यह हर दिन का एक ही तरह का नजारा था कि विक्रम बेताल को पेड़ से उतारता और अपने कंधे पर रखकर उसे योगी के पास ले जाता था। एक दिन ऐसे ही विक्रम बेताल को कंधे पर लादकर योगी के पास लेकर जा रहा था। रास्ते में बेताल विक्रम से बोला, “राजन, तुम हर दिन मुझे पेड़ से उतारते हो और फिर मुझे योगी के पास लेकर जाते हो। क्या तुम हर दिन एक जैसा काम करने से थकते नहीं हो?” विक्रम का उत्तर ना में था। फिर बेताल बोला, “ठीक है राजन, पर तुम पूरे रास्ते में चलते हुए सुस्त ना पड़ जाओ इसलिए मैं तुम्हें एक कहानी सुनाना चाहता हूं। तो आज की कहानी तीन भाइयों की है जो कि बहुत चतुर थे। तो मैं अब कहानी का आगाज करता हूं।”
बहुत समय पहले वृक्षघट नाम का एक गाँव हुआ करता था। वह गाँव बहुत ही सुंदर था। उस गाँव में अग्निहोत्री नाम के ब्राह्मण निवास किया करते थे। क्योंकि अग्निहोत्री ब्राह्मणों ने बहुत सारे धार्मिक कार्य किए थे इसलिए उन्हें वृक्षघट गाँव दान में दिया गया था। उस गाँव के लोग धर्म पुण्य में बहुत ज्यादा विश्वास करते थे। उसी गाँव में एक धार्मिक अग्निहोत्री ब्राह्मण रहा करता था जिसका नाम विष्णुस्वामी था। वह अपने तीन बेटों के साथ झोपड़ी में निवास करता था। उसके तीनों बेटे बड़े ही चतुर स्वभाव के थे। उसका पहला बेटा भोजनदक्ष था। दूसरा बेटा नारीदक्ष था और तीसरा बेटा शय्यादक्ष था
एक दिन ऐसा हुआ कि किसी बड़े ज्योतिष के कहने पर विष्णुस्वामी ने यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ को सफल बनाने के लिए ज्योतिष ने विष्णुस्वामी को सलाह दी कि यह यज्ञ तभी सफल माना जाएगा जब हवन के समय पास में कछुआ मौजूद होगा। विष्णुस्वामी ने अपने तीनों बेटों को बुलाया और उनसे कहा कि उसे बड़े यज्ञ का आयोजन करना है। और इसके लिए उसे एक कछुआ चाहिए। उनको समुद्र के तट पर जाना होगा और कछुए को लाना होगा। अपने पिता की आज्ञा मानकर वह समुद्र की ओर चल पड़े।
जब वह समुद्र तट पर पहुंचे तो वह कछुए को इधर-उधर ढूंढने लगे। थोड़ी देर तक इंतजार करने के बाद उन्हें एक कछुआ दिखा। जैसे ही बड़े भाई ने कछुआ उठाया वह कछुआ फिसलकर उसके हाथों से गिर गया। उस कछुए के शरीर से हल्की सी बदबू भी आ रही थी। कछुए की फिसलन और बदबू को देख बड़े भाई को घिन आ गई। उसने अपने दोनों भाइयों को कहा, “छी छी! मैं तो इस कछुए को हाथ तक नहीं लगाऊंगा। इस कछुए में मांस जैसी बदबू आ रही है। ऐसा करो कि तुम दोनों इसे उठाओ और इसे ले जाकर पिताजी को दे आओ।
“दोनों भाइयों ने एक साथ कहा, “भाई, अगर आप इसे नहीं उठा सकते हैं तो हम इसे कैसे उठा सकते हैं। हम भी आपकी ही तरह संवेदनशील हैं।” बड़ा भाई बोला, “लेकिन अगर हमनें कछुए को पिताजी तक नहीं पहुंचाया तो यह उनका घोर अपमान होगा।” दूसरा भाई बोला, “अगर आप भी अपमान करने से नहीं डरते तो हम क्यों डरे।” इस बात पर बड़े भाई ने दोनों से कहा, “अच्छा ठीक है। मैं यह स्वीकार करता हूं कि तुम भी मेरी ही तरह संवेदनशील हो। पर इस बात का असली फैसला इस गाँव के राजा को करने दो।” फिर तीनों ही भाई राजा के महल के लिए रवाना हो गए।
महल पहुंचकर तीनों ने अपनी अपनी व्यथा बताई। राजा ने तीनों की बात अच्छे से सुनी और फिर कहा कि, “मैंने तुम तीनों की बात को अच्छे से सुना। मैं तुम तीनों से यह वादा करता हूं कि कल तक यह फैसला हो जाएगा कि कौन अधिक संवेदनशील है।
