आज राजा विक्रमादित्य बहुत ज्यादा थक गया था। वह पेड़ के नीचे बैठना चाहता था लेकिन इस डर से नहीं बैठा क्योंकि अब रात होने वाली थी। वह बेताल को जल्द से जल्द योगी के पास पहुंचाना चाहता था। रास्ते में हर दिन की तरह बेताल फिर से विक्रम को कहानी सुनाने लगा।
एक समय पर काशी नगर में एक ऐसे राजा का राज था जो बहुत ही ज्यादा धनवान और बलशाली था। वह राजा बहुत ही पराक्रमी था। उस राजा को वीरकेतु के नाम से जानते थे। वह बहुत ही ज्यादा परोपकारी राजा भी था। काशी नगर में ही एक धनवान साहूकार रत्नाकर भी रहा करता था।
उसे धन आदि की कोई कमी नहीं थी। लेकिन फिर भी वह अपनी बेटी रत्नावली से खुश नहीं था। उसको अपनी बेटी अच्छी नहीं लगती थी। इसका कारण यह था कि उसकी बेटी के लिए जो भी कोई रिश्ता आता था तो वह उसे अस्वीकार्य कर देती थी। इतने सुंदर और धनवान लड़के आए उसके लिए। यहां तक कि कई बार तो एक- दो राजकुमार से भी रिश्ते की बात चली रत्नावली की।
लेकिन उसने यह कहकर उन्हें भी खारिज कर दिया कि उसे धनवान नहीं बल्कि एक ऐसे पति की तलाश है जो सच्चे मायने में साहसिक हो और उसे पूरे मन से खुश रख सके। रत्नाकर परेशान हो गया था अपनी बेटी की इस हरक़त से। जैसे-जैसे उसकी उम्र निकली जा रही थी वह और भी ज्यादा चिंता में पड़ गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी बेटी को शादी के लिए कैसे मनाए।
एक दिन काशी नगर में बड़ा डाका पड़ा। इससे पहले इतनी बड़ी चोरी की घटना पहले कभी नहीं हुई थी। लोगों के घरों से खूब सारा धन लूट लिया गया। राजा वीरकेतु के कहने पर चोरों को ढूंढने की खूब कोशिश की गई लेकिन चोरों का कुछ अता पता ही नहीं लगा। फिर थोड़े दिन तक तो शांति का माहौल बना रहा।
लेकिन थोड़े ही दिन बाद में फिर से चोरियां होनी शुरू हो गई। एक दिन रत्नावली कुछ सामान लेने के बहाने बाजार गई। जब वह बीच रास्ते जा रही थी तो एक आदमी की उससे भेंट हुई। वह आदमी कोई और नहीं बल्कि चोरों का सरदार था। फिर धीरे-धीरे हर दिन उसकी मुलाकात उस चोर से होती गई। उसने चोर से आम के पेड़ पर चढ़कर आम तोड़ने सीखे। जल्दी ही समय ने उन दोनों के बीच प्रेम के बीज़ बो दिए।
वह चोर हर दिन पहले रत्नावली से मिलता और फिर वह चोरी के सिलसिले से बाहर जाता था। इस बात से रत्नावली अनभिज्ञ थी। राजा वीरकेतु चोरों के आतंक से बहुत ज्यादा परेशान हो गया था। उसने अपने मंत्रियों और सिपाहियों को इस बात के लिए फटकार भी लगाई लेकिन वह चोरों के गिरोह को पकड़ने में असफल रहे। इसी वजह से एक दिन राजा ही फकीर के भेष में चोरों को ढूंढने निकला।
एक दिन राजा को जब रात को घूमते हुए प्यास लगी तो वह एक घर में घुस गया जहां पर पानी की मटकियां रखी हुई थी। वह मटकी से पानी पी ही रहा था कि अचानक उसने देखा कि एक आदमी भी उसी घर के अंदर के घुस गया। फिर उस आदमी ने राजा से कहा, “अच्छा, तो तुम भी यहां मेरी तरह चोरी करने आए हो।
अगर ऐसा है तो तुम भी मेरे ही गिरोह में शामिल हो जाओ दोस्त। तुम भी मुनाफे में रहोगे और मैं भी।” राजा को समझ में आ गया था कि यह वही चोर था जिसकी वजह से पूरा काशी परेशान था। राजा के साथ मिलकर चोर चोरी करता है। और बाद में वह राजा को अपने साथ अपनी ख़ज़ाने वाली गुफा में ले जाता है। राजा देखता है कि चोर ने पूरी काशी का धन लूटकर अपनी गुफा में छुपा रखा था। राजा अपनी बुद्धि दौड़ाता है और उस चोर को अपने साथ महल ले जाता है। वहां ले जाकर उस चोर को राजा अपने कैदखाने में बंदी बना देता है।
