंए पर पानी भर रही कि तभी उसने देखा कि एक जंगली सूअर हमला करने के लिए उसकी ओर बढ़ा।
सुकन्या सूअर का शिकार होने ही वाली थी कि अचानक उसने देखा कि एक युवक तेजी से उस और दौड़ता हुआ आया और सुकन्या को इस बड़े हमले से बचा लिया। सुकन्या ने देखा कि वह युवक देखने में बहुत सुंदर था। जितना वह सुंदर था उतना ही वह बलशाली भी था। युवक ने सुकन्या से पूछा, “तुम्हें चोट तो नहीं लगी? तुम ठीक तो हो ना?
“सुकन्या बोली, हाँ, मैं एकदम सही हूं। मुझे कुछ नहीं हुआ।” फिर वह युवक जब वहां से जाने लगा तो सुकन्या ने उसे जाने से रोक दिया और कहा, “अरे, आप ऐसे कैसे जा रहे हैं। आप मेरे साथ मेरे घर चलिए। मैं आपके साहस का परिचय अपनी माँ को दूंगी।” ऐसा कहने पर वह युवक सुकन्या के साथ उसके घर चला गया।
वहां पर पहुंचकर जब सुकन्या ने अपनी माँ को सारी बात बताई तो वह उस लड़के के साहसिक कार्य से बहुत प्रभावित हुई। उसने मन ही मन में यह फैसला कर लिया था कि वह उस लड़के को सुकन्या का वर बना देगी। तो वही दूसरी ओर सुकन्या के पिता और भाई ने भी अपने अपने हिसाब से खुद के अनुरूप सुकन्या के लिए वर चुन लिए थे। उसके पिता और भाई जब अपने गाँव लौटे तो वह दोनों ही अपने साथ सुकन्या के लिए वर साथ में लेकर लौटे।
सबसे पहले घर आए सुकन्या के पिता। और फिर थोड़ी ही देर बाद सुकन्या का भाई भी लौट आया। दोनों ही दो वर के साथ लौटे। जब सुकन्या की माँ को यह बात पता चली तो उसे बहुत अजीब लगा। उसने अपने पति और बेटे को यह बता दिया कि उसने भी सुकन्या के लिए एक लड़के का चुनाव कर लिया है। फिर उसने सुकन्या के साथ हुई सारी घटना उन दोनों को बता दी। अब वह तीनों ही इस सोच में पड़ गए कि आखिर किसको सुकन्या का वर चुना जाए। थोड़ी देर सोच विचार के बाद में सुकन्या के पिता ने कहा कि यह फैसला वह अगर सुकन्या पर ही छोड़ दे तो ही अच्छा रहेगा।
सुकन्या के पिता ने सुकन्या को आवाज लगाई तो वह आई नहीं। जब रसोई में जाकर देखा तो पता चला कि वह तो जमीन पर गिरी पड़ी थी। सुकन्या की माँ और भाई भी दौड़ा चला आया वहां पर। उन्होंने सुकन्या को हाथ लगाकर देखा तो पता चला कि वह तो मर गई थी। तीनों लड़के भी वहीं मौजूद थे। उनको सुकन्या की मृत्यु की खबर सुनकर बहुत दुख हुआ। पर उन्होंने यह ठान लिया था कि अब वह तीनों ही कभी भी शादी नहीं करेंगे।
सबसे पहले वाला आदमी जिसे सुकन्या लेकर आई थी वह सुकन्या के दाह संस्कार के बाद उसकी हड्डियों को लेकर जंगल में रहने के लिए चला गया। और जो युवक उसके पिता ने उसके लिए चुना था वह युवक एक साधु बन गया और हर जगह भटकता हुआ उपदेश देता था। तीसरे युवक ने सुकन्या की राख को समेटा और श्मशान में ही झोपड़ी बनाकर रहने लगा।
