विक्रम चलते हुए थकने लगा था। उसने सोचा कि अपनी थकान मिटाने के लिए क्यों ना हर दिन की तरह एक कहानी सुनी जाए। उसने बेताल से कहा कि उसे कोई दिलचस्प कहानी सुननी है। बेताल ने कहा कि आज वह विक्रम को एक ब्राह्मण युवक के जीवन पर आधारित एक कहानी सुनाएगा। कहानी की बात सुनते ही विक्रम के चेहरे पर मानो जैसे चमक आ गई। कहानी के नाम से ही उसकी सारी थकान उतर गई। फिर बेताल ने कहानी कहनी शुरू की।
बहुत समय पहले की बात है जब उज्जैन नगर बहुत ही ताकतवर राज्य था। उस राज्य में खूब सारे लोग एक साथ निवास करते थे। उस राज्य के राजा का नाम महासेन था। वह बहुत ही कुशल राजा था। उज्जैन नगरी में ही एक ब्राह्मण साहूकार भी रहा करता था। उस साहूकार का नाम वासुदेव था। वह अपनी पत्नी और अपने बेटे गुणकार के साथ रहा करता था। वासुदेव को ऐसे किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं थी। बस एक ही परेशानी उसे लगातार खाए जा रही थी।
दरअसल उसके एकमात्र एक ही संतान थी और वह थी गुणकार। लेकिन अपने नाम की तरह उसमें वह गुण नहीं थे जो एक अच्छे पुत्र में होने चाहिए। गुणकार अपने माँ-बाप के लाड़ प्यार के कारण बहुत ज्यादा बिगड़ गया था। वह अपने पिता के बुढ़ापे का सहारा बनने की बजाए अपने ही पिता पर बोझ बनता जा रहा था। वह बोझ इसलिए बन गया था क्योंकि वह कोई कमाई नहीं करता था। वह सारा दिन घर पर ही रहता था और जुआ खेलकर अपना पूरा दिन निकाल देता था। वासुदेव अपने बेटे की इस तरह की हरकत से बहुत ज्यादा तंग आ गया था। उसने अपने बेटे को कई बार समझाया कि वह कुछ मेहनत की कमाई कर ले। लेकिन शायद गुणकार को थोड़ा सा भी फर्क़ नहीं पड़ता था।
एक दिन थक हारकर वासुदेव ने अपने बेटे से कहा, “बेटा, अगर तुम अभी से मेहनत करके कमाने की नहीं सोचोगे तो तुम्हारा भविष्य अंधकार में चला जाएगा।” जब वासुदेव को लगा कि उसका बेटा उसकी बात को नजरअंदाज कर रहा है तो उसने एक बहुत बड़ा फैसला लेने का सोचा। उसने अपने बेटे को अपने घर से बेदखल कर दिया। उसने जेब खर्च के नाम पर भी कुछ नहीं दिया। वासुदेव ने सोचा कि अगर वो अभी गुणकार को घर से जाने का कह देगा तो कम से कम वह खुद के आधार पर आत्मनिर्भर तो बन सकेगा। फिर उसने अपने बेटे को थोड़े बहुत सामान के साथ घर से जाने का फरमान दे दिया। गुणकार अपने सामान के साथ बिना कुछ कहे और बोले ही अपने घर से निकल पड़ा।
अपने घर से बेदखल हो जाने के बाद गुणकार कई दिनों तक इधर उधर ही भटकता रहा। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। एक दिन भटकते हुए वह दूसरे राज्य में आ पहुंचा। उसने उस राज्य में खूब नौकरी ढूंढी, लेकिन उसे कहीं पर भी नौकरी नहीं मिल पाई। दिन रात की चिंता में वह दुबला पतला हो गया। उसने सोचा कि वह अपने घर पर इतने ऐशो आराम से रहता था कि उसे इस बात का पता भी नहीं चला कि संघर्ष क्या होता है। एक दिन वह भरी दोपहर में नौकरी की तलाश में ही भटक रहा था कि अचानक उसे चक्कर आ गया और वह जमीन पर गिर पड़ा।
जब उसे होश आया तो उसने देखा कि वह एक आदमी के घर पर बिस्तर पर सोया था। वह आदमी अपने तेज से एक महात्मा प्रतीत हो रहा था। वह आदमी उसके सिर पर पट्टी कर रहा था। उस आदमी ने गुणकार से कहा, “चिंता मत करो, बेटा। तुम्हें कुछ नहीं हुआ है। तेज गर्मी के चलते तुम बेहोश होकर गिर पड़े थे। तुम्हारी कमजोरी से लग रहा है कि तुम बहुत दिनों से भूखे हो। अब तुम मुझे यह बताओ कि तुम क्या पकवान खाओगे।
“गुणकार बोला, “मैं अनेक प्रकार के व्यंजन खाना पसंद करूंगा। क्या आप मुझे वह पकवान खिला सकते हैं क्या?” वह महात्मा बोला, “बेटा, तुम जो कहोगे मैं तुम्हें वह चीज खिलाने को तैयार हूं। तुम बस पकवान का नाम बोलो।” फिर गुणकार ने पकवान की वह सूची उस महात्मा को बता दी। इस पर महात्मा ने कुछ मंत्र बुदबुदाएं और पल भर में गुणकार के सामने कई स्वादिष्ट पकवान तैयार थे। गुणकार ने जैसे ही पकवान की थाली देखी उसने भर पेट खाना खाया।