“राजा ने तीनों की परीक्षा लेने के लिए एक युक्ति सोची। युक्ति के अनुसार तीनों को भोजन के लिए भोजन कक्ष में बुलाया गया। जब वह भोजन कक्ष में पहुंचे तो उनके लिए थाली में तरह तरह के स्वादिष्ट व्यंजन परोसे गए। दो भाइयों ने बड़े ही चाव के साथ भात खाए। लेकिन बड़े भाई ने भात को हाथ तक नहीं लगाया। जब उससे पूछा गया कि उसने भात को हाथ क्यों नहीं लगाया तो उसने जवाब दिया, “मैं यह भात इसलिए नहीं खा रहा हूं क्योंकि भात में मांस जैसी महक है।”
जब राजा को यह बात पता चली तो राजा ने रसोइए को बुलाकर पूछा कि क्या भात में गंध है। तो रसोइए ने कहा कि हां वह आदमी सही कह रहा है कि इन चावल में गंध है। और यह गंध दरअसल इसलिए आती है क्योंकि जहां चावल उगाए जाते हैं वही पर पास में श्मशान घाट पर मृत लोगों को भी जलाया जाता है। वह गंध चावल में घुल जाती है और फिर चावल में बैठ जाती है। आखिरकार यह मान लिया गया कि भोजनदक्ष व्यक्ति एकदम सही कह रहा था।
फिर दूसरा भाई जो कि नारीदक्ष था अब उसके परीक्षा की बारी थी। राजा ने उस दूसरे भाई के कमरे में एक सुंदर महिला को भेजा जो कि दिखने में बेहद सुंदर थी। जैसे ही वह उस नारीदक्ष भाई के कमरे में गई तो उस भाई ने उसे देखकर मुंह मोड़ लिया और अपने नाक को कपड़े से ढककर बैठ गया। उसने उस महिला से कहा कि उसके शरीर से बकरी की गंध आ रही थी।
उसने महिला को अपने कमरे से भगा दिया। राजा को यह जानकर हैरानी हुई कि जिस महिला में इतनी खुशबू आ रही हो उससे गंध कैसे आ सकती है। राजा ने जब महिला से गंध का कारण पूछा तो महिला ने कहा कि बचपन में जब उसकी माँ का देहांत हो गया था तो वह पालतू बकरी का दूध पीकर ही बड़ी हुई। राजा ने नारीदक्ष भाई की बात स्वीकार कर ली।
अब बारी थी तीसरे भाई की जो कि शय्यादक्ष था। राजा ने रात को सोने के लिए तीसरे भाई को शानदार कमरा दिया। उस कमरे में सुंदर और मखमली गद्दा बिछ रखा था। जैसे ही रात को शय्यादक्ष उस गद्दे पर सोया उसे अपने शरीर पर चुभन सी महसूस हुई। वह रात भर सोया ही नहीं। उसके शरीर पर केशनुमा दाग जैसा बन गया था।
जब सुबह उठकर उसने यह सारी बात राजा को बताई तो राजा ने अपने सिपाहियों को कहकर उस गद्दे की जांच करवाई। जांच करने पर पता चला कि उस शय्यादक्ष के शरीर पर जो बाल का निशान था वह हूबहू उस केश उस गद्दे के नीचे मिला। अंत में राजा ने शय्यादक्ष को सही साबित कर दिया। अब यह सिद्ध हो चुका था कि वह तीनों ही भाई संवेदनशील थे।
अब बेताल यह कहानी खत्म कर चुका था। उसने पूछा कि, “तो अब यह तुम बताओ राजन कि उन तीनों भाइयों में सबसे ज्यादा चतुर और दक्ष कौन हुआ?” विक्रम ने कोई जवाब नहीं दिया। विक्रम के चुप रहने पर बेताल ने कहा कि अगर विक्रम ने जवाब नहीं दिया तो वह विक्रम को खा जाएगा। आखिर विक्रम को जवाब देना ही पड़ा, “वह तीनों ही भाई चतुर और दक्ष निकले। उनको पता था कि राजा उन सभी की परीक्षा लेने वाला है इसलिए उन्होंने पहले से ही सभी बातों का अच्छे से पता लगा लिया था।” विक्रम का सही उत्तर सुनकर बेताल हर दिन की ही तरह उड़कर पेड़ पर लटक गया।
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