एक दिन वह युवक जो साधु बन चुका था वह उपदेश देने के लिए किसी दूसरे राज्य में गया हुआ था। दूसरे राज्य में उसने कई जगह पर उपदेश दिए। फिर एक रात खूब तेज बारिश हुई। वह साधु बना युवक बीच राह में चलता हुआ बारिश में फंस गया था। तभी उसे एक घर दिखा और उसने वहां शरण ले ली। घर में पहुंचकर पता चला कि वह घर एक बड़े तांत्रिक का था। तांत्रिक और उसकी पत्नी एक साधु को अपने घर पर देखकर बहुत खुश हुए। उन दोनों ने साधु की खूब खातिरदारी की। दोनों ने साधु को थोड़े दिनों के लिए उनके घर पर रुकने की विनती की। साधु ने विनती स्वीकार कर ली।
एक दिन कुछ बड़ा हुआ। एक दिन तांत्रिक की पत्नी हर दिन की ही तरह भोजन पका रही थी कि तभी उसका बच्चा खेलते हुए उसके पास आया और उसे तंग करने लगा। उसे बच्चे पर बहुत गुस्सा आया और उसने उसी समय बच्चे की गला घोटकर हत्या कर दी। जब साधु ने यह देखा तो उसे बड़ा ही क्रोध आया। उसने तांत्रिक की पत्नी को जैसे ही श्राप देने के लिए हाथ में पानी लिया उतने में ही तांत्रिक वहां पर पहुंच गया।
उसने साधु से कहा, “हे साधु महाराज, मेरी पत्नी ने बच्चे का गला घोंटा जरूर है। पर वह मरा नहीं बल्कि बेहोश हो गया है। मैं आपको यह बात साबित कर सकता हूं। ” फिर तांत्रिक एक किताब लाया और एक मंत्र पढ़ा। बस फिर क्या था। मंत्र पढ़ते ही वह बच्चा फिर से जिवित हो उठा। जब साधु को इस किताब और मंत्र के बारे में पता चला तो उसके मन में यह विचार आया कि ऐसे में तो सुकन्या को भी दोबारा जिंदा किया जा सकता है। उसने तांत्रिक से वह मंत्र वाली किताब कुछ दिनों तक अपने पास रखने की इजाजत मांगी। तांत्रिक ने खुशी-खुशी साधु को वह किताब दे दी।
किताब लेकर वह साधु अपने दो अन्य मित्रों के पास पहुंचा जिसके साथ सुकन्या की शादी होने वाली थी। जिस युवक के पास सुकन्या की राख थी उससे साधु ने राख मंगवाई। और जिस युवक के पास सुकन्या की हड्डियां थी उससे हड्डियां मंगवाई गई। फिर साधु बने युवक ने किताब खोलकर उसमें से मंत्र पढ़ा और सुकन्या को जिंदा कर दिया। जैसे ही सुकन्या जिंदा हुई वह तीनों ही खुशी से झूम उठे।
“अब यह बताओ कि आखिर सुकन्या ने किसको अपना वर चुना?” बेताल ने विक्रम से सवाल किया। विक्रमादित्य इस प्रश्न पर चुप ही रहा। लेकिन बेताल को विक्रम की चुप्पी बर्दाश्त नहीं हुई। उसने विक्रम से वही सवाल किया और कहा कि अगर विक्रम ने उसके प्रश्न का जवाब नहीं दिया तो वह उससे भयंकर गुस्सा हो जाएगा।
इस बार विक्रम ने जवाब दिया, “परंपरा के अनुसार जो व्यक्ति सुकन्या की राख को लेकर श्मशान में रह रहा था वही उसका असल मायने में पति हुआ। ऐसा इसलिए है क्योंकि जो व्यक्ति उसकी हड्डियों के साथ रह रहा था वह उसका भाई हुआ। और जिस साधु ने उसे जीवनदान दिया वह उसका पिता समान हुआ। तो राख को रखने वाला उसका पति हुआ।” विक्रम का सही उत्तर सुनकर बेताल खुश हो गया और वह उड़ चला।
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