थोड़ी देर बाद जब गुणकार ने महात्मा से कहा कि वह अब थोड़ी देर सुस्ताना चाहता है। इस बात पर महात्मा ने गुणकार को एक कमरे की ओर जाने का आदेश दे दिया। जब गुणकार ने कमरे में जाकर देखा तो वह दंग रह गया। उस कमरे में गुणकार की सेवा में दास खड़े थे। और उस कमरे में हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध थी। वह कमरे में जाकर नर्म गद्दे पर लेट गया और उसे नींद आ गई।
थोड़ी देर बाद जब वह सोकर उठा तो उसने देखा कि वह दास उस कमरे से गायब थे। वह दौड़ता हुआ महात्मा के पास गया और बोला, “महात्मा, आप अपने जादू से कैसे सब चीजें करते हैं? क्या आप मुझे भी ऐसा कोई मंत्र बताएंगे जिससे मैं भी आपकी तरह हर चीज को पूरा करने में समर्थ होऊं।” महात्मा ने कहा कि हर कोई इंसान के लिए इस प्रकार की सिद्धि प्राप्त करना आसान नहीं होती। लेकिन गुणकार इस बात से सहमत नहीं हुआ और वह सिद्धि प्राप्त करने की जिद करने लगा।
आखिरकार महात्मा को गुणकार को यह बताना पड़ा कि सिद्धि कैसे प्राप्त की जा सकती है। महात्मा ने गुणकार को बताया कि उसे पूरे लगन के साथ सिद्धि प्राप्त करनी होगी। गुणकार ने महात्मा की बात को स्वीकार कर लिया और वह हर दिन सिद्धि प्राप्त करने के लिए मेहनत करने लगा। एक दिन जब उसे आधी सिद्धि प्राप्त हो गई तो उसने महात्मा से कहा कि वह थोड़े दिन के लिए अपने घर जाना चाहता है। महात्मा ने उससे कहा कि वह आधी अधूरी शिक्षा लेकर बीच में नहीं जा सकता। लेकिन जब गुणकार नहीं माना तो उस महात्मा ने उसे घर जाने की स्वीकृति दे दी। उसने घर जाने से पहले महात्मा से कुछ उपहार लिए और फिर उन उपहारों के साथ वह अपने घर की ओर रवाना हो गया।
जब वह अपने घर पहुंचा तो उसके माता-पिता उसे देखकर हैरान रह गए। उसने अपने माता-पिता को उपहार दिए। उन्होंने पूछा कि इतने दिन वो कहां था। तो उसने उत्तर दिया कि वह एक ऐसे महात्मा के पास था जिससे उसने सिद्धि प्राप्ति की शिक्षा ली। उसने यह भी कहा कि अभी तक उसे आधी सिद्धि की प्राप्ति हुई है। लेकिन थोड़े दिन बाद उसे संपूर्ण सिद्धि प्राप्ति हो जाएगी और फिर दुनिया की हर चीज हासिल कर लेगा। गुणकार की माता ने उसे समझाया कि उसे धीरज और बिना घमंड के साथ सिद्धि प्राप्ति की यह परीक्षा पूरी करनी होगी। गुणकार ने अपनी माता का कहना मान लिया। थोड़े दिन तक वह अपने माता-पिता के पास रहा। उसके बाद वह दोबारा रवाना हो गया।
इस बार जब वह उस महात्मा के पास पहुंचा तो महात्मा ने उसे समझाया कि इस बार उसे सिद्धि प्राप्ति की परीक्षा पूरी करनी होगी। वह सिद्धि प्राप्ति के लिए दोबारा मेहनत करने लगा। इस बार उसने कठोर परिश्रम से सिद्धि की पूर्ण रूप से प्राप्ति कर ली। महात्मा भी उससे खुश हुआ। महात्मा ने उससे कहा कि, “अब जब तुमनें सिद्धि की पूर्ण रूप से प्राप्ति कर ली है तो मैं तुम्हारे गुरु के नाते तुम्हारी छोटी सी परीक्षा लूंगा। मैं चाहता हूं कि तुम आज मुझे अपने चमत्कार से भोजन खिलाओ।” गुणकार मंद मंद मुस्कुराया कि आज उसके गुरु उससे भोजन की मांग कर रहे हैं। जैसे ही गुणकार ने अपने मंत्र से भोजन की व्यवस्था करने की कोशिश की वह विफल रहा। उसने कई बार मंत्र दोहराया लेकिन उसका कोई फायदा नहीं निकला।
अब बेताल ने अपनी कहानी खत्म कर दी। कहानी खत्म करते ही बेताल ने विक्रम से पूछा, “राजन, मैंने अपनी कहानी खत्म कर दी है। पर अब तुम मुझे यह बताओ कि जब गुणकार को सिद्धि की प्राप्ति हो गई थी तब भी वह अपना चमत्कार दिखाने में नाकामयाब क्यों रहा? मुझे इस प्रश्न का सही उत्तर चाहिए। अगर तुमनें उत्तर नहीं दिया तो मैं तुम्हें मार डालूंगा।” विक्रम ने उत्तर दिया, “देखो बेताल, इस बात में कोई दो राय नहीं है कि गुणकार ने सिद्धि की प्राप्ति कर ली थी।
लेकिन अगर हम बात करें कि वह महात्मा को अपना चमत्कार क्यों नहीं दिखा पाया तो इसके पीछे एक बड़ा कारण है। गुणकार ने सिद्धि की प्राप्ति चाही लेकिन निस्वार्थ भावना से नहीं। उसकी भावना स्वार्थ से भरी थी। वह सिद्धि प्राप्त करके सांसारिक सुख भोगना चाहता था।” जैसे ही विक्रम ने सही उत्तर दिया बेताल फुर्ती से पेड़ पर जाकर लटक गया।
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