इधर रत्नावली हर दिन अपने प्रेमी का बेसब्री से इंतजार करती है। लेकिन जब कई दिनों हो जाते हैं तो वह उस चोर का पता लगवाती है। उसे पता चलता है कि वह चोर तो राजा की गिरफ्त में है और थोड़े ही दिन बाद उसे फांसी भी होने वाली है। यह सुनकर वह बहुत ज्यादा घबरा गई। उसने अपने पिता से विनती कि की वह महल जाकर उसके प्रेमी को छुड़वा दे। उसका प्रेमी ही चोरों का सरदार है। वह उस चोर को अपना पति स्वीकार कर चुकी है। अगर चोर को फांसी हुई तो वह भी अपनी जान दे देगी।” आखिरकार रत्नावली के पिता को उसकी जिद के आगे झुकना पड़ता है और वह राजमहल पहुंच जाता है। वह राजा से चोर को छोड़ने की फ़रियाद करता है। लेकिन राजा उसकी एक भी बात नहीं सुनता।
पिता की मांग ख़ारिज हो जाने के बाद रत्नावली खुद राजा के पास चोर को रिहा करने की मांग से वहां पहुंचती है। लेकिन राजा है कि अपने हठ पर ही अड़ा रहा। फांसी की तैयारी पूरी हो गई थी। जैसे ही चोर को फांसी पर चढ़ाने के लिए लाया गया सबसे पहले वह रोने लगा और फिर वह जोर जोर से हँसा। उसके बाद उसे फांसी दे दी गई। चोर को फांसी लगते ही रत्नावली अपने प्राण त्यागने लगी।
लेकिन तभी एक आकाशवाणी ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। आकाशवाणी यह हुई कि, “पुत्री, तुम्हारा समय अभी नहीं आया है। तुम अपने प्राण नहीं त्याग सकती। हम तुम्हारे सच्चे प्रेम को देखकर बहुत ज्यादा खुश हैं। बोलो, तुम क्या मांगना चाहती हो?” रत्नावली ने वरदान मांगा कि उसके प्रेमी को फिर से जिंदा कर दिया जाए। और ऐसा हो हुआ। वह चोर फिर से जिंदा हो उठा। जिंदा होने के बाद भी वह एक बार फिर से रोता है और बाद में हंसता है।
जब राजा ने यह देखा कि वह चोर दुबारा जिंदा हो उठा है तब राजा हैरान रह गया। उसे लगा कि यह चोर तो अब दुबारा चोरी करने लगेगा। इसलिए उसने चोर को अपने पास बुलाया और कहा, “देखो, यह सही है कि तुम दोबारा जिंदा हो गए हो। लेकिन एक बात याद रखना कि अगर तुमने दोबारा चोरी करने की कोशिश की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। वह चोर मान गया। उसके बाद राजा ने उस चोर को अपने महल में सेनापति नियुक्त कर दिया। और फिर रत्नावली और वह चोर खुशी खुशी विवाह करके साथ रहने लगे।
बेताल ने कहानी पूरी कर दी। कहानी पूरी होने के बाद बेताल ने विक्रम से पूछा, “राजन, यह कहानी तो पूरी हुई। लेकिन अब मुझे एक सवाल का जवाब दो। मेरा सवाल यह है कि वह चोर फांसी लगने से पहले रोया क्यों और बाद में वह हंसा क्यों?” विक्रम ने इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया। फिर बेताल ने कहा, “राजन, अगर तुमनें जवाब नहीं दिया तो मैं तुम्हारे सिर के टुकड़े टुकड़े कर दूंगा।
“फिर विक्रम बोला, “वह चोर पहले इसलिए रोया क्योंकि उसे लगा कि उस जैसे चोर के लिए एक इतनी सुंदर लड़की अपनी जान न्यौछावर करने को तैयार है। और फिर इसलिए हंसा क्योंकि उसे रत्नावली के भोलेपन पर तरस आ रहा था कि इतने युवकों को अस्वीकार करके उसने उस जैसे चोर को अपना पति माना। और उसके बाद जब वह फिर से जिंदा होकर उठा तो वह सबसे पहले इसलिए रोया क्योंकि उसे नया जीवनदान मिला था। और फिर वह इसलिए हंसा क्योंकि उसे रत्नावली अब भी पूरे जी जान से चाहती थी।” यह जवाब सुनते ही बेताल पेड़ की तरफ उड़ चला।
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